कोरोना वायरस ने महामारी से लड़ने को लेकर दुनिया भर के देशों की पोल खोलकर रख दी. कहीं भी बीमारियों के सर्विलांस, जांच और इलाज या प्रबंधन की सही व्यवस्था नहीं थी. अचानक से कंटेनमेंट करना, अपर्याप्त जांच सुविधाएं, अनुचित जमावड़े, आंकड़ों का बेतरतीब हिसाब... इन सब की वजह से कई देशों की हालत खराब हो गई. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से फैली महामारी ने दुनिया भर के लोगों की सोच बदल दी. जांच के तरीके बदल दिए. साथ ही जीने का अंदाज भी बदला. अब बीमारी के सर्विलांस को लेकर दुनिया भर में तैयारियां हो रही हैं. (फोटो:PTI)
द लैंसेंट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर के देशों को सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर अब जो भी प्रक्रियाएं हो रही हैं, वो ज्यादा सटीक हैं. अगर लोगों की सेहत पर ध्यान देना या लोगों के हिसाब से स्वास्थ्य नीतियां बनानी हैं तो रीयल टाइम डेटा चाहिए. साथ ही सटीक सर्विलांस होना चाहिए. कई समुदाय और देश सर्विलांस सिस्टम में कमी की वजह से नुकसान झेल रहे हैं. अब जरूरत है देशों और कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को एक साथ कड़े और सख्त कदम उठाने की. ताकि बीमारियों का सर्विलांस सही तरीके से किया जा सके. (फोटो:PTI)
भविष्य में बीमारियों का सर्विलांस इंटीग्रेटेड नेशनल सिस्टम पर आधारित होगा. इसमें पांच तरीके ही काम आएंगे. पहला तरीका है जनसंख्या आधारित CRVS (civil registration and vital statistics) या सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम. इससे मौत की दर और बीमारी का भार पता चलेगा. दूसरा तरीका है प्रयोगशालाओं से पुष्टि यानी भारी पैमाने पर लैब में जांच की जाए और पैथोजेन्स का पता किया जाए. इससे ये पता चलेगा कि कितने केस आए हैं. (फोटो:PTI)
तीसरा तरीका है डिजिटल डेटा यानी हमें यूनीक हेल्थ आइडेंटिफायर्स, स्टैंडर्ड मेटाडेटा और इंटरनेट की पहुंच पर ध्यान देना होगा. इससे देश के सारे सिस्टम आपस में जुड़ जाएंगे. साथ ही डेटा की निजता भी बनी रहेगी. चौथा है डेटा ट्रांसपैरेंसी यानी NPHI (national public health institute) की ऑटोमेटेड रिपोर्टिंग होगी. इससे WHO और स्थानीय स्वास्थ्य संबंधी संस्थानों को सीधे डेटा एक्सेस मिलेगा. इससे NPHI के राष्ट्रीय खतरे कम होंगे साथ ही ट्रांसनेशनल खतरों में भी कमी आएगी. (फोटो:PTI)
पांचवां है आर्थिक रूप से मदद करना यानी सरकारें पर्याप्त फंड जारी करें. 1 से 4 अमेरिकी डॉलर प्रति कैपिटा यानी 73 से 292 रुपए प्रति कैपिटा के हिसाब से सालाना का निवेश. इससे देश में सतत स्वास्थ्य प्रणाली को विकसित करने में मदद मिलेगी. (फोटो:PTI)
To fight #COVID19 and better prepare for future pathogens and diseases, we need bold changes and investments in surveillance systems in all countries. Check out this latest piece in @TheLancet, led by @WHO experts. https://t.co/z3fIfdZwej
— Tedros Adhanom Ghebreyesus (@DrTedros) May 17, 2021
किसी भी बीमारी के सर्विलांस डेटा को ढंग से समझने के लिए आबादी का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, डिनॉमिनेटर्स और ऐतिहासिक आंकड़ों का उपयोग होना चाहिए. इसमें CRVS की मदद ली जा सकती है. बहुत से देशों में CRVS सिस्टम सही नहीं है. कई देशों के CRVS सिस्टम WHO स्कोर फॉर हेल्थ टेक्निकल पैकेज रिपोर्ट में बताए गए मानकों को पूरा नहीं करते. (फोटो:PTI)
भविष्य में कोरोना जैसी महामारियों की जांच के लिए अब जिन चीजों की जरूरत पड़ेगी, उसमें से कुछ तो लागू हो चुकी हैं. कुछ अब भी बाकी है. तब एकसाथ कई प्रक्रियाओं को एकसाथ लेकर चलना पड़ेगा. जैसे इंटीग्रेटेड डिजीस सर्विलांस और रिसपॉन्स, इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ एंड लेबोरेटरी रिकॉर्ड डेटा ट्रांसफर, सीरोलॉजिकल सर्विलांस, वैक्सीन एडवर्स इवेंट्स रिपोर्टिंग, एपिजूटिक और फूड सेफ्टी सर्विलांस सिस्टम. (फोटो:PTI)
इसके अलावा दूसरा मॉडल है वन हेल्थ मॉडल. यानी इसमें सामुदायिक स्तर पर भागीदारी के साथ बीमारी का सर्विलांस करना, अलग-अलग बीमारियों के लिए अलग सिस्टम, जैसे HIV, टीबी, मलेरिया, वैक्सीन से ठीक होने बीमारियां आदि. डेटा को आपस में जोड़ना होगा ताकि यूनीक हेल्थ आइडेंटीफायर की मदद से आबादी पर नजर रखी जा सके. (फोटो:PTI)
सभी देशों को 1 से 4 अमेरिकी डॉलर प्रति कैपिटा यानी 73 से 292 रुपए प्रति कैपिटा के हिसाब से सालाना निवेश स्वास्थ्य क्षेत्र में करना होगा. ताकि लोगों के सेहत की जांच आसानी से हो सके. लैब्स बनाए जा सकें. अस्पताल बन सकें. डेटा सिस्टम खड़ा किया जा सके. मानव संसाधन खड़ा किया जा सके. जब दुनिया के भर के लोगों पर औसत 249 डॉलर्स यानी 18 हजार रुपए से ज्यादा का सालाना मिलिट्री खर्च भार है. तो क्यों नहीं लोगों के स्वास्थ्य को लेकर निवेश किया जा सकता. (फोटो:PTI)
कोरोना महामारी ने बताया है कि बीमारियों का सही सर्विलांस न होना कई देशों के लिए मुसीबत बन गया है. इसकी वजह से कई देश बीमारियों को आने से पहले पहचान नहीं पा रहे हैं. न ही उससे बचने के तरीके निकाल पा रहे हैं. हालांकि, कोरोना महामारी में mRNA वैक्सीन का इनोवेशन काम आया. पैथोजेन जिनोम सिक्वेंसिंग की गई और कई नए एंटीवायरल्स का पता भी चला. (फोटो:PTI)