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साइंस न्यूज़

Explainer: क्या है भारत का डीप ओशन मिशन? चार हजार करोड़ खर्च करेगी मोदी सरकार

India's Deep Ocean Mission
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भारत सरकार ने हाल ही में 'डीप ओशन मिशन' को मंजूरी दे दी है. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य समुद्री संसाधनों का पता लगाना है, गहरे समंदर में काम करने की तकनीक विकसित करना. ब्लू इकोनॉमी (Blue Economy) को तेजी से बढ़ावा देना होगा. इस मिशन को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना है. डीप ओशन मिशन भारत सरकार की ब्लू इकोनॉमी को आगे ले जाने के लिए अहम परियोजना मानी जा रही है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) इस महत्वाकांक्षी मिशन को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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इस मिशन की जरूरत क्यों? : विज्ञान बताताहै कि पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग पानी से घिरा है, जिसमें अगल-अलग प्रकार के समुद्री जीव-जंतु हैं. हैरानी की बात ये है कि तमाम आधुनिक तकनीक और विज्ञान के बावजूद भी गहरे समुद्र का लगभग 95.8% हिस्सा आज भी मनुष्य के लिए एक रहस्य ही है. समुद्र में 6 हजार मीटर नीचे कई प्रकार के खनिज पाए जाते हैं. इन खनिजों के बारे में अबतक अध्ययन नहीं हुआ है. इस मिशन के तहत इन खनिजों के बारे में अध्ययन एवं सर्वेक्षण का काम किया जाएगा. इसीलिए भारतीय समुद्री सीमा के अंदर आने वाले समुद्र की गहराइयों को टटोलने के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने डीप ओशन मिशन (Deep Ocean Mission) को मंजूरी दी है. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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क्या है ब्लू इकोनॉमी? : ये एक तरह की ऐसी अर्थव्यवस्था है जो पूरी तरह से समुद्री संसाधनों पर आधारित है. डीप ओशन मिशन से जुड़ी ब्लू इकोनॉमी की महत्ता समझने के लिए हमें इसमें छिपे आर्थिक फायदों को समझना होगा. भारत सरकार इस मिशन पर 4,077 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है जो अलग-अलग चरणों में खर्त होंगे. ग्लोबल मरीन बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिपोर्ट का दावा है कि इस क्षेत्र का वैश्विक बाजार साल 2027 तक करीब 4,00,68,78,30,000 रूपये (USD 5.4 billion) का हो जाएगा. मार्च 2020 में आई रिपोर्ट ओशन के अनुसार वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाजार (Global Biotechnology Market) 2026 तक 54,98,79,42,750 रूपये (USD 741 billion) तक पहुंचने का अनुमान है. (फोटोः गेटी)

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India's Blue Economy
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वर्ल्ड बैंक के एक दस्तावेज में बताया गया है कि ब्लू इकोनॉमी का उद्देश्य आर्थिक विकास, सामाजिक समावेश और आजीविका के संरक्षण या सुधार को बढ़ावा देने के साथ-साथ महासागरों और तटीय क्षेत्रों की पर्यावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित करना है. वैज्ञानिक निष्कर्षों से पता चलता है कि समुद्री संसाधन सीमित हैं. इंसानी गतिविधियों के कारण महासागरों के 'स्वास्थ्य' में भारी गिरावट आई है. समुद्री स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर साफ तौर पर दिखाई दे रहा है. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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ब्लू इकोनॉमी में कई तरह के हिस्से हैं, जैसे पारंपरिक समुद्री उद्योग, जिनमें मछली पालन, पर्यटन, समुद्री ट्रांसपोर्ट जैसी चीजें आती हैं. इसके साथ ही इसमें नई-नई विकसित हो रही ऑफशोर रिन्यूबल एनर्जी, एक्वाकल्चर (एक तरह की जलीय कृषि), समुद्र तल निकालने वाली गतिविधियां, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और बायोप्रोस्पेक्टिंग जैसी कई चीजें शामिल हैं. (फोटोः गेटी)

