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साइंस न्यूज़

30 साल पहले महिलाएं ज्यादा टेंशन लेती थीं, अब पुरुषः The Lancet की रिपोर्ट

The Lancet Report on Hypertension
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महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि एक शांत और साधारण जीवन ज्यादा खुशियां लेकर आता है. सफलता और भौतिक सुखों के पीछे भागना और उसके लिए असहनीय मेहनत से तनाव बढ़ता है. जीवन में तनाव यानी टेंशन से दूर रहना चाहिए, हालांकि ऐसा संभव नहीं है. हाल ही में आई द लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीस सालों में दुनियाभर में 120 करोड़ लोग तनाव यानी टेंशन या यूं कहें कि हाइपरटेंशन की समस्या से जूझ रहे हैं. 30 साल पहले महिलाएं ज्यादा टेंशन लेती थीं, लेकिन अब पुरुष ले रहे हैं. (फोटोः गेटी)

The Lancet Report on Hypertension
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द लैंसेट (The Lancet) ने 200 देशों के लोगों का 1990 से 2019 तक हाइपरटेंशन की समस्या का विश्लेषण किया है. रिपोर्ट में 30 से लेकर 79 साल तक के लोगों की आबादी को शामिल किया गया है. ये रिपोर्ट इन लोगों की ब्लड प्रेशर संबंधी डेटा के आधार पर तैयार की गई है. तनाव को लेकर यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की गई सबसे बड़ी स्टडी है. (फोटोः गेटी)

The Lancet Report on Hypertension
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इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 1990 से 2019 के बीच तनाव से पीड़ित लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है. ये 30 से 79 साल के लोगों का डेटा है. साल 1990 में दुनियाभर में 33.10 करोड़ महिलाएं और 31.70 करोड़ पुरुष हाइपरटेंशन से जूझ रहे थे. जबकि, 2019 में यह 62.60 करोड़ महिलाएं और 65.62 करोड़ पुरुष तनाव की समस्या से ग्रसित हैं. यानी 30 साल पहले महिलाएं ज्यादा तनाव लेती थीं, अब पुरुष ज्यादा तनाव ले रहे हैं. (फोटोः गेटी)
 

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कनाडा और पेरू में पुरुष और महिलाएं टेंशन कम लेते हैं. ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, स्विट्जरलैंड, स्पेन और इंग्लैंड में महिलाएं तनाव कम लेती है. एरिट्रिया, बांग्लादेश, इथियोपिया और सोलोमन आइलैंड्स पर पुरुष तनाव कम लेते हैं. हाई ब्लड प्रेशर, तनाव, दिल संबंधी बीमारियों, स्ट्रोक, किडनी संबंधी बीमारियों की वजह से हर साल 85 लाख लोगों की जान जाती है. इन सबके पीछे तनाव यानी टेंशन बड़ कारण है. जिससे ब्लड प्रेशर पर असर पड़ता है. (फोटोः गेटी)

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द लैंसेट (The Lancet) की यह रिपोर्ट 1990 से 2019 के बीच बनी 1201 स्टडीज के विश्लेषण के आधार पर बनाई गई है. इनकी स्टडी में 10.4 करोड़ लोगों ने अपने ब्लड प्रेशर संबंधी डेटा दिए हैं. जिन देशों के लोग सबसे ज्यादा तनाव लेते हैं- वो हैं मध्य और पूर्वी यूरोप, मध्य और दक्षिण एशिया, ओसीएनिया, दक्षिणी अफ्रीका, कुछ लैटिन और कैरिबियन देश. यानी भारत भी इसी में आता है. (फोटोः गेटी)

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जहां तक बात रही तनाव का इलाज कराने की तो महिलाओं में इलाज का दर 47 फीसदी है, जबकि पुरुषों में 38 फीसदी. इनमें से आधे ही ऐसे होते हैं जो तनाव पर नियंत्रण पा लेते हैं. अगर वैश्विक स्तर पर तनाव पर नियंत्रण करने की दर देखें तो महिलाएं 23 फीसदी और पुरुष 18 फीसदी ही कंट्रोल कर पाते हैं. (फोटोः गेटी)

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अगर किसी देश के स्तर पर देखें तो हाइपरटेंशन यानी तनाव को नियंत्रित करने की सबसे अच्छी दर दक्षिण कोरिया, कनाडा और आइसलैंड में है. यहां पर 70 फीसदी महिलाएं और पुरुष तनाव का सही इलाज कराकर उसे नियंत्रित कर लेते हैं. अमेरिका, कोस्टारिका, जर्मनी, पुर्तगाल और ताइवान में भी तनाव को नियंत्रित करने की दर बेहतर है. लेकिन नेपाल, इंडोनेशिया, सब-सहारन अफ्रीकी देश और ओसिएनिया में पुरुष तनाव को नियंत्रित नहीं कर पाते, क्योंकि इन देशों में इलाज का तरीका और आर्थिक मजबूती सही नहीं है. (फोटोः गेटी)

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मध्य-पूर्व, उत्तर अमेरिका, मध्य और दक्षिण एशिया और पूर्वी यूरोप में 10 फीसदी महिलाएं और पुरुष ही हाइपरटेंशन पर कंट्रोल कर पाते हैं. यहां पर लोगों का इलाज में भी चार गुना की कमी है. यानी इलाज तो होता है लेकिन सही से दवाएं न लेने या ट्रीटमेंट पूरा न करने की वजह से लोगों में तनाव की समस्या बनी रहती है. क्योंकि यहां के लोग तनाव पर नियंत्रण करना समझ नहीं पाते. (फोटोः गेटी)

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1990 के बाद से अब तक दुनिया भर के देशों में हाइपरटेंशन के इलाज के तरीकों में काफी बदलाव आया है. सबसे ज्यादा बदलाव अफ्रीकन और ओसिएनिया के देशों में देखने को मिला है. अमीर देशों में यह बदलाव सबसे ज्यादा मध्य यूरोपीय देशों में देखने को मिला है. कोस्टा रिका, ताइवान, कजाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, चिली, तुर्की और इरान ने भी तनाव संबंधी इलाज के तरीकों में काफी बदलाव किया है. (फोटोः गेटी)

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ज्यादातर देशों में महिलाओं की तुलना में पुरुष तनाव पर नियंत्रण और इलाज कराने में विफल रहे हैं. हालांकि इसके पीछे की वजह द लैंसेट (The Lancet) की रिपोर्ट में नहीं बताई गई है. सब सहारन अफ्रीकी देशों में चार में से एक महिला और तीन में से एक पुरुष को टेंशन की दिक्कत है. लगातार आ रही आधुनिक दवाओं, जांच पद्धत्तियों के बावजूद हाइपरटेंशन की दिक्कत खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. (फोटोः गेटी)

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साल 1990 से 2019 के बीच तनाव से पीड़ित लोगों की संख्या में दोगुना का इजाफा हुआ है. साल 2019 में 120 करोड़ से ज्यादा लोग तनाव से जूझ रहे हैं. इनमें से 82 फीसदी लोग निम्न आय या मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं. 1990 के बाद से अब तक लोग बूढें तो हुआ, आबादी भी बढ़ी लेकिन हाइपरटेंशन की समस्या खत्म नहीं हुई. इससे सबसे ज्यादा परेशान हेशे हैं सब-सहारन अफ्रीकी देश, ओसिएनिया और दक्षिण एशिया. (फोटोः गेटी)

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