कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले करीब 14.4 फीसदी रोगियों में हाइपरग्लाइसीमिया के मामले पाए गए हैं. इसमें रक्त में शुगर का स्तर अचानक बढ़ जाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए वैसे तो कई दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन इस स्थिति से निपटने के लिए डीपीपी-4 इन्हिबिटर सर्वाधिक सुरक्षित पाए गए हैं. सीएसआईआर (CSIR) द्वारा विकसित मधुमेह की दवा बीजीआर-34 (BGR-34) में ये कंपोनेंट प्राकृतिक रूप से मौजूद हैं क्योंकि इनका स्रोत दारुहरिद्रा है. इसका इस्तेमाल इस दवा को बनाने में किया गया है. (फोटोःगेटी)
मधुमेह जर्नल डाइबिटीज में प्रकाशित शोध के अनुसार अस्पताल से ठीक होकर आने के बावजूद 14.4 फीसदी रोगी हाइपरग्लाइसीमिया के शिकार हो रहे हैं. एल्सवियर जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार ऐसे रोगियों में सर्वाधिक सुरिक्षत और प्रभावी उपचार डीपीपी-4 इन्हिबिटर पाया गया है. इसमें मुख्यतः तीन शुगर अवरोधक होते हैं जो सीटाग्लिप्टिन, लिनाग्लिप्टिन तथा विन्डाग्लिप्टिन शामिल हैं. (फोटोःगेटी)
जर्नल आफ ड्रग रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार डीपीपी-4 इन्हिबिटर का प्राकृतिक मुख्य स्रोत दारुहरिद्रा औषधीय पौंधा है. बीजीआर-34 को विकसित करने वाले सीएसआईआर लखनऊ की प्रयोगशाला एनबीआरआई के वैज्ञानिक डा. एकेएस रावत ने कहा कि दारुहरिद्रा के इस गुण के कारण ही इसे बीजीआर में शामिल किया गया. तब वैज्ञानिकों ने दारुहरिद्रा की इस क्षमता का गहन अध्ययन किया था. (फोटोःगेटी)
बीजीआर-34 में दारुहरिद्रा के अलावा दो और तत्व मौजूद हैं जो हाइपरग्लाइसीमिया को नियंत्रित करते हैं. इनमें एक है जिमनेमिक एसिड. केम रेक्सीव जर्नल में हाल में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि जिमनेमिक एसिड मधुमेह रोगियों में हाइपरग्लाइसीमिया को रोकने में मदद करता है. इसका स्रोत गुड़मार औषधीय पादप है. (फोटोःगेटी)
इसी प्रकार मेथी में पाया जाने वाले रसायन ट्रिगोनोसाइड आईबी भी हाइपरग्लाइसीमिया के खिलाफ अवरोधक का कार्य करता है. एनवायरमेंटल चैलेंजेज जर्नल में इस बाबत विस्तृत शोध प्रकाशित हुआ है. बीजीआर-34 में गुड़मार और मेथी के कंपोनेंट भी शामिल हैं. (फोटोःगेटी)