धरती पर छठा सामूहिक विनाश (Sixth Mass Extinction) शुरू हो गया है. दुनिया के कुछ बड़े वैज्ञानिकों और संस्थानों का तो यही मानना है. क्योंकि इससे पहले हुए पांच सामूहिक विनाश की घटनाएं तो प्राकृतिक थीं, लेकिन ये वाली इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रही है. करोड़ों की संख्या में अलग-अलग प्रजातियों की जीवों की मौत हो रही है. इसके पीछे जिम्मेदार इंसान हैं. (फोटोः गेटी)
बायोलॉजिकल रिव्यू जर्नल में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि धरती पर से करीब 13 फीसदी अकशेरुकीय प्रजातियों (Invertebrate Species) के जीव पिछले 500 सालों में खत्म हो चुके हैं. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर यही प्रक्रिया चलती रही तो जल्द ही जैव-विविधता में भयानक स्तर की गिरावट होगी. (फोटोः गेटी)
वैज्ञानिकों की यह बात इसलिए भी प्रमाणित होती है कि जिन 13 फीसदी जीवों की बात हो रही है, उनके बारे में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीसीज (Red List of Threatened Species) में जिक्र भी है. जिन जीवों की प्रजातियां खतरे में हैं, वो इस लिस्ट में शामिल होती हैं. (फोटोः गेटी)
हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सूची एकतरफा है. क्योंकि इसमें अकशेरुकीय प्रजातियों (Invertebrate Species) के जीवों को कम शामिल किया गया है. ज्यादातर स्तनधारी और पक्षी शामिल हैं. अकशेरुकीय जीवों को बचाने को लेकर इस लिस्ट में प्रावधान नहीं हैं. (फोटोः गेटी)
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर हम अकशेरुकीय प्रजातियों (Invertebrate Species) के जीवों की सूची देखेंगे तो पता चलेगा कि हम बड़े पैमाने पर धरती से बहुत ज्यादा संख्या में जीवों को खो रहे हैं. इनकी प्रजातियां तेजी से खत्म हो रही हैं. इसे प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिकों साल 2015 की एक स्टडी का हवाला दिया है, जिसमें धरती से मोलस्क (Molluscs) के खत्म होने की बात कही जा रही है. (फोटोः गेटी)
इस स्टडी में बताया गया था कि धरती पर पाए जाने वाले घोंघे (Snails) की 7 फीसदी आबादी तो साल 1500 से अब तक खत्म हो चुकी है. यह तो जमीन पर रहने वाले एक अकशेरुकीय प्रजाति (Invertebrate Species) का जीव है. समुद्र में यह दर बहुत ज्यादा है. जमीन और समुद्र मिलाकर देखा जाए तो इस प्रजाति के 7.5 से 13 फीसदी जीव खत्म हो चुके हैं. यानी करीब 20 लाख वो मोलस्क जिनके बारे में वैज्ञानिकों को पता था या है. (फोटोः गेटी)
Earth’s Sixth Mass Extinction Has Begun, Argue Researchershttps://t.co/2JnerHxKqU pic.twitter.com/AK4PZAaXcz
— IFLScience (@IFLScience) January 15, 2022
रेड लिस्ट के हिसाब से देखें तो 882 प्रजातियों के 1.50 लाख से लेकर 2.60 लाख मोलस्क धरती से खत्म हो चुके हैं. शोधकर्ताओं ने यह बात मानी है कि यह गणना मोटी-मोटी है. इसे लेकर कोई पुख्ता संख्या हासिल नहीं की जा सकी है क्योंकि इसके लिए दुनिया भर की जमीनों और समुद्री इलाकों की जांच करनी होगी. लेकिन यह संख्या कम हुई है इंसानी गतिविधियों की वजह से, यह बात तो पुख्ता तौर पर प्रमाणित हो चुकी है. (फोटोः गेटी)
वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन पर इंसानी गतिविधियां ज्यादा हैं, इसलिए यहां नुकसान ज्यादा हो रहा है. लेकिन समुद्र में ऐसा क्यों हो रहा है, इसकी स्टडी करनी होगी. स्टडी में शामिल रॉबर्ट कोवी कहते हैं कि इंसान इकलौती ऐसी प्रजाति है जो जैविक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकती है या बदल सकती है. वह भी बड़े पैमाने पर. हम इंसान ही एक ऐसी प्रजाति हैं जो भविष्य के हिसाब से चीजों को बदलने की क्षमता रखते हैं. इससे जैव विविधता पर भी असर पड़ता है. (फोटोः गेटी)
रॉबर्ट कोवी कहते हैं कि धरती पर हो रहे सतत प्राकृतिक विकास को रोकने और उसे बढ़ाने में इंसान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये बात तो कन्फर्म हो चुकी है कि हम किसी विनाश की ओर अगर जा रहे हैं तो इसमें इंसानों की प्रजाति सबसे बड़ी भूमिका निभा रही है. जिस हिसाब से धरती से जीव खत्म हो रहे हैं, उससे स्पष्ट होता है कि धरती पर छठा सामूहिक विनाश शुरू हो चुका है. (फोटोः गेटी)