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साइंस न्यूज़

मलबे में दबे इंसानों की चीख सुनकर उनकी लोकेशन बताएगा यह ड्रोन

Drone Detect Human Screams
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इंजीनियर्स ने एक ऐसा ड्रोन बनाया है जो आपदा के समय बहुत काम आएगा. भूकंप में गिरी इमारतों, मलबों में दबे इंसानों की चीख सुनकर उनकी मौजूदगी को पुख्ता करेगा. यह ड्रोन इतना ज्यादा सेंसिटिव है कि अपने छह रोटर (पंखों) की तेज आवाज के बावजूद यह इंसान की चीख सुन लेगा. इस ड्रोन में अत्याधुनिक एकॉस्टिक सॉफ्टवेयर और माइक्रोफोन लगा है. हाल ही में इसका परीक्षण किया गया जिसमें लकड़ियों के मलबे के नीचे दबे इंसान की आवाज को इसने सुन लिया और उसकी सही लोकेशन भी बता दी. (फोटोःगेटी)

Drone Detect Human Screams
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इस ड्रोन की स्टडी रिपोर्ट एकॉस्टिक.ओराजी पर 'सेविग लाइव्स ड्यूरिंग डिजास्टर्स बाए यूजिंग ड्रोन्स' नाम से प्रकाशित हुई है. जर्मन रिसर्च इंस्टीट्यूट फ्रॉनहोफर FKIE ने इस प्रोजेक्ट को पूरा किया है. इसके साथ डिपार्टमेंट ऑफ सेंसर डेटा एंड इन्फॉर्मेशन फ्यूजन ने भी काम किया है. इस ड्रोन को बनाने वाली इंजीनियर्स ने हाल ही में एकॉस्टिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका के सामने इसका प्रदर्शन करके दिखाया. (फोटोःगेटी)

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ड्रोन्स एक रोबोट होता है जो उड़कर आपदा के समय लोगों की मदद कर सकता है. कई बार भारी और ज्यादा मलबे के नीचे दबे इंसानों को बचावकर्मी या कुत्ते खोज नहीं पाते. लेकिन यह मलबे के ऊपर उड़कर मलबे के नीचे से आती महीन आवाज को भी पहचान लेता है. इसकी मदद से बचावकर्मी मलबे के नीचे दबे लोगों की सही लोकेशन हासिल करके उन्हें निकालने का प्रयास सही समय पर कर सकते हैं. (फोटोःगेटी)

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इंजीनियर्स मैकारेना वारेला और वल्फ-डायटियर वर्थ ने बताया कि अक्सर लोग मलबे के नीचे से जोर से चीखते हैं. जिंदगी बचाने के लिए वो पूरी ताकत से आवाज निकालते हैं. लेकिन ज्यादा मलबा और गहराई होने की वजह से आवाज ऊपर तक नहीं आ पाती. हादसे वाली जगह पर बचावकर्मियों, मशीनों और अन्य यंत्रों की काफी ज्यादा आवाज भी होती है. जिसकी वजह से मलबे में दबे इंसान की आवाज दब जाती है. लेकिन यह ड्रोन उसी आवाज को पकड़ता है. (फोटोःगेटी)

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मैकारेना ने बताया कि अगर ड्रोन पर सही एकॉस्टिक सॉफ्टवेयर और माइक्रोफोन लगाया जाए तो इंसानों को मलबे के अंदर खोजा जा सकता है. हमने एक ड्रोन बनाया है. उसने परीक्षण में सही परिणाम भी दिए हैं लेकिन हम अपने एकॉस्टिक सॉफ्टवेयर और सिस्टम को और सटीक बनाने की प्रक्रिया में लगे हैं. हम अपने ड्रोन में माइक्रोफोन ऐरे लगा रहे हैं. जो अलग-अलग तरह की चीख को पहचानने में सक्षम है. (फोटोःगेटी)

Drone Detect Human Screams
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इस ड्रोन में लगा एकॉस्टिक सिस्टम आवाज को पहचान कर फिल्टर करके यह बताता है कि यह कितनी नीचे से आ रहा है. इंसान मलबे में किस तरफ दबा है. उसकी सही लोकेशन का पता चला जाता है. मैकारेना ने बताया कि उन्होंने हाल ही में अमेरिकी मीडिया संस्थानों के सामने इसका सफल परीक्षण करके दिखाया है. इस ड्रोन ने लकड़ियों के ढेर के नीचे दबे एक शोधकर्ता की चीख को पहचान कर उसकी सही लोकेशन और गहराई बता दी थी. वह भी कुछ सेकेंड्स के अंदर. (फोटोःगेटी)

Drone Detect Human Screams
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इससे पहले चीख को सुनने वाला प्रयोग साल 2016 में फ्रांस के वैज्ञानिकों ने किया था, लेकिन उसमें ड्रोन शामिल नहीं था. फ्रांस के वैज्ञानिकों ने जमीन की गहराई में न्यूरल नेटवर्क के जरिए आवाज को सुनने की कोशिश की थी. सिर्फ इतना ही नहीं, नया ड्रोन चिल्लाने (Shouting) और चीखने (Screaming) में अंतर भी समझता है. इसलिए यह डिस्ट्रेस कॉल यानी आपातकालीन बचाव की चीख को समझता है. (फोटोःगेटी)

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मैकारेना कहती हैं कि DARPA ने कुछ समय पहले सबटेरेनियन चैलेंज एक्सरसाइज किया था. इसमें कुछ रोबोट्स को रेस्क्यू मिशन के लिए भेजा गया था. रोबोट्स ने सिग्नल भेजकर यह बताया था कि इंसान कहां मुसीबत में है. इसके लिए रोबोट्स ने थर्मल मैनीकिन्स का सहारा लिया था. थर्मल मैनीकिन्स का मतलब होता है इंसान के शरीर की गर्मी के साथ आने वाली महीन चीख या आवाज. डार्पा के इस चैलेंज में कई देशों और वैज्ञानिक संस्थाओं के रोबोट्स ने भाग लिया था. (फोटोःगेटी)

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इस चैलेंज में कौन जीता ये मायने नहीं रखता लेकिन यह बात जरूरी निकल कर आई कि आपदा के समय में इंसानों की मदद रोबोट्स कर सकते हैं. ये रोबोट्स इंसानों की गहरे मलबे में, जमीन के अंदर खदानों में फंसे मजदूरों की आवाज सुनकर या थर्मल इमेजिंग करके उनतक पहुंचने का रास्ता बता सकते हैं. इसी आइडिया से प्रेरित होकर मैकारेना और उनकी टीम ने इंसानों की चीख पहचानने वाला ड्रोन बनाया है. (फोटोःगेटी)

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मैकारेना कहती हैं कि भविष्य में ऐसे ड्रोन्स और रोबोट्स की जरूरत पड़ेगी जो ऐसी जगहों से लोगों की जानकारी दे सकें, जहां पर बचावकर्मियों या कुत्तों का जाना मुश्किल है. आगे चलकर ऐसी स्थितियों के लिए इंसानों या कुत्तों की जरूरत नहीं होगी. क्योंकि बचाव के लिए रोबोट्स और ड्रोन काम करेंगे. इससे बचाव के समय होने वाले हादसों से बचा जा सकेगा. (फोटोःगेटी)

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