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साइंस न्यूज़

मंगल पर दिखी 'बर्फ की परतें', NASA की नई तस्वीरों से हैरान करने वाला खुलासा

MARS Ice clay NASA
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मंगल ग्रह पर 'बर्फ की परतें' दिखाई दी हैं. इसकी तस्वीरें अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के स्पेसक्राफ्ट मार्स रिकॉनसेंस ऑर्बिटर ने ली हैं. ये नई तस्वीरें नासा ने अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया हैंडल पर जारी की हैं. इन तस्वीरों को देखकर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ की याद आती है. इनकी वजह से मंगल ग्रह पर बड़ी-बड़ी झीलें बनीं हैं. हालांकि, नासा के वैज्ञानिकों ने एक नया खुलासा करके पूरी दुनिया को चौंका दिया है. (फोटोः NASA)

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नासा (NASA) के वैज्ञानिकों ने बताया कि हमने मार्स रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (Mars Reconnaissance Orbiter) की तस्वीरें देखी तो हैरान रह गए. मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव (Mar's South Pole) पर बड़ी-बड़ी बर्फीली झीलें दिखाई दे रही हैं. ये तस्वीरें मंगल ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगा रहे मार्स रिकॉनसेंस ऑर्बिटर ने ली हैं. लेकिन जांच करने के बाद जो बात सामने आई उससे नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के वैज्ञानिक भी अंचभित रह गए. (फोटोः NASA)

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नासा ने अपनी साइट पर लिखा है कि जहां पर पानी होता है, वहां पर जीवन होता है. लेकिन यह सिद्धांत सिर्फ धरती पर ही लागू हो रहा है. इसलिए हमारे वैज्ञानिक मंगल ग्रह की सूखी जमीन पर तरल पानी की खोज कर रहे हैं. हालांकि लाल ग्रह पर पानी की खोज करना इतना आसान नहीं है. दूर से देखने और तस्वीरों की जांच करने पर पता चलता है कि मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर बहुतायत में बर्फ है. (फोटोः NASA)

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नासा ने लिखा है कि अगर जरा सी गर्मी होती है तो बर्फ पिघलकर पानी हो जाता है. लेकिन यह स्थिति ज्यादा देर नहीं रहती. तरल पानी कुछ सेकेंड्स में ही भाप बन जाता है. मंगल ग्रह के वायुमंडल में लापता हो जाता है. साल 2018 में इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के साइंटिस्ट रॉबर्टो ओरोसेई ने मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर सतह की नीचे बर्फीली झीलें खोजी थीं. उन्होंने इसके सबूत यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर (Mars Express Orbiter) से जुटाए थे. (फोटोः NASA)

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जब बारीकी से इन तस्वीरों और राडार सिग्नलों की जांच की गई तो पता चला कि मंगल ग्रह पर बनी झीलों का स्रोत पानी या बर्फ नहीं है. बल्कि चिकनी मिट्टी (Clay) है. इस वजह से पिछले महीने प्राप्त आंकड़ों औस सिग्नलों की स्टडी के बाद तीन नए रिसर्च पेपर्स प्रकाशित किए गए. जिनमें ये बात सामान्य थी कि इन झीलों को सुखाने में चिकनी मिट्टी का बड़ा योगदान हो सकता है. (फोटोःगेटी)

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मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन कर रहे दुनिया भर के 80 वैज्ञानिक हाल ही में अर्जेंटीना के दक्षिणी तट पर स्थित उशुआइया गांव में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन मार्स पोलर साइंस एंड एक्सप्लोरेशन में मिले. यहां पर सभी वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर किए गए अपने अध्ययनों को एकदूसरे के साथ बांटा. जेपीएल के साइंटिस्ट जेफरी प्लॉट कहते हैं कि ऐसे कॉन्फ्रेंस से वैज्ञानिकों का ज्ञान बढ़ता है. डेटा और आंकड़े शेयर होते हैं. नए तरीके से अध्ययन करने का नया एंगल मिलता है.  (फोटोःगेटी)

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रॉबर्टो ओरोसेई और जेफरी प्लॉट ने कहा कि हम दोनों ने मार्स एडवांस्ड रडार फॉर सबसरफेस एंड आयनोस्फेयरिक साउंडिंग (MARSIS) के जरिए दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन करना शुरू किया. तब पता चला कि जिसे हम बर्फीली झील मान रहे हैं, हो सकता है वहां पर सिर्फ चिकनी मिट्टी हो. जो हवा के बहाव की वजह से ऐसी आकृति बना लेती है, जो ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के बर्फ की तरह दिखती है. (फोटोःगेटी)

