केदारनाथ हादसे के बाद 10 साल जरूर बीत गए. कई जगहों पर निर्माण हो गया है. रास्ते बन गए हैं. इमारतें खड़ी हो गई हैं. हो भी रही हैं. लेकिन हादसे के ठीक बाद दो-तीन दिनों के अंदर पर जो नजारा था, वो भयावह था. पहली तस्वीर है केदारनाथ धाम की है. हादसे के बाद क्या स्थिति थी. और अब कैसे हालात हैं आप खुद ही देख लीजिए...
इस फोटो कॉम्बो में चोराबारी झील की चार तस्वीरें हैं. ये तस्वीरें छह साल के अंतर पर ली गई हैं. पहली तस्वीर बाएं सबसे ऊपर अक्टूबर 2008 की है, जिसमें छोटी सी झील बनी हुई दिख रही है. नवंबर 2011 में यह झील सूख जाती है. लेकिन 6 जून 2013 को इस झील में बर्फ और पानी दिख रहा है. यानी हादसे से दस दिन पहले. सितंबर 2013 की आखिरी तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कैसे झील की दीवार (लाल घेरे में) टूटी हुई है. इस जगह से हिमालय की सुनामी बहकर केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरीकुंड, सोनप्रयाग, फाटा होते हुए हरिद्वार तक पहुंची थी.
समुद्र तल से करीब 8990 फीट ऊपर मौजूद रामबाड़ा कस्बा केदारनाथ आपदा में गायब हो गया था. 250 से ज्यादा दुकानें, इमारतें और घर थे. यहां पर नदी की तलहटी की ऊंचाई 16 से 65 फीट ऊपर हो गई थी. रामबाड़ा असल में मंदाकिनी नदी से करीब 30 से 35 फीट ऊपर बसा था. ज्यादा बारिश की वजह से मंदाकिनी नदी का बहाव बढ़ता गया. चौड़ाई भी. नदी का बहाव 164 फीट ऊपर तक था. आसपास का 2 वर्ग किलोमीटर का इलाका गायब हो गया.
ये है खीर गंगा के भोज पत्र और बांज जंगल घाटी की तस्वीर है. बाएं तरफ की तस्वीर सितंबर 2012 की है. दाहिने तरफ की फोटो 16 जून 2013 के बाद ली गई है. इसमें भारी मात्रा में भूस्खलन दिखाई दे रहा है. साथ ही भारी मात्रा में जमा हुआ मलबा भी.
यहां पर विष्णुप्रयाग के लंबाघर स्थित बांध की तस्वीरें हैं. बाएं है हादसे से पहले की तस्वीर जहां पर बांध के बीच से हल्की धारा में अलकनंदा बह रही हैं. जबकि दूसरी तस्वीर है 17 जून 2013 की, जिसमें बांध टूट चुका है. नदी की चौड़ाई भी बढ़ी हुई है. चारों तरफ मलबा और पत्थर है. नदी बेहद पतली धार में बह रही है.
गोविंदघाट की फोटो. बाएं जून 2012 की तस्वीर है, जिसमें कुछ कार पार्किंग भी दिख रही है. काफी भीड़ भी है. लेकिन हादसे के बाद 17 जून 2013 को इस जगह पर पार्किंग नहीं दिख रही है. इमारतें टूटी पड़ी हैं. ऊपर की तरफ बना ब्रिज भी गायब हो चुका है.