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साइंस न्यूज़

Chandrayaan-3 Rocket Transport: रॉकेट जहां जोड़ा जाता है, वहां से कैसे पहुंचता है लॉन्च पैड तक?

Chandrayaan-3 Rocket Transport
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ISRO 14 जुलाई 2023 की दोपहर 2:35 बजे चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग करेगा. चंद्रयान-3 को अपने सिर पर उठाकर LVM-3 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस पोर्ट के दूसरे लॉन्च पैड की तरफ बढ़ चुका है. अब सिर्फ उसे लॉन्च पैड पर जाकर सेट होना है. (सभी फोटोः ISRO)

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दूसरा लॉन्च पैड फोटो में एकदम दाहिनी तरफ है. बाईं तरफ व्हीकल असेंबली बिल्डिंग है. बीच में मोबाइल लॉन्च पैडेस्टल पर खड़ा है LVM-3 रॉकेट. जिसके ऊपर सवार है चंद्रयान-3. दूसरे लॉन्च पैड की शुरुआत साल 2005 में हुई थी. क्योंकि इसरो के पास ज्यादा लॉन्चिंग की डिमांड आ गई थी. दुनिया भर के देश और निजी कंपनियां इसरो से लॉन्चिंग कराना चाहती थीं. क्योंकि इसरो सबसे किफायती और भरोसेमंद स्पेस एजेंसी है. 

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इसके बाद इसरो ने झारखंड की राजधानी रांची में मौजूद Mecon Limited को दूसरे लॉन्च पैड के इंटीग्रेशन, ट्रांसफर और लॉन्च का काम दिया. वो बन गया. जिस प्लेटफॉर्म पर रॉकेट रखा रहता है, उसे मोबाइल लॉन्च पेडेस्टल (Mobile Launch Pedestal - MLP) कहते हैं. 

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जहां रॉकेट को जोड़ा जाता है, उसे व्हीकल असेंबली बिल्डिंग (Vehicle Assemby Builing - VAB) कहते हैं. व्हीकल मतलब रॉकेट. यहां पर रॉकेट तीन या चार स्टेज को जोड़ा जाता है. सैटेलाइट या चंद्रयान जैसे उपग्रह अलग बिल्डिंग में रॉकेट के ऊपरी हिस्से में लगाए जाते हैं. 

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फिर उसे ट्रक से लाकर रॉकेट के ऊपरी हिस्से पर VAB के अंदर लगाया जाता है. जब एक बार पूरा रॉकेट सेट हो जाता है. तब इसके चारों तरफ मौजूद मोबाइल क्रेन्स को हटा लिया जाता है. मोबाइल लॉन्च पेडेस्टल धीरे-धीरे व्हीकल असेंबली बिल्डिंग से निकलकर लॉन्च पैड की ओर बढ़ता है. 

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लॉन्च पैड पर पहुंचने के बाद फिर इसके चारों तरफ मोबाइल क्रेन लग जाते हैं, जिनसे रॉकेट सीधा खड़ा रहता है. साथ ही ईंधन भरने का काम किया जाता है. सारे पेलोड्स और तकनीकी चीजों की जांच की जाती है. रॉकेट के लॉन्च होने के बाद मोबाइल लॉन्च पेडेस्टल वापस VAB में चला जाता है. 

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सैटेलाइट, रॉकेट और लॉन्च पैड पर मिशन कंट्रोल सेंटर (Mission Control Center) से नजर रखी जाती है. चंद्रयान-3 सतीश धवन स्पेस पोर्ट के दूसरे लॉन्च पैड से छोड़ा जाएगा. यहां से अब तक 24 लॉन्च हो चुके हैं. ये लॉन्च पैड भारी सैटेलाइट्स और रॉकेट्स के लिए है. इस पैड में ईंधन को स्टोर करने की क्षमता है. रॉकेट की रिपेयरिंग, सर्विसिंग और ट्रांसपोर्ट की सुविधा है. 

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वैसे इसरो के पास पहला लॉन्च पैड भी है. जो 1990 से एक्टिव है. इससे अब तक 37 लॉन्च हो चुके हैं. इस पूरे इलाके को लॉन्च कॉम्प्लेक्स कहते हैं. यहां पर दो लॉन्च पैड हैं. तीसरा बनाया जा रहा है. जिसके जरिए छोटे रॉकेट्स की लॉन्चिंग की जाएगी. जैसे- SSLV या निजी कंपनियों के छोटे रॉकेट्स. 

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रॉकेट की लॉन्चिंग के समय लॉन्च पैड से 2 किलोमीटर दूर तक कोई इंसान नहीं रहता. सारी मॉनिटरिंग कैमरों के जरिए होती है. जो टॉवरों और खंभों और छिपे हुए स्थानों पर लगे होते हैं. लॉन्च के समय रॉकेट तेज गर्मी, भारी मात्रा में धुआं और तेज आवाज करते हुए निकलता है. इसलिए लॉन्च पैड के आसपास जाने की अनुमति नहीं होती. 

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