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जेफरी ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर पानी या सतह के नीचे बर्फीली झीलें नहीं होंगी. लेकिन चिकनी मिट्टी की थ्योरी को खारिज नहीं किया जा सकता. साल 2015 में मार्स रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (Mars Reconnaissance Orbiter) ने मंगल ग्रह के ऊंचे पहाड़ों से गीली रेत को फिसलते और अपना आकार बदलते देखा था. शुरुआत में लगा कि यह पानी के बहाव की वजह से हो सकता है. लेकिन जब HiRISE यानी हाई रेजोल्यूशन इमेजिंग साइंस एक्सपेरीमेंट के जरिए जांच की तो पता चला कि वह सूखी रेत है, जो अपना आकार लगातार हवा के साथ बदलती रहती है. (फोटोःगेटी)

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एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉक्टोरल शोधार्थी और जेपीएल के इंटर्न आदित्य खुल्लर ने जेफरी प्लॉट के साथ मिलकर 44 हजार राडार डेटा का एनालिसिस किया था. ये डेटा मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव से जुटाए गए थे. इसे MARSIS ने जमा किया था. इसमें कहा गया था कि दक्षिणी ध्रुव पर सतह की नीचे बर्फीली झीले हैं. लेकिन हाल ही में हुई एक स्टडी यह खुलासा भी किया गया कि मंगल ग्रह पर इतनी ज्यादा ठंड है कि जिसकी वजह से वहां पर पानी तरल रूप में रह ही नहीं सकता. यह स्टडी जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुई थी. (फोटोःगेटी)

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इसके बाद आदित्य और जेफरी की स्टडी पर वैज्ञानिकों की दो अलग-अलग टीमों ने दोबारा से अध्ययन किया. एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के कारवर बीर्सन ने कहा कि मंगल ग्रह की सतह पर ऐसी कई वस्तुएं हो सकती हैं, जो रडार सिग्नल को पकड़कर धोखा दे सकती है. जैसे कि चिकनी मिट्टी (Clay) या फिर धातुओं से भरे पत्थर या फिर नमकीन बर्फ. नमकीन बर्फ इसलिए क्योंकि मंगल ग्रह पर पर्क्लोरेट्स (Perchlorates) नाम का नमक होता है, जो वहां की बर्फ में पाया जाता है. (फोटोःगेटी)

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यॉर्क यूनिवर्सिटी के आइजैक स्मिथ ने कहा कि वहां पर चिकनी मिट्टी (Clay) है. जिसे स्मेकटाइट्स (Smectites) कहते हैं. यह मंगल ग्रह पर लगभग हर जगह मौजूद है. स्मेकटाइट्स सामान्य पत्थरों जैसा दिखता है. जो खुद सदियों पहले पानी से बना होगा. जब आइजैक स्मिथ ने इस पत्थर को लैब में विकसित करके उसपर लिक्विड नाइट्रोजन डाला. इससे वह पत्थर माइनस 50 डिग्री सेल्सियस पर जम गया. यही तापमान लगभग मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर रहता है.  (फोटोःगेटी)

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आइजैक स्मिथ ने जमे हुए स्मेकटाइट्स पर रडार के सिग्नल फेंके तो उन्होंने देखा कि यह ठीक वैसा ही है जैसा MARSIS रडार से मिले आंकड़े हैं. इसके बाद इनके साथियों ने मिलकर मंगल ग्रह पर फेंके गए रडार सिग्ननल वाली जगहों के डेटा का फिर से एनालिसिस किया. उन्होंने इस काम के कॉम्पैक्ट रिकॉनसेंस इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (CRISM) की मदद ली. इसने स्मेकाटाइट्स पर सिग्नल तो भेजा लेकिन वह सिग्नल इसे पार नहीं कर पाया. (फोटोःगेटी)

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इसके बाद आइजैक ने खुलासा किया कि मंगल ग्रह के साउथ पोल पर चारों तरफ स्मेकटाइट्स फैले हुए हैं. यानी एक तरह की चिकनी मिट्टी जो बर्फीली झीलों के होने का आभास कराते हैं. ये रोशनी और सिग्नलों को रिफ्लेक्ट करके किसी भी आधुनिक यंत्र या कैमरे को बर्फ या पानी की मौजूदगी का झूठा सबूत दे सकते हैं. (फोटोःगेटी)

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जेफरी प्लॉट ने कहा कि इस स्टडी को पुख्ता करने के लिए सिर्फ की तरीका है कि मंगल ग्रह के दक्षिणी इलाके में एक स्पेसक्राफ्ट उतारा जाए. उससे मंगल की सतह के अंदर कई किलोमीटर तक ड्रिलिंग की जाए. तब कहीं जाकर यह बात पुख्ता तौर पर पता चलेगी कि वहां चिकनी मिट्टी (Clay) है या सच में बर्फीली झीलें मौजूद हैं. लेकिन यह थ्योरी एक नई दिशा में अध्ययनों को बढ़ावा दे सकती है. (फोटोःगेटी)

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