India's Blue Economy
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इतना ही नहीं वर्ल्ड बैंक के इस दस्तावेज में बताया गया है कि ब्लू इकोनॉमी में ऐसी कई सारी सेवाओं को विकसित किया जाएगा जो अभी तक हैं हीं नहीं. ये सेवाएं आर्थिक और दूसरी इंसानी गतिविधियों जैसे- कार्बन पृथक्करण (ऐसी प्रक्रिया जिसमें वायुमंडल से CO2 को अलग कर ठोस या तरल पदार्थ में बदल दिया जाता है), तटीय सुरक्षा, वेस्ट डिस्पोजल और जैव विविधता के अस्तित्व जैसी चीजें शामिल होंगी. (फोटोः गेटी)

India's Blue Economy
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महासागर क्यों हैं खास? : भारत एक बड़ा देश है और इसका समुद्री तट काफी फैला हुआ है. हिंद महासागर से इसकी लंबी चौड़ी सीमा मिलती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिंद महासागर की भूमिका को कम करके कतई नहीं आंका जा सकता है. जाइरोस्टेटिक रूप से, दुनिया भर में समुद्री व्यापार का तीन-चौथाई और दुनिया का आधी तेल आपूर्ति भारत के महासागर से होकर गुजरती है. महासागर को मानव जाति का लास्ट फ्रंटियर भी कहा जाता है. ऐसा इसलिए क्यों कि मानव जाति की अंतिम सीमा के रूप में महासागर भविष्य में आने वाले किसी भी संभावित खतरे से बचाव के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करते हैं. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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भारत तीन तरफ से महासागर से घिरा है.  देश की लगभग 30 प्रतिशत आबादी तटीय इलाकों में बसती है. महासागर मत्स्य पालन और जलीय कृषि, पर्यटन, आजीविका और समुद्री व्यापार का प्रमुख आर्थिक कारक है. इतना ही नहीं महासागर खाद्य पदार्थ, ऊर्जा, खनिजों, औषधियों के भंडार होने के साथ ही मौसम और जलवायु के मॉड्यूलेटर और पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं. (फोटोः गेटी)

India's Blue Economy
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महासागरों के महत्व को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2021-2030 के दशक को सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के दशक के रूप में घोषित किया है. इसको लेकर भारत की भूमिका अहम इसलिए हो जाती है क्योंकि भारत की एक अनोखी समुद्री स्थिति है. हमारा देश 7,517 किमी लंबी तटरेखा के साथ, नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों का घर है. 2030 तक भारत सरकार के नए भारत के विजन ने ब्लू इकोनॉमी को विकास के दस प्रमुख आयामों में से एक के रूप में बताया है. (फोटोः गेटी)

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India's Blue Economy
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डीप ओशन मिशन के मुख्य उद्देश्यः इसके तहत गहरे समुद्र में माइनिंग और मानवयुक्त सबमर्सिबल के लिए तकनीक को विकसित किया जाएगा. आधुनिक सेंसर और उपकरणों के एक सूट के साथ तीन इंसानों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी. खास बात ये है कि भारत के अलावा बहुत कम ही देशों ने ही यह क्षमता हासिल की है. मध्य हिंद महासागर में 6,000 मीटर की गहराई से पॉलीमैटेलिक नोड्यूल्स (समुद्र तल के नीचे खास धातुओं की एक दानेदार परत) के खनन के लिए एक एकीकृत खनन प्रणाली भी विकसित की जाएगी. अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण द्वारा जरूरी कोड विकसित किए जाने के बाद खनिजों के अन्वेषण अध्ययन से व्यावसायिक दोहन का नया रास्ता खुलेगा. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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इस मिशन के उद्देश्यों मे से एक महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास करना भी होगा. इस सेवा के तहत एक सीजन से लेकर पूरे एक दशक के जलवायु के भविष्य के अनुमानों को समझने और महत्वपूर्ण सूचना प्रदान करने के लिए अवलोकनों और मॉडलों का एक सूट विकसित किया जाएगा. इससे तटीय पर्यटन को बढ़ाना मिलेगा. (फोटोः गेटी)

India's Blue Economy
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गहरे समुद्र में जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी इनोवेशन को विकसित किया जाएगा. सूक्ष्म जीवों सहित गहरे समुद्र के वनस्पतियों और जीवों की जैव-पूर्वेक्षण और गहरे समुद्र में जैव-संसाधनों के उपयोगों पर अध्ययन करना मिशन का मुख्य फोकस होगा. इससे समुद्री मात्स्यिकी और संबंधित सेवाओं को बड़ी मदद मिलेगी. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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हिंद महासागर में कई सारी धातु के हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिजकरण के संभावित स्थलों का पता लगाना और उनकी पहचान करना है. इसके तहत समुद्री संसाधनों के गहरे समुद्र में अन्वेषण को बढ़ावा मिलेगा. डीप ओशन मिशन में समुद्र से पीने लायक पानी और ऊर्जा बनाने बनाने पर भी जोर दिया जाएगा. (फोटोः गेटी)

India's Blue Economy
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इसके अहम लक्ष्यों में से एक महासागर जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन बनाना भी है. इसका उद्देश्य समुद्री जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग में मानव क्षमताओं और उद्यम का विकास करना है. यह ऑन-साइट बिजनेस इनक्यूबेटर सुविधाओं के माध्यम से वैज्ञानिक अनुसंधान को औद्योगिक अनुप्रयोगों और किसी प्रोडक्ट के विकास में बदल देगा. इससे समुद्री जीव विज्ञान, ब्लू ट्रेड और समुद्री निर्माण को बढ़ावा मिलेगा. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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क्या होंगे दुष्परिणाम?: ऐसा नहीं है कि समुद्र के भीतर खोज से भारत आर्थिक रूप से, भू-राजनीतिक या किसी भी संभावित चीनी खतरे के खिलाफ सुरक्षित हो जाएगा. बल्कि इसके कारण मानवता और पर्यावरण को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. इतिहास और विज्ञान इस बात का गवाह है कि लगभग हर नई और क्रांतिकारी तकनीक नई समस्याएं और पर्यावरणीय नुकसान लेकर आती है.  (फोटोः गेटी)

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India's Blue Economy
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गहरे समुद्र में खनन से ऐसे खतरे पैदा हो सकते हैं जो फिलहाल सामान्य रूप से ज्ञात नहीं हैं. लेकिन ये बात निश्चित है कि इससे पर्यावरण का स्वास्थ्य जरूर बिगड़ेगा. समुद्री खनन से पानी की मात्रा सभी दिशाओं में बढ़ने की संभावना है, जिससे समुद्र तल पर तलछट को नुकसान पहुंच सकता है. समुद्री खनन से नोड्यूल (गहरे समुद्र की तल के भीतर कई सारी दुर्लभ धातुओं की मौजूदा परत) को भी भारी नुकसान पहुच सकता है. ऐसा होने पर परत में मौजूद दुर्लभ धातु समुद्री वातावरण में लीक होने से पूरे ओशन का इकोसिस्टम बिगाड़ सकता है. (फोटोः गेटी)

India's Deep Ocean Mission
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नोड्यूल्स का खनन और गहरे समुद्र से इसे सतह पर लाने के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होगी, और हर कोई जानता है कि इतनी सारी ऊर्जा की आपूर्ति करना और इसे खर्च करने से कितनी आर्थिक और पर्यावरणीय कीमत चुकानी होगी. इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि खनन जहाजों को लंबी अवधि (3-4 वर्ष) तक समुद्र में रहने की आवश्यकता होगी है क्योंकि उन्हें बार बीच समंदर से किनारे पर लाना काफी महंगा पड़ेगा. इसके लिए जहाज पर ही प्रसंस्करण की आवश्यकता करनी होगी वरना पूरा डीप ओशन मिशन बेहद घाटे का सौदा होगा. (फोटोः गेटी)

India's Blue Economy
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इसके अलावा, समुद्री खनन वन्यजीवों के लिए भी बुरे नतीजे लेकर आएगा. क्योंकि इससे समुद्री खाद्य श्रृंखला (मरीन फूड चेन) गंभीर रूप से प्रभावित होगी. यह ऐसे जीवों के विलुप्त होने का कारण बन सकता है जो दुनिया में कहीं और न पाए जातो हों या जिन्हें कभी किसी ने देखा ही नहीं. समुद्र के इकोसिस्टम से छेड़छाड़ मौसम परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन और असामान्य मौसम की घटनाओं के खिलाफ हमारे सबसे अच्छे सहयोगी जीवों को नष्ट करने की पूरी संभावना रखता है. (फोटोः गेटी)
 

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