कोरोना वायरस की दोनों लहरें कई देशों और शहरों में एक साल के अंदर ही आईं. कोविड-19 पिछले साल मार्च से लेकर मार्च 2021 के बीच काफी बदलाव के साथ दिखाई दिया. हैरानी की बात ये है कि पहली लहर में रोज होने वाले संक्रमण की संख्या दूसरी लहर से कम थी. लेकिन रोज मरने वालों की संख्या दूसरी लहर में मरने वालों से काफी ज्यादा थी. वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे हैं कि क्या हमनें दोनों लहरों के अंतर को समझने में भूल कर दी. (फोटोः पीटीआई)
साइप्रस की यूनिवर्सिटी ऑफ निकोसिया के शोधकर्ताओं ने पहली और दूसरी लहर के अंतर को समझने की कोशिश की. इन्होंने बताया कि पिछले साल यानी 2020 में मार्च और अप्रैल के बीच संक्रमण के डेटा में निश्चितता नहीं थी. हर दिन सामने आने वाले आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर सकते. (फोटोः अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स)
तालिब बूक और डिमित्रिस ड्रिकाकिस ने एनवायरमेंटल फ्लूड डायनेमिक्स के आधार पर स्टडी की जो कि फिजिक्स ऑफ फ्लूड्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसमें उन्होंने कंप्यूटर की मदद से मल्टीस्केल मल्टीफिजिक्स मॉडल्स और सिमुलेशन बनाए. ताकि दोनों लहरों के बीच मौजूद मौसम और उसके बदलावों का अध्ययन किया जा सके. (फोटोः पीटीआई)
तालिब और डिमित्रिस के इस अध्ययन में तापमान, रिलेटिव ह्यूमेडिटी, हवा की गति, दो महामारियां, प्रति वर्ष का कर्व आदि शामिल किया गया. डिमित्रिस ने बताया कि हमने फिजिक्स के आधार पर दोनों कोरोना लहरों के बीच संबंध और अंतर को समझने का प्रयास किया है. यह महामारी की भविष्यवाणी करने वाला मॉडल है जिसने सही भविष्यवाणी की है. इसमें दुनिया के कई शहर शामिल किए गए थे. (फोटोः पीटीआई)
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— Phys.org (@physorg_com) June 22, 2021
डिमित्रिस ने बताया कि कोरोना की पहली लहर में हर दिन आने वाले नए मामलों की संख्या को कमतर आंका गया. उनकी जानकारी को सही से डेटा में शामिल नहीं किया गया. सिर्फ न्यूयॉर्क शहर में पिछली लहर में प्रतिदिन आने वाले आंकड़ों को करीब चार गुना कम आंका गया. तालिब बूक ने कहा कि इसलिए पहली लहर के डेटा में अनिश्चतितता है. वहीं, दूसरी लहर के डेटा में साधारण निष्कर्ष निकाला जा सकता है. जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि दोनों लहरों के डेटा में काफी ज्यादा अंतर है. पहली लहर में डेटा के साथ कई देशों में खिलवाड़ किया गया. (फोटोः पीटीआई)
पहली बार वैज्ञानिकों ने एडवांस्ड अनसर्टेनिटी क्वांटिफिकेशन मॉडल के जरिए कोरोना महामारी की पहली लहर के फ्लूड डायनेमिक सिमुलेशन को तैयार किया था. इस सिमुलेशन में मौसम की वजह से पड़ने वाले असर का भी अध्ययन किया गया था. तालिब कहते हैं कि हमारे मॉडल से स्पष्ट होता है कि पहली लहर के डेटा में गड़बड़ियां थी. इसके लिए हमने दूसरी लहर के डेटा की सटीकता का सहारा लिया. (फोटोः पीटीआई)
तालिब बूक ने बताया कि भविष्य में किसी महामारी की भविष्यवाणी के लिए पर्यावरणीय मौसम आधारित वायरस ट्रांसमिशन दर और महामारी के मल्टीवेव प्रक्रिया का एनालिसिस करना होगा. इससे दुनिया के सामने सही डेटा आएगा. साथ ही इस बात की सटीक जानकारी मिलेगी कि दुनिया में कितने लोग महामारी से संक्रमित हैं, रोज कितने हो रहे हैं और कितने लोगों की मौत हो रही है. (फोटोः पीटीआई)