Nepal Earthquake को मात्र दो दिन हुए हैं. भारी तबाही हुई है. इस साल इस हिमालयी देश में 70 से ज्यादा बड़े झटके आए हैं. शुक्रवार की रात जब 6.4 तीव्रता का भूकंप नेपालगंज के पास आया, तभी पता चल गया था कि तबाही बड़ी होगी. इस साल नेपाल में 70 से ज्यादा बड़े भूकंप के झटके आए हैं. क्या नेपाल के नीचे की धरती खिसक रही है? क्या इसी वजह से भारत में भी लगातार भूकंप के झटके महसूस हो रहे हैं? (सभी फोटोः AP)
उधर अफगानिस्तान में पिछले दस साल में 1000 से ज्यादा बड़े झटके आए हैं. पिछला तगड़ा भूकंप 6.3 तीव्रता का था. हेरात प्रांत में आया था. जिसकी वजह से काफी ज्यादा नुकसान हुआ था. नेपाल और अफगानिस्तान के इन भूकंपों की वजह से भारत कांपता रहता है. खासतौर से उत्तर भारत की जमीनें हिल जाती हैं. लोग डर जाते हैं.
भूकंप के मामले में नेपाल दुनिया का 11वां सबसे खतरनाक देश है. वैज्ञानिकों को ऐसी आशंका है कि यहां पर किसी भी समय बहुत भयानक और ज्यादा तीव्रता का भूकंप आ सकता है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि एशियाई देशों के नीचे मौजूद दो टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में टकरा रही हैं. एकदूसरे को दबा रही हैं. जिससे ताकत रिलीज हो रही है.
असल में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर साल 15 से 20 मिलिमीटर की स्पीड से तिब्बतन प्लेट और यूरेशियन प्लेट की तरफ बढ़ रहा है. अब आप सोचिए जब इतना बड़ा जमीन का टुकड़ा किसी अन्य बड़े टुकड़े को धकेलेगा, तो कहीं न कहीं तो ऊर्जा स्टोर होगी. तिब्बत की प्लेट खिसक नहीं पा रही हैं. इसलिए दोनों प्लेटों के नीचे मौजूद ऊर्जा निकलती है.
ये ऊर्जा छोटे-छोटे भूकंपों के रूप में निकलती है, तो परेशान नहीं होना है. लेकिन तेज निकली तो परेशानी का सबब बन जाएगी. नेपाल में जो भूकंप आया वैसे 520 साल के इतिहास में नहीं आया था. इसका मतलब ये है कि नेपाल की जमीन में बहुत ज्यादा ऊर्जा जमा हो रही है, जो बीच-बीच में ऐसे तीव्र भूकंपों को लेकर आ रही है. यानी खतरा बरकरार है.
पश्चिमी नेपाल के गोरखा जिले से लेकर उत्तराखंड के देहरादून तक जमीन के नीचे बहुत ज्यादा ऊर्जा जमा है. ये ऊर्जा टेक्टोनिक प्लेटों की मूवमेंट के कारण जमा हो रही है. हर 100 साल में भारतीय टेक्टोनिक प्लेट तिब्ब्तन प्लेटच की तरफ करीब 2 मीटर खिसक जाती है. ये भूकंप तब आते हैं, जब जमीन के नीचे मौजूद घाटियों में जमा ऊर्जा बाहर निकलती है.
नेपाल में पिछले 11 महीनों में 4 तीव्रता के ऊपर अब तक 70 से ज्यादा भूकंप आए हैं. इनमें 5 तीव्रता के 13 भूकंप थे. छह भूकंप रिक्टर पैमाने पर 6 या उससे ज्यादा तीव्रता के थे. 22 अक्टूबर को आए 6.1 तीव्रता के भूकंप की वजह से काठमांडू में 20 मकान टूट गए थे. इससे भयानक भूकंप साल 2015 में आया था. तीव्रता 7.8 थी.
2015 में नेपाल में 9 हजार लोग मारे गए थे. 22 हजार से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे. करीब 35 लाख लोग बेघर हो गए थे. उधर अफगानिस्तान की हालत भी खराब रहती है. यह देश यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट पर मौजूद है. जिसकी सीमा अरेबियन प्लेट, भारतीय प्लेट और ईरानियन प्लेट से लगती है. ये सारी प्लेट्स लगातार आपस में टकराती या धकेलती रहती हैं. जिसकी वजह से भूकंप आते रहते हैं.
IIT रूड़की के जियोलॉजिस्ट प्रो. कमल बताते हैं कि हिमालयन रीजन में बहुत ज्यादा एनर्जी स्टोर है. ये धीरे-धीरे रिलीज होती रहे तो बेहतर है. एकसाथ निकलेगी तो भयानक तबाही होगी. क्योंकि इतनी ऊर्जा को भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल समेत कई एशियाई देशों की ऊपरी जमीन सह नहीं पाएगी. भूकंप कब आएंगे इसका पता कोई नहीं कर सकता.
अगर भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5 से ज्यादा है तो उसकी पहली लहर 10 मिनट में 500 किलोमीटर तक फैल जाती है. यानी दिल्ली में भूकंप का केंद्र बनता है तो लखनऊ तक भूकंप की पहली लहर 10 मिनट में पहुंच जाएगी. ये जरूरी नहीं रिक्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता पांच ही रहे. वह कम होती चली जाती है.
दिल्ली-NCR भूकंप के पांचवें और चौथे जोन में है. यहां के लोगों को सतर्क रहने की जरुरत है. क्योंकि हम भूकंप को न रोक सकते हैं, न टाल सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में भूकंप से संबंधित अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाए जाएं. पाकिस्तान के हिंदूकुश में भूकंप आता है तो हमें 5 मिनट बाद पता चलता है कि भूकंप आया है.
भारत को भूकंप के हिसाब से पांच जोन में बांटा गया है. पांचवें जोन में देश के कुल भूखंड का 11% हिस्सा है. चौथे में 18% और तीसरे और दूसरे जोन में 30%. सबसे ज्यादा खतरा जोन 4 और 5 वाले इलाकों को है. सबसे खतरनाक जोन है पांचवां. इस जोन में जम्मू और कश्मीर का हिस्सा (कश्मीर घाटी), हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं.