अचानक से वैज्ञानिकों को पता लगा कि अब एक महीने में एक एस्टेरॉयड धरती से टकराने वाला है. उनके पास रॉकेट दागकर उसी दिशा बदलने या उसके टुकड़े करने का टाइम नहीं है, तब दुनिया को कैसे बचाएंगे? एस्टेरॉयड के ऐसे हमलों से बचने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नायाब तरीका निकाला है. इतने कम समय में ऐसे खतरे से बचने के लिए वैज्ञानिक अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स का सहारा लेंगे. आइए जानते हैं कैसे? (फोटोः एयरबस)
यूरोपियन एयरोस्पेस कंपनी एयरबस (Airbus) ने एक स्टडी की है, जिसमें बताया गया है कि कम समय में एस्टेरॉयड की दिशा कैसे बदली जा सकती है. एयरबस ने कहा कि हमारी धरती के चारों तरफ हजारों सैटेलाइट्स घूम रहे हैं. ये संचार के लिए उपयोग में लाए जाते हैं. इनमें काम भर का ईंधन भी बचा होता है. बड़े आकार के इन संचार उपग्रहों को तुरंत धरती की तरफ आ रहे एस्टेरॉयड की तरफ घुमाकर तेजी से लॉन्च करना होगा. ताकि इनकी टक्कर से एस्टेरॉयड की दिशा में परिवर्तन हो. (फोटोःगेटी)
इस स्टडी को यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने कमीशन किया है. इस प्रक्रिया को साइंटिस्ट फास्ट काइनेटिक डिफ्लेक्शन (FastKD) बुला रहे हैं. यह प्रलय जैसी स्थिति आने से बचने के तरीके को बताने वाली स्टडी है. क्योंकि वैज्ञानिकों को आशंका है कि ऐसा एक दिन जरूर होगा. आमतौर पर संचार उपग्रह (Communication Satellites) धरती के चारों तरफ जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (Geostationary Orbit) में होते हैं. (फोटोःगेटी)
संचार उपग्रह (Communication Satellites) धरती के चारों तरफ 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में चक्कर लगाते हैं. आमतौर पर इनका वजहन 4 से 6 टन होता है. यानी किसी छोटी बस के बराबर. अगर सही ट्रैजेक्टरी और एंगल से इन्हें एस्टेरॉयड की तरफ लॉन्च किया जाए तो इतनी ताकत रखते हैं कि एस्टेरॉयड की दिशा में बड़ा परिवर्तन कर सकें. (फोटोःगेटी)
एयरबस के FastKD स्टडी के साइंटिस्ट अलबर्ट फाल्के ने कहा कि अगर धरती की तरफ कोई 1000 फीट- चौड़ा एस्टेरॉयड आ रहा है, तो उसकी दिशा बदलने के लिए 10 संचार उपग्रहों के टक्कर की जरूरत होगी. वह भी बेहद कम समय में. इसलिए इन सैटेलाइट्स की टक्कर को सिंक्रोनाइज करना होगा. ताकि हर सैटेलाइट उसे टक्कर मारकर दूर भेजे न कि किसी सैटेलाइट के टक्कर से उसकी दिशा धरती की ओर हो जाए. (फोटोःगेटी)
अलबर्ट फाल्के ने बताया कि ये संचार उपग्रह (Communication Satellites) बहुत भारी और बड़े होते हैं. साथ ही इनमें काफी ज्यादा फ्रिक्वेंसी भी होती है. इसका मतलब ये है कि ये पहले से इस तरह के कामों के लिए तैयार हैं. बस इस बात का ध्यान रखना है कि सैटेलाइट निर्माता भविष्य में एस्टेरॉयड को ध्यान में रखकर सैटेलाइट्स का निर्माण करें, ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर इनका उपयोग एस्टेरॉयड डिफ्लेक्टर के तौर पर किया जा सके. (फोटोःगेटी)
Repurposed communications satellites could help save humanity from an asteroid impact https://t.co/qULzUDFxUw
— Live Science (@LiveScience) July 13, 2021
साल 2019 मे दुनियाभर के व्यवसायिक सैटेलाइट ऑपरेटर्स ने 15 जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स का ऑर्डर दिया था. एयरबस का मानना है कि जैसे ही कोई वैज्ञानिक या स्पेस एजेंसी इस बात का खुलासा करती है कि धरती की तरफ एस्टेरॉयड आ रहा है, सैटेलाइट ऑपरेटर्स को अपने सैटेलाइट्स को उस एस्टेरॉयड की तरफ तेजी से लॉन्च करना होगा. यानी एक संचार उपग्रह तत्काल एंटी-एस्टेरॉयड वेपन (Anti-Asteroid Weapon) बन जाएगा. (फोटोःगेटी)
एयरबस के मुताबिक अगर लयबद्ध तरीके से एस्टेरॉयड पर सैटेलाइट्स से हमला किया जाए तो वह अपनी दिशा बदल देगा. अगर उसकी दिशा में एक से दो इंच का भी बदलाव आता है, तो वह धरती के बगल से निकल जाएगा. इससे एक बड़ी आपदा आने से बच जाएगी. कम से कम टक्कर की वजह से होने वाले असर जैसा नुकसान तो नहीं होगा, क्योंकि इससे कम नुकसान में सैटेलाइट्स की टक्कर होगी. (फोटोःगेटी)
अलबर्ट फाल्के ने कहा कि इस मिशन की सफलता का श्रेय रॉकेट्स को जाएगा. ऐसी स्थिति से बचने के लिए अगर हम एस्टेरॉयड की टक्कर से एक महीने पहले 10 से 15 संचार उपग्रह अंतरिक्ष में दाग दें तो ये हमें बड़ी तबाही से बचा सकते हैं. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि इन उपग्रहों को धरती के चारों तरफ स्थापित करना होगा, वह भी जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में ताकि दूरी का ख्याल रखा जा सके. (फोटोःगेटी)
अलबर्ट ने कहा कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पिछले एक दशक में एस्टेरॉयड्स की पहचान, उनकी दिशा और गति को समझने की तकनीक विकसित कर ली है. ये एक किलोमीटर चौड़े एस्टेरॉयड को कई करोड़ किलोमीटर दूर से पहचान लेते हैं. लेकिन इसके बावजूद कुछ ऐसे भी एस्टेरॉयड्स हैं जो छह से आठ सालों में पहचान में नहीं आए. ये एकदम नजदीक आने पर वैज्ञानिकों की नजर में आए. (फोटोःगेटी)
अलबर्ट फाल्के ने कहा कि ये संभव है कि खतरनाक एस्टेरॉयड आपको सिर्फ एक महीने पहले ये पता चले कि कोई एस्टेरॉयड तेजी से धरती की तरफ आ रहा है, आपको तैयारी का समय ही न मिले. साल 2013 में चीलाबिंस्क एस्टेरॉयड (Chelyabinsk Asteroid) के कुछ छोटे हिस्से रूस के ऊपर से निकले थे, जिसकी वजह से 1200 लोग घाटल हो गए थे. इनके निकलने की वजह से पैदा हुई शॉकवेव से ही कई इमारतें ध्वस्त हो गई थीं. कई क्षतिग्रस्त थीं. (फोटोःगेटी)
सैटेलाइट बनाने वाली कंपनियों को सिर्फ इतना करना है कि अपने सैटेलाइट्स में थोड़ा बदलाव करके ज्यादा ईंधन, बेहतर नेविगेशन-गाइडेंस सिस्टम, डीप स्पेस नेटवर्क लैस करें, ताकि एस्टेरॉयड पर हमला करते वक्त सैटेलाइट से संपर्क बना रहे. कुछ सैटेलाइट्स को इसी तरह से बनाकर इमरजेंसी के लिए तैयार रखा जाए. पूरी दुनिया को मिलकर ऐसे संचार उपग्रहों द्वारा एस्टेरॉयड्स के हमले से बचाने की योजना बनानी चाहिए. (फोटोःगेटी)
फाल्के की गणना के अनुसार अगर 1000 फीट चौड़ा एस्टेरॉयड मध्य यूरोप में कहीं गिरता है तो वह पूरे महाद्वीप को खत्म कर देगा. उससे निकलने वाली शॉकवेव से ही इमारतें, सड़कें, एयरपोर्ट, बंदरगाह आदि सब नष्ट हो जाएंगे. साथ ही सुनामी का खतरा अलग से बनेगा. आग के तूफान आ सकते हैं. जीव-जंतुओं की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. आप यूं समझ लें कि एक महाद्वीप का नाम धरती के नक्शे से मिट जाएगा. (फोटोःगेटी)
6 करोड़ साल पहले जिस एस्टेरॉयड की टक्कर से डायनासोर का अंत हुआ था वो 9.6 किलोमीटर व्यास का था. उसने पूरी दुनिया से डायनासोर और करोड़ों जीवों का खात्मा कर दिया था. अगर 1000 फीट से बड़ा एस्टेरॉयड कहीं भी गिरता है तो वह बड़ी तबाही लेकर आएगा. अच्छी बात ये है कि इंसानों के पास तकनीक और हमला रोकने की क्षमता है, जो डायनासोरों के पास नहीं थी. यह स्टडी प्लैनेटरी डिफेंस कॉन्फ्रेंस में पेश की गई थी. (फोटोःगेटी)