दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं. अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई. इसमें घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते हैं. उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है.
इस दिन क्या करें:
- स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्ट का ध्यान करें. तत्पश्चात् अपने निवास स्थान या देवस्थान के मुख्य द्वार के सामने प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं.
- फिर उसे वृक्ष, वृक्ष की शाखा एवं पुष्प इत्यादि से श्रृंगारित करें. इसके गोवर्धन पर्वत का अक्षत, पुष्प आदि से विधिवत पूजन करें.
पूजन करते समय निम्न प्रार्थना करें:
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक/
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव//
इसके पश्चात दिवाली की रात्रि को निमंत्रित की हुई गायों को स्नान कराएं. फिर गायों को विभिन्न अलंकारों, मेहंदी आदि से श्रृंगारित करें.
इसके बाद उनका गंध, अक्षत, पुष्प से पूजन करें.
नैवेद्य अर्पित कर निम्न मंत्र से प्रार्थना करें:
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
सायंकाल पश्चात् पूजित गायों से पूजित गोवर्धन पर्वत का मर्दन कराएं. फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें.