इंसान के हाथ-पैर कट जाएं तो दूसरा नहीं उगता. दिल में दिक्कत हो तो प्रत्यारोपण किया जा सकता है. लेकिन दिमाग और रीढ़ की हड्डी नहीं बदली जा सकती. न ही दोबारा विकसित की जा सकती है. लेकिन इस विचित्र जीव की खासियत ही यही है कि ये अपना दिमाग, रीढ़ की हड्डी, दिल और हाथ-पैर फिर से पैदा कर लेता है. यह अपनी पूरी जिंदगी न्यूरॉन्स को विकसित करता रहता है. (फोटोः गेटी)
साल 1964 में ही वैज्ञानिकों ने यह खोज लिया था कि एक्सोलोल (Axolotl) में यह शक्ति है कि वह अपने दिमाग के कुछ हिस्सों को दोबारा पैदा कर सकता है. विकसित कर सकता है. रीढ़ की हड्डी, दिल और हाथ-पैर भी रीजेनरेट कर सकता है. अगर इसके दिमाग का बड़ा हिस्सा निकाल भी दिया जाए तो भी यह दिमाग को फिर से विकसित करने में सक्षम है. कुछ मात्रा में तो कर ही लेता है. (फोटोः एएफपी)
विएना और ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने स्टडी की तो पता चला कि एक्सोलोल (Axolotl) अपने दिमाग के सभी हिस्सों से संबंधित कोशिकाओं (Cells) को फिर से विकसित कर लेता है. साथ ही उनके बीच संबंध भी स्थापित कर लेता है. यह जानने के लिए इसके दिमाग का नक्शा बनाया गया. तब जाकर पता चला कि यह दिमाग को किस तरह से दोबारा विकसित कर लेता है. क्योंकि दिमाग के अलग-अलग हिस्सों की अलग-अलग कोशिकाएं अलग-अलग तरह का काम करती है. (फोटोः गेटी)
एक्सोलोल (Axolotl) इस मामले में सक्षम होते हैं कि वो जीन्स के जरिए विभिन्न कोशिकाओं को रीजेनरेट कर लेता है. वैज्ञानिकों ने इसकी स्टडी करने के लिए इस जीव के सिंगल सेल आरएनए सिक्वेंसिंग (scRNA-seq) की प्रक्रिया देखी. ताकि वैज्ञानिक इस जीव के उन जीन्स की गिनती कर सकें जो किसी भी तरह से कोशिकाओं के विकास में मदद कर रही हैं. साथ ही कौन सी कोशिका दिमाग के किस हिस्से के लिए विकसित हो रही है. उसका काम क्या होगा. (फोटोः एएफपी)
वैज्ञानिक इंसानों, चूहों, सरिसृपों और मछलियों के जेनेटिक स्टडी के लिए सिंगल सेल आरएनए सिक्वेंसिंग (scRNA-seq) का उपयोग करते आए हैं. लेकिन इस पद्धत्ति का उपयोग उभयचरी (Amphibians) पर पहली बार किया गया था. वैज्ञानिकों ने इसके दिमाग के सबसे बड़े हिस्से टेलेनसिफेलॉन (Telencephalon) की स्टडी की. टेलेनसिफेलॉन इंसान के दिमाग का भी बड़ा हिस्सा कहलाता है. इसी के अंदर होता है नियोकॉर्टेक्स (Neocortex). जो किसी भी जीव के व्यवहार और उसकी संज्ञानात्मक शक्ति (Cognitive Power) को ताकत देता है. (फोटोः गेटी)
एक्सोलोल (Axolotl) के सिंगल सेल आरएनए सिक्वेंसिंग (scRNA-seq) की स्टडी से पता चला कि यह अपने दिमाग को अलग-अलग स्टेज में विकसित करता है. धीरे-धीरे. वैज्ञानिकों ने इसके दिमाग के टेलेनसिफेलॉन के एक बड़े हिस्से को बाहर निकाल दिया. इसके 12 हफ्तों के बाद उन्होंने देखा कि एक्सोलोल ने अपने दिमाग को हर हफ्ते धीरे-धीरे करके विकसित कर लिया. (फोटोः रॉयटर्स)
पहले फेज़ में प्रोजेनिटर सेल्स तेजी से बढ़े. ये घाव को भरने का काम करते हैं. दूसरे फेज़ में प्रोजेनिटर सेल्स न्यूरोब्लास्ट्स में अंतर पैदा करते हैं. तीसरे स्टेज में न्यूरोब्लास्ट्स अलग-अलग न्यूरॉन्स में तब्दील होने लगते हैं. ये वही न्यूरॉन्स होते हैं, जो टेलेसिफेलॉन के साथ बाहर निकाल दिए गए थे. इसके बाद नए न्यूरॉन्स ने दिमाग के पुराने हिस्सों के साथ संबंध बनाना भी शुरू कर दिया था. ये ताकत किसी और जीव में नहीं देखी गई है. (फोटोः पिक्साबे)