धरती पर लगातार धूल बढ़ रही है. रेगिस्तान का दायरा भी बढ़ रहा है. इसके पीछे बड़े निर्माण कार्य, पेड़ों की कटाई और सूखी नदियां जिम्मेदार हैं. लेकिन इन सबके अलावा अंतरिक्ष से भी धरती पर धूल आती है. यह धूल अलग-अलग ग्रहों और उल्कापिंडों से निकलकर धरती पर गिरती है. हाल ही में हुई एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि धरती पर हर साल अंतरिक्ष से 5200 टन यानी करीब 47.17 लाख किलोग्राम धूल आती है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
धूल की हल्की बारिश हर समय होती रहती है. ये एस्टेरॉयड्स और उल्कापिंडों से ज्यादा आती है. हाल ही में अर्थ एंड प्लैनेटरी लेटर्स जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है. इसके अलावा हर साल करीब 10 टन यानी 9071.85 किलोग्राम वजन के पत्थर भी अंतरिक्ष से धरती पर गिरते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
इतनी बड़ी मात्रा में धूल और पत्थर आने के बावजूद इनका सटीक अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल है. क्योंकि हर साल इनके गिरने के बाद बारिश का पानी इन्हें धरती की धूल और मिट्टी से मिला देता है. कुछ जगहों पर ज्यादा मिट्टी जमा होती है तो वहां पर कीचड़ बन जाता है. ऐसे में इस तरह की अंतरिक्ष से आई धूल को नापना कठिन हो जाता है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
5,200 tons of extraterrestrial dust fall on Earth each year https://t.co/oJOoxUjfeE pic.twitter.com/Sl4iY7JqFq
— Live Science (@LiveScience) April 12, 2021
अंटार्कटिका के पास एडिली लैंड में स्थित फ्रेंच-इटैलियन कॉन्कॉर्डिया रिसर्च स्टेशन पर बर्फबारी तो आसानी से पता चल जाती है. लेकिन इस इलाके में अंतरिक्ष से आने वाली धूल भी गिरती है. लेकिन उसकी मात्रा का सही पता लगाना असंभव है. इसके बावजूद फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के भौतिक विज्ञानी ज्यां डुप्राट ने बताया कि हम पिछले 20 साल में 6 बार यह प्रयास किया है कि हम अंतरिक्ष की धूल को जमा कर सके. क्योंकि इस इलाके में बर्फबारी के नीचे अंतरिक्ष की धूल की परत मिल जाती है. जो साल दर साल ऊपर से गिरी है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की बर्फ में बड़े गड्ढे करके करीब 20 किलोग्राम धूल निकाली. उन्हें रिसर्च स्टेशन की प्रयोशाला में ले गए. जब बर्फ पिघलाकर उसमें से धूल निकाली गई तो वैज्ञानिक हैरान रह गए. इसमें धूल के साथ उनके दस्तानों के छोटे फाइबर्स भी मिले. हालांकि बाद में इन्हें निकाल दिया गया. जब वहां मिले धूल का धरती के क्षेत्रफल के अनुसार आंकड़ा निकाला गया तो पता चला कि धरती पर हर साल करीब 47.17 लाख किलोग्राम धूल अंतरिक्ष से गिरती है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
अंतरिक्ष से आने वाली इन धूल कणों का आकार 30 से 400 माइक्रोमीटर होता है. जबकि, इंसान के बाल का व्यास 70 माइक्रोमीटर होता है. यानी धरती पर हर साल अंतरिक्ष से बहुत सारा धूल आता है, जिसका पता हम इंसानों को नहीं चलता. क्योंकि आमतौर पर जितने भी पत्थर धरती पर अंतरिक्ष से आते हैं वो धरती के वायुमंडल में जलकर नष्ट हो जाते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
इसलिए वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि आखिर अंतरिक्ष से कितनी धूल आती है और कितनी वायुमंडल में नष्ट हो जाती है. तो जांच में पता चला कि अंतरिक्ष से हर साल करीब 1.36 करोड़ किलोग्राम धूल आती है. लेकिन इसमें से सिर्फ 47.17 लाख किलोग्राम ही धरती की सतह तक पहुंच पाती है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
47.17 लाख किलोग्राम धूल में से 80 फीसदी धूल बृहस्पति ग्रह के उल्कापिंडों से धरती पर गिरती है. ये ऐसे उल्कापिंड या पुच्छल तारे होते हैं जो बृहस्पति ग्रह से निकलते हैं और धरती के बगल से गुजरते हुए या धरती पर गिरते हुए धूल छोड़ जाते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
बाकी का 20 फीसदी धूल एस्टेरॉयड्स छोड़कर निकल जाते हैं. ज्यां डुप्राट ने बताया कि धरती पर गिरने वाली अंतरिक्ष की धूल से एस्ट्रोफिजिक्स और जियोफिजिक्स जैसे मामलों की जानकारी बढ़ती है. क्योंकि इससे पता चलता है कि किस ग्रह से किस तरह की वस्तु धरती पर आ रही है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)