दुनियाभर में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का खतरा लगातार बढ़ रहा है. इनमें एक बड़ा हिस्सा होता है इलेक्ट्रॉनिक चिप्स (Electronic Chips) और बैटरी (Battery) का. जिन्हें बनाने के लिए जिस प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है वो रीसाइकिल नहीं होता. (फोटोः गेटी)
चिप्स के अंदर सर्किट तो कंडक्टिंग मेटल के होते हैं. ये एक ठंडा रहने वाले इंसुलेटिंग बेस पर बनाए जाते हैं. जिन्हें सब्स्ट्रेट (Substrate) कहते हैं. हर कंप्यूटर चिप्स में सब्स्ट्रेट होता है. ये सब्स्ट्रेट रीसाइकिल न होने वाले प्लास्टिक पॉलीमर से बनते हैं. चिप्स के खराब होने के बाद इन्हें फेंक दिया जाता है. (फोटोः पिक्साबे)
हर साल दुनिया में 5 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट निकलता है. ऑस्ट्रिया के लिंज में स्थित जोहांस केपलर यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट मार्टिन काल्टेनब्रनर कहते हैं कि सब्स्ट्रेट को रीसाइकिल करना बेहद कठिन है. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का ज्यादातर हिस्सा यही होता है. इसकी कीमत भी कम होती है. (फोटोः गेटी)
मार्टिन कहते हैं कि अगर चिप्स को रीसाइकिल किया जा सके तो दोबारा उनका इस्तेमाल किया जा सकता है. मार्टिन और उनकी टीम ने मशरूम (Mushroom) की प्रजाति गैनोडर्मा लूसीडम (Ganoderma Lucidum) की स्किन को चिप्स का सब्स्ट्रेट बनाने के लिए किया है. यह एक प्रकार का फंगस है, जो सड़ते हुए पेड़ों पर उगता है. यह अपने माइसीलियम को बचाने के लिए चारों तरफ मजबूत त्वचा बनाता है. (फोटोः पिक्साबे)
इस त्वचा से गैनोडर्मा लूसीडम मशरूम की जड़ अन्य प्रकार के बैक्टीरिया और फंगस के संक्रमण से बची रहेगी. यह त्वचा किसी और मशरूम पर नहीं उगती. जब मार्टिन और उनकी टीम ने इस मशरूम की त्वचा को निकालकर सुखाया. तो देखा कि यह लचीली है. अच्छी इंसुलेटर है. 200 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सह सकती है. इसकी मोटाई भी मोटे कागज की तरह है. यानी यह एक अच्छी चिप सब्स्ट्रेट बन सकती है. (फोटोः पिक्साबे)
मार्टिन कहते हैं कि अगर नमी और यूवी लाइट से इस मशरूम से निकाली गई त्वचा को बचाया जाए तो यह सैकड़ों सालों तक सुरक्षित रह सकती है. यह किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का सब्स्ट्रेट बन सकती है. यह किसी भी प्लास्टिक सब्स्ट्रेट से 2000 गुना ज्यादा लचीली है. इसका इस्तेमाल आम बैटरी में भी कर सकते हैं. साथ ही कम पावर वाले ब्लूटूथ सेंसर में. (फोटोः पिक्साबे)
फिलहाल मार्टिन का मानना है कि इस मशरूम की स्किन का इस्तेमाल उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जा सकता है, जो ज्यादा समय के लिए नहीं बनाए जाते. जैसे- वियरेबल सेंसर्स या रेडियो टैग्स. भविष्य में इसकी मदद से एडॉप्टिव इमारतें और वीयरेबल फंगल डिवाइसेस बनाई जा सकती हैं. यह रीसाइकिल भी हो जाएंगे. यानी इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट नहीं निकलेगा. (फोटोः पिक्साबे)
इंग्लैंड में मौजूद यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट के साइंटिस्ट एंड्र्यू एडमात्जकी ने कहा कि यह एक बड़ी और इतिहास बदलने वाली खोज है. इससे दुनिया में जलवायु परिवर्तन भी रुकेगा. प्रदूषण कम होगा. यह स्टडी हाल ही में साइंस एडवांसेस में प्रकाशित हुई है. (फोटोः पिक्साबे)