कोरोना वायरस की दूसरी लहर न फैले और लोग सुरक्षित रहें, इसके लिए भारतीय चिकित्सा संघ (Indian Medical Association - IMA) ने केंद्र सरकार से पूर्ण लॉकडाउन की मांग की थी. लेकिन केंद्र सरकार ने उनके प्रस्ताव को कूड़ेदान में डाल दिया. IMA ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा था कि केंद्र सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय नींद से जागे. कोरोना संकट में आ रही चुनौतियों का सामना करे. IMA ने आरोप लगाया है कि उनके सदस्यों और चिकित्सा क्षेत्र के विद्वानों की सलाह को भारत सरकार ने दरकिनार कर दिया. हमारे प्रस्तावों को केंद्र ने कूड़ेदान में डाल दिया.
IMA ने आरोप लगाया है कि कोरोना महामारी को लेकर जो भी फैसले लिए जा रहे हैं, उनका जमीनी स्तर से कोई लेना-देना नहीं है. ऊपर बैठे लोग जमीनी हकीकत को समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं. IMA ने अपने पत्र में कहा है कि वह पिछले 20 दिनों से लगातार केंद्र सरकार को योजनाबद्ध तरीके से पहले से घोषणा करके पूर्ण लॉकडाउन लगाने की गुजारिश कर रही है. (फोटोः गेटी)
अलग-अलग लॉकडाउन से कुछ नहीं होगा. अलग-अलग राज्य अपने-अपने स्तर पर लॉकडाउन लगा रहे हैं, इससे कोई फायदा नहीं होने वाला. केंद्र सरकार से IMA ने यह भी रिक्वेस्ट की कि चिकित्सा व्यवस्था को सुधारा जाए, मेडिकल टीम को समय और सुविधाएं दी जाएं ताकि वो बढ़ते हुए कोरोना मामलों को सही तरीके से संभाल सके. इससे कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी. (फोटोःगेटी)
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association - IMA) ने केंद्र सरकार से पूछा है कि भारत सरकार ने वैक्सीनेशन प्रक्रिया को इतनी देर से क्यों शुरू किया? क्यों भारत सरकार वैक्सीन को इस तरीके बांट पाई ताकि वह हर किसी तक पहुंच सके? मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से यह भी पूछा है कि क्यों अलग-अलग वैक्सीन अलग-अलग कीमत तय की गई है. (फोटोःगेटी)
#PMOIndia #NITIAayog #LargestVaccineDrive #IMAIndiaOrg IMA demands the health ministry wake up from its slumber and responds to mitigate the growing challenges of the pandemic. pic.twitter.com/7OxKgLhi9Q
— Indian Medical Association (@IMAIndiaOrg) May 8, 2021
IMA ने केंद्र सरकार से ये भी पूछा कि क्यों देश में ऑक्सीजन की कमी हो गई? क्यों वायरस को नियंत्रित करने में डॉक्टर्स विफल हो रहे हैं? देश में कोरोना वायरस को लेकर नए रिसर्च क्यों नहीं हो रहे हैं? IMA से स्वास्थ्य मंत्रालय की सुस्ती और कोरोना को लेकर उठाए गए कदमों पर भी चिंता जाहिर की है. (फोटोःगेटी)
IMA ने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने उसकी बात मानकर पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया होता तो आज 4 लाख कोरोना केस प्रतिदिन देखने को नहीं मिलते. आज हर दिन मध्यम संक्रमित से गंभीर संक्रमित होने वाले मामलो की संख्या में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है. रात में कर्फ्यू लगाने से कोई फायदा नहीं हुआ है. (फोटोःगेटी)
IMA ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कोरोना को रोकने के लिए इनोवेटिव तरीके अपना रहे हैं. उन्होंने कहा कि 1 मई से 18 साल के ऊपर वाले सभी लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाई जाएगी. लेकिन दुख की बात ये है कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस पूरी मुहिम का सही रोड मैप नहीं बना पाया. वैक्सीन के स्टॉक की तैयारी नहीं कर पाया. इसकी वजह से कई जगहों पर वैक्सीनेशन ड्राइव शुरु ही नहीं हुई. (फोटोःगेटी)
