नवरात्र में विशेष तौर पर मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा का विधान है. लेकिन अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन दो साल से लेकर 11 साल की बच्चियों की पूजा की जाती है. अलग-अलग उम्र की कन्याएं देवी के अलग-अलग रूप को दर्शाती है.
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दुर्गाष्टमी को पूजना का महत्व वैसे तो कई लोग सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है. जो लोग पूरे नवरात्र व्रत रखते हैं वो नवमी को भी कन्या पूजन करते हैं.
कन्या पूजन की विधि
शास्त्रों में कन्या पूजन की ये विधि बताई गई है...
- एक दिन पूर्व ही कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें.
- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं.
- अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाएं.
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- सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर स्वच्छ पानी से धोएं. .
- उसके बाद कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुंकुम लगाएं.
- फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं.
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें.
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कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की आयु 2 वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए. इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए. इनके साथ एक बालक को बिठाने का भी प्रावधान है.