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साइंस न्यूज़

25 साल में दुनिया की 75% आबादी सूखे से होगी प्रभावित, भारत पर भी खतरा... UNCCD की रिपोर्ट

Danger of Drought
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संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कंबैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) और यूरोपियन कमीशन ज्वाइंट रिसर्च सेंटर हाल ही में वर्ल्ड डेजर्ट एटलस जारी किया है. इसमें कहा गया है कि साल 2050 तक करीब 75% आबादी सूखे से प्रभावित होगी. UNCCD में शामिल देश सऊदी अरब की राजधानी रियाद में मीटिंग करने वाले हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

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इस एटलस को इटली की CIMA रिसर्च फाउंडेशन, नीदरलैंड्स की एक यूनिवर्सिटी और यूएन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंट एंड ह्यूमन सिक्योरिटी ने तैयार किया है. इसमें सूखे की वजह से एनर्जी, कृषि और व्यापार पर पड़ रहे असर को डिटेल में बताया गया है. (फोटोः पिक्साबे)

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सूखा केवल एक जलवायु संकट नहीं है. जमीन और पानी का इस्तेमाल और प्रबंधन से जुड़े मानवीय कारण सूखे और उनके प्रभावों को बढ़ाते हैं. मानवीय कारणों में पानी का गलत इस्तेमाल, अलग-अलग इलाकों के बीच पानी को लेकर प्रतियोगिता, जमीन का खराब मैनेजमेंट और जल स्रोतों का सही तरीके से आकलन न करना शामिल हैं. (फोटोः पिक्साबे)
 

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एटलस से मिलने वाले डेटा से भविष्य के जोखिमों का प्रबंधन, निगरानी और पूर्वानुमान में आसानी होती है. भारत में सूखे से खराब हो रही फसलों को सुधारने की बात कही गई है. भारत में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक (25 करोड़ से अधिक) लोग काम करते हैं. यहां सूखे से सोयाबीन उत्पादन में भारी नुकसान का अनुमान लगाया गया है. (फोटोः गेटी)

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साल 2019 में चेन्नई में 'डे जीरो' की याद दिलाते हुए कहा गया है कि जल स्रोतों का गलत प्रबंधन और तेजी से हो रहे शहरीकरण ने शहर में जल संकट पैदा किया है. चेन्नई में हर साल औसतन 1,400 मिमी से ज्यादा बारिश हती है. चेन्नई में कई जलाशय हैं. रेनवाटर हार्वेस्टिंग करने वाला यह पायलट शहर भी रहा है. (फोटोः पिक्साबे)

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इस समय कानून नहीं मानने और बेतरतीब शहरी विकास की वजह से पानी का स्तर कम होता जा रहा है. चेन्नई सूखे की ओर बढ़ रहा है. इससे पता चलता है कि सूखा हमेशा प्राकृतिक घटना नहीं होती. 2020 से 2023 के बीच भारत में जल प्रबंधन की विफलता के कारण दंगे और तनाव बढ़े. (फोटोः रॉयटर्स)

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भारत के के बाद सब-सहारन अफ्रीका आता है. यूएनसीसीडी विशेषज्ञों ने कहा है कि डेटा साझा करना सूखे से होने वाले नुकसान को कम करने की लड़ाई में प्रमुख होगा. उन्होंने कहा कि नॉलेज में सुधार, सूखों का पूर्वानुमान और जोखिमों को समझने में निवेश की जरूरत है.  (फोटोः पिक्साबे)

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यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थियाव ने कहा कि समय बहुत कम है. मैं सभी देशों से, विशेष रूप से यूएनसीसीडी के देशों से इस एटलस के निष्कर्षों की गंभीरता से समीक्षा करने और स्थिर, सुरक्षित और सतत भविष्य बनाने के लिए कार्रवाई करने की अपील करता हूं. (फोटोः रॉयटर्स)

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एटलस के लेखकों ने कहा कि सूखे से होने वाले जोखिम को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए, समुदायों और देशों को सक्रिय कदम उठाने होंगे. यह एटलस सूखा प्रबंधन और अनुकूलन के लिए प्रभावी रणनीतियां बनाने में मदद करता है. यह बताता है कि विभिन्न क्षेत्रों में जोखिमों का आपस में कैसे संबंध है. (फोटोः रॉयटर्स)

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