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साइंस न्यूज़

14 साल की स्टडीः बिगड़ गया धरती की ऊर्जा का संतुलन, इंसान गुनहगार

Earth Trapping Twice Heat
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हर साल गर्मी बढ़ रही है. कई देशों में सूखा पड़ रहा है. जंगलों में आग लग रही है. इन सबके पीछे हर बार वजह एक ही बताई जाती है. वह है जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज. लेकिन इसके पीछे दूसरा बड़ा कारण है. 14 साल पहले की तुलना में धरती अब दोगुना गर्मी सोख रही है. एक नई स्टडी में यह बात सामने आई है. हालांकि इसके पीछे भी वजह क्लाइमेट चेंज को ही बताया जा रहा है. यह स्टडी की गई है नासा के उन सैटेलाइट्स के डेटा की मदद से जो धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रहे हैं. ये सैटेलाइट्स धरती की निगरानी करते हैं. उसके भौगोलिक, रसायनिक, जलवायु संबंधी बदलावों का रिकॉर्ड रखते हैं. (फोटोःगेटी)

Earth Trapping Twice Heat
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नासा के अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट्स (NASA's Earth Observation Satellites) में लगे क्लाउड्स एंड द अर्थ रेडिएंट एनर्जी सिस्टम (CERES) यंत्र से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करके वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है. धरती साल 2005 से पहले की तुलना में अब दोगुना ज्यादा गर्मी सोख रही है. यानी दोगुना गर्म हो रही है. यानी सूरज से मिलने वाली गर्मी ज्यादा सोख रही है. वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि धरती इस गर्मी को इंफ्रारेड रेडिएशन के तौर पर अंतरिक्ष में वापस कितना भेज रही है.  (फोटोःगेटी)

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इनकमिंग एनर्जी और आउटगोइंग एनर्जी के बीच के अंतर को ऊर्जा का असंतुलन कहते हैं. यह स्टडी 2005 से 2019 के बीच सौर मंडल से आने वाली ऊर्जा और धरती से वापस जाने वाली ऊर्जा के बीच के अंतर को दर्शाने के लिए की गई है. इसमें यह बात साफ नजर आई है कि धरती दोगुना ऊर्जा यानी गर्मी सोख रही है लेकिन उतना वापस भेज नहीं पा रही है. इसलिए यह लगातार गर्म होती जा रही है.  (फोटोःगेटी)

 

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Earth Trapping Twice Heat
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वैज्ञानिकों ने सिर्फ सैटेलाइट्स के डेटा का ही विश्लेषण नहीं किया. अपनी इस बात को पुख्ता करने के लिए उन्होंने Argo नाम के सिस्टम से डेटा लिया. Argo दुनिया भर के समुद्र में लगाए गए रोबोटिक सेंसर्स का एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है. यह समुद्र की गर्मी का विश्लेषण करता है. जब वैज्ञानिकों ने CERES और Argo के आंकड़ों की तुलना की तो पता चला कि वैश्विक स्तर पर समुद्र 90 फीसदी ज्यादा ऊर्जा सोख रहे हैं.  (फोटोःगेटी)

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वर्जिनिया के हैम्प्टन स्थित नासा के लैंग्ले रिसर्च सेंटर के साइंटिस्ट और CERES स्टडी के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर नॉर्मन लोएब ने एक बयान में कहा कि सैटेलाइट्स और समुद्र के आंकड़ों को मिलाकर की गई स्टडी ऊर्जा के असंतुलन को सही तरीके से दर्शाती है. इससे हमें बड़े स्तर के अंतर का पता चला है. यह एक गंभीर चिंता का विषय है. जलवायु परिवर्तन भी इसके पीछे की बड़ी वजह है.  (फोटोःगेटी)

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इस स्टडी के बाद नॉर्मन लोएब और उनकी टीम इस नतीजे पर पहुंची कि धरती प्राकृतिक और इंसानी गतिविधियों की वजह से ज्यादा गर्मी सोख रही है. ज्यादा गर्म हो रही है. लगातार बढ़ रहे ग्रीनहाउस गैसों, जैसे- कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन की वजह से धरती के वायुमंडल में गर्मी स्टोर होती जा रही है, लेकिन वापस रेडिएंट एनर्जी के रूप में निकल नहीं पा रही है. (फोटोःगेटी)

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लगातार बढ़ रही गर्मी की वजह से धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर स्थित बर्फ की मोटी परत पिघल रही है. क्योंकि बर्फ की चादरें रेडिएशन, गर्मी और उसकी वजह से पैदा होने वाली नुकसानदेह किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेजती है. अगर ये पिघलती रहेंगी तो गर्मी वापस नहीं जाएगी. बल्कि धरती को गर्म करती चली जाएगी. इसके अलावा एक वजह और है जो धरती की गर्मी को बड़ा रहा है. वह है पैसिफिक डिकेडल ऑसीलेशन (Pacific Decadal Oscillation - PDO). (फोटोःगेटी)

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PDO प्रशांत महासागर में तापमान के बदलाव की प्रक्रिया है. इसमें महासागर का पश्चिमी छोर जब ठंडा होता है, तब पूर्वी किनारा गर्म होता है. यह प्रक्रिया करीब 10 साल के लिए चलती है. फिर एक दशक के बाद यह पलट जाती है. साल 2014 में PDO की नई प्रक्रिया शुरु हुई. जिसकी वजह से महासागर के ऊपर बादलों का बनना कम हो गया. इसकी वजह से इनकमिंग एनर्जी को धरती ज्यादा सोख रही है.  (फोटोःगेटी)

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नॉर्मन कहते हैं कि यह एंथ्रोपोजेनिक फोर्सिंग (Anthropogenic Forcing) यानी मानवजनित गतिविधियों का दबाव और धरती के अंदर होने वाले बदलाव का एक मिश्रण है. धरती द्वारा गर्मी सोखने और वापस भेजने की शक्ति पर इंसानी गतिविधियों का असर हो रहा है. लंबे समय तक यह होता रहने से गर्मी बढ़ने लगी है. इसकी वजह से धरती के ऊर्जा बहाव में असंतुलन आ रहा है. (फोटोःगेटी)

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