विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान के कैबिनेट मिनिस्टर (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया कि हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) की विफलता से काफी कुछ सीखा है. नेशनल लेवल के एक्सपर्ट्स की सलाहों को मानकर चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) पर काम किया जा रहा है. इसमें चंद्रयान-2 वाली गलतियां नहीं होंगी. कई तरह के हार्डवेयर की सफल टेस्टिंग हो चुकी है. इसकी लॉन्चिंग अगस्त महीने में तय है. (फोटोः ISRO)
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस साल जनवरी से दिसंबर तक 19 लॉन्चिंग की तैयारी है. 8 लॉन्च व्हीकल मिशन, 7 स्पेसक्राफ्ट मिशन और 4 टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेशन मिशन शामिल हैं. कई मिशन कोविड-19 महामारी की वजह से लेट हुए हैं. लेकिन हमारे वैज्ञानिक कोरोना काल में भी काम करते रहे हैं. वो स्पेस मार्केट के अनुसार काम कर रहे हैं. फिलहाल अब हम आपको बताते हैं कि चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के बारे में बताते हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो (ISRO) चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन में लैंडर और रोवर भेजेगा. चांद के चारों तरफ घूम रहे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के साथ लैंडर-रोवर का संपर्क बनाया जाएगा. चांद के गड्ढों पर चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर अच्छे से उतर कर काम कर सकें, इसके लिए पिछले साल बेंगलुरु से 215 किलोमीटर दूर छल्लाकेरे के पास उलार्थी कवालू में नकली गड्ढे बनाए गए थे. (फोटोः पीटीआई)
Union Minister Dr. @DrJitendraSingh says, Chandrayaan-3 is scheduled for launch in August, 2022.@IndiaDST@isro@PIB_India@PBNS_India@DDNewslive@airnewsalerts
— PIB_Science and Technology (@PIBDST) February 3, 2022
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इसरो के सूत्रों ने बताया कि छल्लाकेरे इलाके में चांद के गड्ढे बनाने के लिए पिछले साल टेंडर जारी किए गए थे. इन गड्ढों को बनाने में करीब 24.2 लाख रुपये की लागत आई थी. ये गड्ढे 10 मीटर व्यास और तीन मीटर गहरे हैं. इन्हें बनाने के पीछे का मकसद था चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के लैंडर और रोवर के मूवमेंट की सही जांच की जा सके. लैंडर-रोवर में लगे सेंसर्स की जांच होगी. लैंडर सेंसर्स की परफॉर्मेंस टेस्ट किया जाएगा. इससे लैंडर की क्षमता का पता चलेगा. (फोटोः गेटी)
चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) में ज्यादातर प्रोग्राम पहले से ही ऑटोमेटेड होंगे. सैकड़ों सेंसर्स लगे होंगे. जो इसकी लैंडिंग और अन्य कार्यों में मदद करेंगे. लैंडर की लैंडिंग के समय ऊंचाई, लैंडिंग की जगह, गति, पत्थरों से लैंडर को बचाने में ये सेंसर्स मदद करेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रयान-3 चांद की सतह पर 7 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडिंग की प्रक्रिया शुरु हो जाएगी. 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर आते ही इसके सेंसर्स काम करने लगेंगे. (फोटोः ISRO)
सेंसर्स के अनुसार ही लैंडर अपनी दिशा, गति और लैंडिंग साइट का निर्धारण करेगा. इस बार इसरो वैज्ञानिक इसे लेकर किसी प्रकार की गलती नहीं करना चाहते. क्योंकि चंद्रयान-2 में सेंसर्स और बूस्टर्स में दिक्कत आने की वजह से उसकी हार्ड लैंडिंग हो गई थी. चंद्रयान-2 सतह से करीब 350 मीटर की ऊंचाई से तेजी से घूमते हुए जमीन पर गिरा था. (फोटोः ISRO)
ISRO साइंटिस्ट चाहते हैं चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर और रोवर का संपर्क बना रहे. ताकि किसी भी तरह की सूचना प्राप्त करनी हो तो ऑर्बिटर के जरिए आसानी से मिल सके. चंद्रयान-3 को जीएसएलवी-एमके 3 (GLSV-MK-3) रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. लॉन्चिंग श्रहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से होगी. (फोटोः ISRO)
चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के लैंडर की तरह चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के लैंडर में पांच नहीं चार ही थ्रोटल इंजन होंगे. चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर में पांच थ्रोटल इंजन थे. जिसमें से एक में आई खराबी की वजह से लैंडिंग खराब हो गई थी. इस बार चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के लैंडर में लेजर डॉप्लर विलोसीमीटर (LDV) लगाए जाने की भी खबर है. इससे लैंडिंग ज्यादा आसान हो सकती हैं. (फोटोः ISRO)