दुनिया में कई तरह के विचित्र जीव हैं. सबसे ज्यादा समुद्र में. हाल ही में वैज्ञानिकों को एक ऐसी मछली देखने को मिली जो अपने माथे (Forehead) से देखती है, क्योंकि उसकी आंख वहीं पर है. माथे पर मौजूद दो आंखें हरे रंग के बल्ब की तरह दिखती हैं. अभी तक ऐसी मछली नहीं देखी गई थी. वैज्ञानिकों ने इस मछली को कैलिफोर्निया के मॉन्टेरे बे (Monterey Bay) की गहराइयों में खोजा है. (फोटोः MBARI)
हैरानी की बात ये है कि इस मछली की आंख उसके माथे से बाहर झांकती हुई है. इस विचित्र जीव का नाम बैरलआई फिश (Barrelsys Fish) है. यह बेहद दुर्लभ है. बहुत ही कम देखने को मिलती है. इसका वैज्ञानिक नाम मैक्रोपिन्ना माइक्रोस्टोमा (Macropinna Microstoma) है. मॉन्टेरे बे एक्वेरियम रिसर्च इंस्टीट्यूट (MBARI) के वैज्ञानिकों ने इसे अब तक इसे सिर्फ 9 बार देखा है. आखिरी बार यह 9 दिसंबर 2021 को दिखाई दी थी. (फोटोः MBARI)
पिछले हफ्ते MBARI के रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल (ROV) ने जब मॉन्टेरे बे यानी मॉन्टेरे की खाड़ी में गोता लगाया तो वैज्ञानिक हैरान रह गए. क्योंकि उन्हें स्क्रीन पर एक ऐसी मछली देखने को मिल रही थी, जो अत्यधिक दुर्लभ है. यह मछली करी 2132 फीट की गहराई में गोते लगा रही थी. माथे पर हरे रंग की आंख लिए ये मछली जिस जगह मिली है, वह प्रशांत महासागर के भीतर सबसे गहरे सबमरीन कैन्यन है. (फोटोः MBARI)
MBARI के सीनियर साइंटिस्ट थॉमल नोल्स ने कहा कि पहले तो बैरलआई फिश आकार में छोटी लग रही थी. लेकिन थोड़ी ही देर में मुझे समझ आया कि मैं दुनिया के सबसे दुर्लभ जीवों में से एक जीव को अपनी आंखों के सामने देख रहा हूं. यह कुछ और हो ही नहीं सकता. ऐसा कहा जाता है कि समुद्री जीवों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को यह मछली जीवन में एक बार ही देखने को मिलती है. (फोटोः MBARI)
ROV की रोशनी जब मछली के ऊपर पड़ी तो सामने हरे रंग की आंख लिए यह मछली गोते लगा रही थी. आंखों के ऊपर तरल पदार्थ से भरा एक कवर था. जो आंखों की सुरक्षा करता है. इसकी आंखों रोशने की प्रति संवेदनशील होती है, इसलिए रोशनी देखते ही ये थोड़ा इधर-उधर भागने लगती हैं. इनकी आंखों पर सीधे रोशनी पड़ने से इन्हें दिक्कत होती है. इनकी आंखों के सामने आगे की तरफ दो छोटे-छोटे कैप्सूल होते हैं, सूंघने के लिए काम आते हैं. (फोटोः MBARI)
आमतौर पर बैरलआई फिश (Barrelsys Fish) जापान के बेरिंग सागर (Bering Sea) से लेकर बाजा कैलिफोर्निया तक गहरे समुद्र में मिलती है. ये समुद्र के ट्वीलाइट जोन में गोते लगाती हैं यानी 650 फीट से 3300 फीट के बीच की गहराई में पर ये 2000 से 2600 फीट की गहराई में रहती हैं. यहीं से पानी का रंग गहरे रंग का होने लगता है और इसी गहराई से पानी में रोशनी कम होने लगती है यानी अंधेरा छाने लगता है. (फोटोः MBARI)
I spy with my barreleye, a new #FreshFromTheDeep!