कोरोना वायरस महामारी पर मचे हाहाकार को लेकर केंद्र सरकार की हर जगह निंदा हो रही है. इससे पहले प्रसिद्ध साइंस जर्नल नेचर में रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि भारत और ब्राजील की सरकार ने कोरोना वायरस के लेकर दी गई वैज्ञानिकों की सलाह नहीं मानी इसलिए यहां पर कोरोना की दूसरी लहर भयावह दो गई. अगर वैज्ञानिकों की सलाह मानी गई होती तो कोरोना वायरस की खतरनाक दूसरी लहर को नियंत्रित करना आसान होता. दोनों देशों की सरकारों ने साइंटिस्ट्स की सलाह न मानकर कोरोना नियंत्रण का अच्छा मौका खो दिया. (फोटोःगेटी)
पिछले हफ्ते भारत में कोविड-19 की वजह से 4 लाख से ज्यादा लोग एक दिन में संक्रमित हुए. वहीं 3500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. ये आंकड़ें इतने भयावह थे कि दुनियाभर से भारत की मदद के लिए कई देश आगे आए. उन्होंने ऑक्सीजन, वेंटिलेटर्स और आईसीयू बेड्स व अन्य जरूरी वस्तुओं की सप्लाई की गई. (फोटोःगेटी)
Governments that ignore or delay acting on scientific advice are missing out on a crucial opportunity to control the pandemic. https://t.co/5tLTInZpUj
— Nature News & Comment (@NatureNews) May 4, 2021
नेचर जर्नल के मुताबिक भारत और ब्राजील करीब 15 हजार किलोमीटर दूर हैं लेकिन दोनों में कोरोना को लेकर एक ही समस्या है. दोनों देशों के नेताओं ने वैज्ञानिकों की सलाह या तो मानी नहीं या फिर उसपर देरी से अमल किया. जिसकी वजह से दोनों देशों में हजारों लोगों की असामयिक मौत हो गई. (फोटोःगेटी)
नेचर जर्नल के लेख में बताया गया है कि भारत में पिछले साल सिंतबर में कोरोना केस उच्चतम स्तर पर था. तब 96 हजार लोग संक्रमित हो रहे थे. इसकेक बाद इस साल मार्च के शुरुआत में मामले कम होकर 12 हजार तक पहुंच गए थे. इस कमी को देखकर भारत की सरकार 'आत्मसंतुष्ट' हो गई थी. इस दौरान सारे बिजनेस वापस से खोल दिए गए. (फोटोःगेटी)
लोगों की भीड़ जमा होने लगी. लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना कम कर चुके थे. चुनावी रैलियां, धरने-प्रदर्शन और धार्मिक आयोजन हो रहे थे. ये पूरी प्रक्रिया मार्च से लेकर अप्रैल तक चली है. जिसकी वजह से कोरोना केस की संख्या तेजी से बढ़ी है. भारत में एक और दिक्कत है कि यहां के वैज्ञानिक आसानी से कोविड-19 रिसर्च के डेटा को एक्सेस नहीं कर पाते. (फोटोःगेटी)
जिसकी वजह से वैज्ञानिक सही भविष्यवाणी करने में विफल हो जाते हैं. वैज्ञानिकों को कोरोना के टेस्ट रिजल्ट और अस्पतालों में हो रहे क्लीनिकल जांचों के सही और पर्याप्त परिणाम नहीं मिल पाते. एक और बड़ी दिक्कत है कि बड़े पैमाने पर देश में जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं हो पा रही है. (फोटोःगेटी)
देश के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर कृष्णास्वामी विजयराघवन ने देश में मौजूद चुनौतियों की बात मानी है. साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि कैसे सरकार से अलग रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक डेटा एक्सेस कर सकते हैं. हालांकि कुछ आंकड़े अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं. उनकी जांच चल रही है. नेचर में लिखा है कि दो साल पहले देश के 100 इकोनॉमिस्ट और आंकड़ों के रणनीतिकारों ने मोदी सरकार को पत्र लिखकर डेटा एक्सेस की मांग की थी. (फोटोःगेटी)