2000 साल पुरानी ममी के पेट में बेहद सुरक्षित भ्रूण मिला है. जैसे कोई अचार सालों तक सुरक्षित रहता है. यह रोचक खोज उस ममी की है जिसे मिस्र की पहली गर्भवती ममी (First Known Pregnant Mummy) कहा जा रहा है. इस ममी को रहस्यमयी महिला (Mysterious Lady) नाम भी दिया गया है. इसके भ्रूण की जांच करने के लिए ममी का सीटी स्कैन किया गया था. जिसे देखकर वैज्ञानिक और पुरातत्वविद हैरान रह गए. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
पोलिश एकेडमी ऑफ साइंसेज और इस खोज के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. वोजसीज एसमंड ने कहा कि आजतक कोई अन्य गर्भवती ममी हमें नहीं मिली थी. न ही मिस्र से, न ही दुनिया के किसी और इलाके से. विज्ञान जगत में यह ऐसा पहला मामला है. इसलिए हमें प्राचीन इतिहास को समझने का भरपूर मौका मिलेगा. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
सीटी स्कैन (CT Scan) से पता चला कि इस गर्भवती महिला के मरते समय उसके पेट में एक भ्रूण पल रहा था. जिसे करीब 2000 साल पहले ममी बना दिया गया. यह भ्रूण पूरी तरह से सुरक्षित है. वह हजारों सालों के बाद भी. यह स्टडी हाल ही में जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित हुई है. जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह भ्रूण इतने सालों से ममी के पेट के अंदर सुरक्षित रहा. जैसे कोई बॉग बॉडीज (Bog Bodies) होते हैं. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
बॉग बॉडीज (Bog Bodies) इंसानी कैडेवर्स को कहते हैं, जो प्राकृतिक तौर पर ममी बन जाते हैं. इनके ममी बनने की प्रक्रिया अत्यधिक अम्लीय (Acidic) और कम ऑक्सीजन वाले पर्यावरण में होता है. इसे पीट बॉग कहते हैं. लगता है कि ऐसी ही प्रक्रिया इस ममी के पेट में हुई होगी. या इस तरह की प्रक्रिया के तहत ही प्राचीन मिस्र में लोगों को ममी बनाया जाता रहा होगा. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
आमतौर पर जब इंसान मरता है तब उसके खून में मौजूद pH का स्तर कम होने लगता है. शरीर धीरे-धीरे अम्लीय होने लगता है. शरीर में अमोनिया और फॉर्मिक एसिड (Formic Acid) का स्तर बढ़ने लगता है. चुंकि, भ्रूण गर्भ के अंदर सील बंद था. वहां ऑक्सीजन की मात्रा कम थी, जैसे पीट बॉग के साथ होता है. इसलिए यह भ्रूण ममी के शरीर में इतने सालों से सुरक्षित रह गया. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
वॉरसा ममी प्रोजेक्ट ने अपने ब्लॉग पोस्ट में कहा है कि यह भ्रूण एकदम अछूता रहा है. जैसे कई सालों तक अचार सही सलामत रहता है. यह तुलना सही नहीं है लेकिन इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता. यह आपको सुरक्षित रहने का आइडिया दे देगा. बॉग बॉडी की तरह ही भ्रूण के बाहर की परतें भी पूरी तरह से सुरक्षित थीं. लेकिन भ्रूण की हड्डियां पूरी तरह गायब थीं. ऐसे अत्यधिक एसिडिक वातावरण की वजह से हुआ होगा. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
सीटी स्कैन में भ्रूण के अंदर किसी भी तरह की हड्डी के निर्माण या मौजूदगी का कोई सबूत नहीं मिला. इसके एक्स-रे भी किए गए. कई और तरीकों से भी जांच की गई लेकिन भ्रूण के अंदर कोई हड्डी नहीं मिली. आमतौर पर शोधकर्ता सीटी स्कैन या एक्स-रे करते समय हड्डियों की खोज जरूर करते हैं. क्योंकि उससे शरीर की बनावट का पता चलता है. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
डॉ. वोजसीज एसमंड ने कहा कि हमारे पास रिसर्च के लिए अत्यधिक उच्च क्षमता के स्कैनर हैं. इसलिए हमारी रिसर्च में पता चला कि भ्रूण की हड्डियां सही तरीके से बच नहीं पाई. यह तब हुआ होगा जब इस गर्भवती महिला के मरने के बाद उसे ममी बनाया जा रहा होगा. या उसके ममी बनने के कुछ दिन के बाद. इसलिए हड्डियां गल गईं. लेकिन शरीर का आकार रह गया. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
डॉ. एसमंड कहते हैं कि इस खोज से कुछ नए आयाम मिले हैं. यानी पुरानी तकनीकों से भ्रूण की जांच नहीं की जा सकती. ये उम्मीद भी जगी है कि मिस्र में और ममी ऐसी हो सकती हैं, जिनके अंदर भ्रूण हो. या दुनिया के किसी अन्य म्यूजियम में मौजूद गर्भवती महिला की ममी के साथ भी ऐसा हो. हो सकता है कि उनके पेट में भी अजन्मा बच्चा मौजूद हो. इसकी जांच करनी होगी. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
डॉ. एसमंड ने कहा कि हमें दुनिया भर के स्कॉलर्स का फोन आ रहा है. ईमेल्स आ रहे हैं. जो ये दावा कर रहे हैं कि उन्हें जो ममी मिली हैं, वो मरते समय गर्भवती थी. इसलिए हो सकता है कि उनके पेट में भी हमें सुरक्षित भ्रूण मिल जाए. हमारे पास जितने भी प्रस्ताव आए हैं, हम एक-एक करके उनकी जांच करेंगे. अगर कहीं और ऐसा मामला सामने आता है तो पूरी दुनिया को इसकी जानकारी देंगे. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)
लेकिन इस समय दुनिया में एक यही इकलौती ममी है जो मरते समय गर्भवती थी. इसके पेट में बच्चा था. जो आज भी अपने गर्भवस्था वाले आकार में सुरक्षित है. अब सवाल ये है कि ममी के शरीर में भ्रूण को क्यों छोड़ दिया गया, जबकि उसके बाकी अंगों को निकाल लिया गया था. क्योंकि यह बेहद दुर्लभ प्रक्रिया रही होगी, उस समय. हमें इसके बारे में प्राचीन मिस्र के इतिहास को खंगालना होगा. (फोटोः वॉरसॉ ममी प्रोजेक्ट)