— MBARI (@MBARI_News) December 9, 2021
During a dive with our education and outreach partner, the @MontereyAq, the team came across a rare treat: a barreleye fish (Macropinna microstoma). pic.twitter.com/XjYj04MOCt
MBARI के साइंटिस्ट ब्रूस रॉबिसन ने कहा कि हमें यह नहीं पता है कि बैरलआई फिश (Barrelsys Fish) की आबादी कितनी है. ये ट्वीलाइट जोन में दिखने वाली बेहद दुर्लभ मछली है. इसके बदले लैंटर्नफिश, ब्रिस्टलमाउथ जैसी मछलियां आसानी से दिख जाती हैं, लेकिन ये आसानी से नहीं दिखती. बेहद दुर्लभ होती है. हमें तो यह भी आइडिया नहीं है कि इसकी आंखों के ऊपर जो तरल पदार्थ की कोटिंग होती है, वो किस तरह से काम आती है. क्योंकि अभी तक हमने किसी मछली को पकड़कर उसकी स्टडी नहीं की है. (फोटोः MBARI)
आमतौर पर ये मछलियां शिकार नहीं करतीं. ये चुपचाप एक जगह पर गोता लगाती रहती हैं. जैसे ही मुंह के सामने कोई जू-प्लैंक्टॉन, छोटी मछली, या जेलीफिश आती है ये उसे खा लेती हैं. उसके बाद फिर वहीं उसी जगह पर बिना हिले गोता लगाती रहती हैं. ये हेलिकॉप्टर की तरह एक ही जगह पर टिकी रहती है, इसमें उनके चौड़े और फ्लैट फिन मदद करते हैं. इसकी आंखें इतनी कमाल की होती हैं कि ये अपने ऊपर तैर रही मछलियों की परछाई से उसके आकार, लंबाई-चौड़ाई, गति आदि का अंदाजा लगा लेती है. उसके बाद शिकार के अपने पास आने का इंतजार करती है. (फोटोः MBARI)
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी आंखों का हरा रंग उसे सूरज की रोशनी को फिल्टर करने में मदद करता है. जैसे ही मछली को कोई बायोल्यूमिनिसेंट जेली या छोटे क्रस्टेशियंस दिखाई देते हैं, इसकी आंखों के हरे बल्ब थोड़ा बाहर की ओर निकल आते हैं. ताकि यह पता कर सके कि शिकार जा कहां रहा है. ऐसा भी माना जाता है कि बैरलआई फिश (Barrelsys Fish) स्पॉन्ज जैसे जीवों के भोजन छीनकर खा लेती है. इसके लिए यह थोड़ा मेहनत करती है. (फोटोः MBARI)
साइंटिस्ट यह मानते हैं कि इसकी आंखों के चारों तरफ मौजूद पारदर्शी परत इसे स्टिंगरे, अन्य मछलियों के नुकीले सूंड़ों और दांतों से बचाते हैं. ब्रूस रॉबिसन ने कहा कि यह सारी बातें हम अंदाजे के तौर पर कह रहे हैं. हमें इस मछली के प्राकृतिक विकास के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हमें इसकी आंखों के ऊपर की पारदर्शी परत के बारे में साल 2000 तक कुछ नहीं पता था. हमें इस जीव के बारे में अभी और सीखना बाकी है. (फोटोः MBARI)
ब्रूस ने कहा कि हमारा कोई मकसद नहीं है इस प्यारे जीव का सैंपल जमा करने का. हम इसी तरह से इसका अध्ययन करते रहेंगे. हमारा एक्वेरियम या लैब इस तरह से तैयार नहीं है, जहां हम ऐसी मछलियों को रख सकें. हमारे समुद्र में कई विचित्र जीव हैं, जिनके बारे में हमें कुछ नहीं पता. हम उनकी तस्वीरें और वीडियो दिखा सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने एक्वेरियम में लाकर नहीं रख सकते. क्योंकि यह प्रकृति के एकदम खिलाफ हो जाएगा. (फोटोः MBARI)