चीन हर क्षेत्र में कुछ बड़ा करने के लिए जाना जाता है. चाहे सड़क हो, चीन की दीवार हो, जनसंख्या हो या फिर कोई नई तकनीक. अब चीन एक ऐसा अंतरिक्षयान बनाना चाहता है जो दुनिया का सबसे बड़ा यान होगा. चीन की सरकार यह जांच कर रही है कि अगर एक किलोमीटर लंबा स्पेसशिप बनाया जाए तो उसके लिए क्या-क्या करना होगा. लेकिन मुद्दा ये है कि चीन इतन बड़ा अंतरिक्षयान बनाना क्यों चाहता है? क्या उससे दुश्मन देशों पर मिसाइलें छोड़ेगा? या एक ही बार में अपना अंतरिक्ष स्टेशन बना देगा. आइए जानते हैं चीन की इस हैरतअंगेज आइडिया के पीछे की कहानी... (फोटोःगेटी)
चीन के नेशनल नेचुरल साइंस फाउंडेशन (NNSFC) ने इस बारे में अपने वैज्ञानिकों को रिसर्च करने को कहा है. इस फाउंडेशन को चीन की साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय फंड देती है. इस रिसर्च की एक हल्की सी झलक NNSFC की एक रिपोर्ट में मिलती है. जिसमें साफतौर पर लिखा गया है कि हमें एक ऐसे विशालकाय स्पेसशिप को बनाने की तरफ जाना चाहिए, जिसका रणनीतिक महत्व हो. ताकि अंतरिक्ष में खोज हो सके, ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाया जा सके. धरती की कक्षा में ज्यादा दिन तक रहा जा सके. (फोटोःगेटी)
फाउंडेशन ने चीन के वैज्ञानिकों को कहा है कि वो इस क्षेत्र में रिसर्च करना शुरु कर दें. हालांकि यह भी निर्देश दिए गए हैं कि यान हल्का होना चाहिए. डिजाइन बेहतरीन और इसे बनाने की कीमत कम होनी चाहिए. ये यान जिन वस्तुओं से बनेगा वो ऐसे होने चाहिए जो अंतरिक्ष में ज्यादा से ज्यादा दिन टिक सकें. धरती की कक्षा में आराम से घूम सकें. सिर्फ शुरुआती फिजिबिलिटी यानी ये काम होगा या नहीं इस पर रिसर्च को करने के लिए फाउंडेशन के पास पांच साल का समय और 16.79 करोड़ का बजट है. (फोटोःगेटी)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पूर्व टेक्नोलॉजिस्ट मैसन पेक कहते हैं कि ये किसी साइंस फिक्शन से कम नहीं होगा. आइडिया बुरा या गलत नहीं है. लेकिन यह तभी संभव होगा जब इंजीनियरिंग और फंडामेंटल साइंस का मिलन होगा. सवाल ये है कि क्या चीन इन दोनों को बेहतरीन तरीके से मिला पाएगा. हालांकि वहां के लोग दुनिया की सबसे बड़ी चीजें बनाने में माहिर हैं. लेकिन यह स्पेस साइंस है. इसमें जरा सी गलती खरबों रुपयों का नुकसान कर देती है. (फोटोःगेटी)
मैसन पेक अब कॉर्नेवल यूनिवर्सिटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं. मैसन ने कहा कि यह संभव है. इतना बड़ा स्पेसशिप बनाया जा सकता है. लेकिन इसे बनाने के लिए उतने ही बड़े यंत्र, पार्ट्स, मानव संसाधन और बेहतरीन वैज्ञानिकों की जरूरत होगी. इस समय सबसे बड़ी दिक्कत तो आएगी इस पर खर्च होने वाले पैसे की. क्योंकि अंतरिक्ष में किसी वस्तु को लॉन्च करने की कीमत बहुत ज्यादा होती है. (फोटोःगेटी)
मैसन ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन यानी ISS मात्र 361 फीट चौड़ा है. इसे बनाने में 100 बिलियन डॉलर्स यानी 7.30 लाख करोड़ रुपये लगे हैं. अब सोचिए कि इससे करीब 10 गुना ज्यादा बड़ी कोई वस्तु बनाने में कितनी ज्यादा कीमत लगेगी. ये चीन के स्पेस बजट का कई गुना ज्यादा होगा. हो सकता है कि चीन को अपने रक्षा बजट में कमी करनी पड़े. कहीं न कहीं से तो उसे इतने पैसों की व्यवस्था करनी होगी. (फोटोःगेटी)
दूसरी दिक्कत ये आएगी कि स्पेसक्राफ्ट का डिजाइन और ढांचा कैसा होगा. ISS यानी स्पेस स्टेशन टुकड़ों में बनाकर जोड़ा गया है. उसमें इंसानों के रहने लायक व्यवस्थाएं की गई हैं. जिसकी वजह से उसका वजन भी बढ़ता है. अब समस्या ये आएगी कि चीन अगर एक किलोमीटर लंबा स्पेसक्राफ्ट बनाना चाहता है तो उसका वजन भी होगा. जबकि, उसने अपनी रिपोर्ट में साइंटिस्ट से कहा है कि इसे हल्का बनाने का प्रयास करें. (फोटोःगेटी)
मैसन ने कहा कि इसे बनाने की तकनीक पर निर्भर करेगा कि इसकी कीमत कितनी कम होती है. परंपरागत तरीका ये है कि इसके पार्ट्स को धरती पर बनाओ और फिर उसे अंतरिक्ष में ले जाकर जोड़ दो. लेकिन आज कल चल रही थ्रीडी प्रिटिंग तकनीक से इस काम को ज्यादा जल्दी किया जा सकता है. डिजाइन बदले जा सकते हैं. कुछ भी बनाने से पहले उसे कई बार कंप्यूटर पर जांचा जा सकता है. वह भी चारों तरफ से. (फोटोःगेटी)
एक और आकर्षक तरीका है लेकिन वो भी आसान नहीं होगा. क्योंकि अगर आपको इतना बड़ा यान बनाना है तो उसके लिए धातुओं की व्यवस्था चांद से कीजिए. वहां खनन करके उसे धरती पर लाकर यान बनाइए. क्योंकि चांद की ग्रैविटी कम है. इसलिए वहां से किसी भी चीज को पैक करके धरती पर लाना आसान होगा, लेकिन इसके चीन को चांद पर खनन प्रणाली सेट करनी होगी. मालवाहक स्पेसशिप तैयार करने होंगे. और उनका ये काम कई सालों के लिए आगे टल जाएगा. (फोटोःगेटी)
मैसन कहते हैं कि अंतरिक्षयान जितना बड़ा होता है, समस्याएं उतनी ही ज्यादा होती हैं. क्योंकि अंतरिक्षयान हवा में नहीं उड़ता. वह अंतरिक्ष में उड़ता है. वहां उसकी गति, उसकी दिशा, नियंत्रण, डॉकिंग और लॉन्चिंग पर अंतरिक्ष का कंट्रोल होता है. ये कहने की बात है कि किसी भी यान पर उसके पायलट का कंट्रोल होता है. उस जगह पर कंपन बहुत ज्यादा होता है. घर्षण बहुत ज्यादा होता है. रेडिएशन भी काफी ज्यादा होता है. ऐसे में यान इन सबसे बचकर रहे और लोगों को बचाकर रखे, तभी वह सफल माना जा सकता है. (फोटोःगेटी)