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एकादशी व्रत करने से दूर हो जाते हैं सारे कष्ट...

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत की बहुत मान्यता है और शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से इंसान के सारे कष्ट दूर होते हैं. साथ ही सारे पापों से मुक्ति भी मिल जाती है...

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एकादशी व्रत
एकादशी व्रत

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सभी धर्मों में व्रत-उपवास करने का महत्व बहुत होता है और हर व्रत के आने नियम कायदे भी होते हैं. खास कर हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से ही कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए. ऐसा करने से उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और व्रत का पूरा फल मिलता है.

ये हैं एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण नियम...

- दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए.

- रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

- एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ साफ कर लें. वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है इस‍लिए स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें.

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- यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें. फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें.

- फिर प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखंडी़ और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा. रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा.'

- तत्पश्चात 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें. राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं.

- भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है इसलिए मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना.

- यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए.

- एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है. इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए. न नही अधिक बोलना चाहिए.

- इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए लेकिन स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि ग्रहण न करें.

- एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए.

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- केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें.

- प्रत्येक वस्तु का प्रभु को भोग लगाएं और तुलसीदल छोड़कर खुद भी ग्रहण करना चाहिए.

- द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए.

- क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए.

- इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है और उसके जीवन के सारे कष्‍ट समाप्त हो जाते हैं.

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