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साइंस न्यूज़

डेल्टा वैरिएंट पर एंटीबॉडी का असर कम, कोशिकाओं में बना रहा 'मिनी ऑर्गन'

Delta Variant Antibodies
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कोरोनावायरस के अन्य वैरिएंट्स की तुलना में डेल्टा वैरिएंट शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज को धोखा देने में सक्षम है. इस पर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी कम असर करती है. हाल ही में हुई एक अंतरराष्ट्रीय स्टडी में इस बात की जानकारी साझा की गई है. यह स्टडी प्रसिद्ध साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी में बताया गया है कि खून में तैरने वाली एंटीबॉडीज डेल्टा वैरिएंट पर कम असर करती हैं.  (फोटोः गेटी)

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शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) ज्यादा तेजी से रेप्लीकेट यानी खुद को शरीर में विभाजित करके नए वायरस पैदा करता है. यह सांस की नलियों में फेफड़े के अंदर की कोशिकाओं को तेजी से तोड़ता है. जिसकी वजह से इससे पीड़ित व्यक्ति को काफी ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यही वजह है कि इस समय डेल्टा वैरिएंट पूरी दुनिया में तेजी से फैला है. इस वैरिएंट को पहली बार अक्टूबर 2020 में भारत में दर्ज किया गया था.  (फोटोः गेटी)

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कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की पेट्रा मिशोवा ने डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) को लेकर लैब में एक्सपेरीमेंट्स किए, जिसमें पता चला कि यह अल्फा वैरिएंट की तुलना में ज्यादा ताकतवर और इम्यूनिटी को धोखा देने ज्यादा शातिर है. जिन लोगों को पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है उनके सीरम में मौजूद एंटीबॉडीज का असर डेल्टा वैरिएंट पर 5.7 गुना कम होता हैं.  (फोटोः गेटी)

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एंटीबॉडीज शरीर में पैदा होने वाले वो प्रोटीन हैं जो शरीर में किसी भी प्रकार के संक्रमण के समय पैदा होते हैं. इन्हें हमारा इम्यून सिस्टम पैदा करता है. ये पता करती हैं कि शरीर में घुसपैठ किस चीज का हुआ है, उसके हिसाब से वह प्रतिक्रिया देती है. ये कोरोना वायरस की बाहरी कंटीली परत पर हमला करके उसे कमजोर बनाती है या फिर निष्क्रिय कर देती है. (फोटोः गेटी)

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पुराने रिसर्च में यह बताया जा चुका है कि डेल्टा वैरिएंट से अस्पताल में भर्ती होने का खतरा दोगुना है. खासतौर से उन लोगों को जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है. लेकिन जो लोग वैक्सीन लगवा चुके हैं, उनपर संक्रमण का असर कम होता है पर होता जरूर है. वैक्सीन की वजह से डेल्टा वैरिएंट का नुकसान कम हो जाता है लेकिन खत्म नहीं होता क्योंकि इसपर वैक्सीन के प्रभावों का भी असर कम हो रहा है. (फोटोः गेटी)

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नई स्टडी में यह भी देखा गया है कि लोगों के फेफड़ों से ली गई कोशिकाओं को लैब में विकसित किया गया. डेल्टा वैरिएंट इन कोशिकाओं में ऐसे विकसित होता है जैसे शरीर में कोई सूक्ष्म अंग (Mini Organ). क्योंकि डेल्टा वैरिएंट के वायरस की बाहरी प्रोटीन परत ज्यादा कंटीली है. ये ज्यादा आसानी से टूटकर अलग-अलग वायरस बनाते हैं. इसके बाद शरीर में तेजी से फैलते चले जाते हैं. जैसे एक वायरस से तीन बने, तीन से नौ और क्रम आगे बढ़ता चला गया.  (फोटोः गेटी)

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दिल्ली स्थित CSIR के इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी में साइंटिस्ट और इस स्टडी के सह-लेखक अनुराग अग्रवाल ने बताया कि वैक्सीन लगवा चुके स्वास्थ्यकर्मियों को भी डेल्टा वैरिएंट की वजह से काफी दिक्कत आ रही है. कई तो इससे संक्रमित भी हैं. हमें तत्काल वैक्सीनों की क्षमता बढ़ाने की जरूरत है. ताकि कम से कम स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षित रखा जा सके. अगर उनकी हालत बिगड़ गई तो लोगों को संभालने वाला कोई नहीं बचेगा.  (फोटोः गेटी)

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इस बीच खबर ये भी आई है कि इंग्लैंड में लगातार बढ़ रहे कोरोना मामलों के चलते फिर से सख्त लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. साइंटिफिक एडवाइजरी ग्रुप फॉर इमरजेंसी के अधिकारी ने एक मीडिया संस्थान से नाम न बताने की शर्त पर कहा कि जरूरी है कि हम उचित और सख्त कदम उठाएं. ये कदम इस तरह के होने चाहिए कि समाज और अर्थव्यवस्था को कम से कम नुकसान हो और लोग सेहतमंद रहें. (फोटोः गेटी)

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