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साइंस न्यूज़

दुनिया में वुहान जैसे 59 लैब्स, सिर्फ 25 फीसदी करते हैं बायोसेफ्टी का पालनः स्टडी

Biosafety Labs BSL-4
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दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां पर जहां पर खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया रखे हैं. ऐसे पैथोजेन हैं जो जरा सी लापरवाही से बड़ी तबाही मचाने की जुर्रत कर सकते हैं. हाल ही में हुई एक स्टडी से पता चला है कि तीन-चौथाई लैब्स में बायोसिक्योरिटी या बायोसेफ्टी की कमी है. जबकि इनकी सुरक्षा की गुणवत्ता काफी ज्यादा होनी चाहिए. क्योंकि सुरक्षा में चूक की वजह से ही संभवतः वुहान के लैब से कोरोना वायरस लीक हुआ है. वुहान का लैब बायोसेफ्टी लेवल-4 (BSL-4) की श्रेणी में आता है. दुनिया में ऐसे कई लैब हैं जो इसी श्रेणी में हैं लेकिन वहां सुरक्षा का पैमाना पूरा नहीं किया जा रहा है. (फोटोःगेटी)

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द कनवरसेशन में प्रकाशित एक लेख में इस बात का जिक्र किया गया है कि दुनिया में इस तरह के लैब की सिक्योरिटी को लेकर गंभीर कदम उठाने होंगे. इस लेख को लिखा है किंग्स कॉलेज लंदन में साइंस एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी के सीनियर लेक्चर फिलिपा लेटोज और जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी में बायोडिफेंस ग्रैजुएट प्रोग्राम के प्रोफेसर और डायरेक्टर ग्रेगरी कॉबलेन्ट्ज ने. (फोटोःगेटी)

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ग्रेगरी के मुताबिक दुनिया के 23 देशों में 59 BSL-4 लैब मौजूद हैं. इनमें से सिर्फ 25 फीसदी ही बायोसेफ्टी का पूरा ख्याल रखते हैं. यानी इन्होंने ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स (GHS Index) के मानकों को माना है. इस इंडेक्स को न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव (NTI) और जॉन्स हॉपकिंस सेंटर फॉर हेल्थ सिक्योरिटी (JHU) ने मिलकर बनाया है. ताकि किसी भी देश की BSL-4 प्रयोगशाला में किसी तरह की अनहोनी न हो. (फोटोःगेटी)

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Biosafety Labs BSL-4
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ग्रेगरी कॉबलेन्ट्ज ने कहा कि बायोरिस्क मैनेजमेंट को लेकर लापरवाही बरतने वाले इन देशों को अपनी नीतियों और सुरक्षात्मक कदम में बदलाव लाना होगा. यूरोप में दुनिया के सबसे ज्यादा BSL-4 लैब हैं. यहां पर 25 लैब हैं. उत्तरी अमेरिका में 14 और एशिया में 13 लैब्स हैं. ऑस्ट्रेलिया में 4 और अफ्रीका में 3 लैब्स हैं. लेकिन इनमें से 40 फीसदी लैब्स ही इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ग्रुप ऑफ बायोसेफ्टी एंड बायोसिक्योरिटी रेगुलेटर्स के सदस्य हैं. यह संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर की गैर सरकारी संस्था है जो प्रयोगशालाओं की सुरक्षा को मान्यता देती है. (फोटोःगेटी)

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ग्रेगरी ने कहा कि इन 23 देशों में से कुछ देश BSL-4 प्रयोगशालाओं का दो तरह से उपयोग करते हैं. पहला ऐसे रिसर्च करना जिससे सेहत संबंधी फायदे हों लेकिन इससे नुकसान होने की आशंका भी बनी रहती है. दूसरा- सूक्ष्मजीवों यानी पैथोजेन्स को मॉडिफाई करके उन्हें ज्यादा खतरनाक और जानलेवा बनाना. दूसरा उपयोग ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि ऐसे रिसर्च की वजह से वुहान की लैब से कोरोनावायरस का लीक हुआ होगा, जिससे आज पूरी दुनिया परेशान है. (फोटोःगेटी)

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दुनिया भर के सभी BSL-4 लैब्स में से 60 फीसदी प्रयोगशालाएं सरकार द्वारा संचालित की जा रही है. 20 फीसदी यूनिवर्सिटी और 20 फीसदी बायोडिफेंस एजेंसीज के द्वारा. इन प्रयोगशालाओं में या तो संक्रमण फैलाने वाले पैथोजेन्स की जांच और रिसर्च होती है. या फिर यहां पर पैथोजेन्स में जेनेटिक बदलाव करके उनसे होने वाली बीमारियों को रोकने का प्रयास किया जाता है. लेकिन यहीं जरा सी लापरवाही करने से दुनिया में भयानक स्तर की महामारी फैल सकती है. (फोटोःगेटी)

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इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ग्रुप ऑफ बायोसेफ्टी एंड बायोसिक्योरिटी रेगुलेटर्स में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, यूके और अमेरिका शामिल हैं. लेकिन दुनिया के किसी भी लैब ने साल 2019 में लाए गए बायोरिस्क मैनेजमेंट सिस्टम पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. अगर यह हस्ताक्षर करते तो इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर के सुरक्षा मानकों का पालन करना पड़ता. (फोटोःगेटी)

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