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साइंस न्यूज़

भविष्य का सच...जब सोचने से चलेंगे मोबाइल-कंप्यूटर

Elon Musk Neuralink
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आपने सोचा कि कल सुबह 4 बजे जागना है. बिना अलार्म लगाए आप सो गए और सुबह ठीक 4 बजे फोन का अलार्म बजने लगा. आप उठकर खड़े हो गए. दफ्तर से घर आते वक्त रास्ते में याद आया कि अपने बॉस को एक जरूरी मेल भेजना तो भूल ही गए, लेकिन जब आप इसी काम के लिए मेलबॉक्स खोलते हैं तो पाते हैं कि बॉस को मेल जा चुका है. ये कैसे हो रहा है? आप जो भी काम सोच रहे हो, बिना कोई कमांड दिए ये काम हो कैसे रहे हैं? हम किसी SciFi फिल्म का सीन नहीं बता रहे बल्कि अगले कुछ सालों में इंसानी लाइफस्टाइल की झलकियां दे रहे हैं. (फोटोः गेटी)

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जिस नई तकनीक के बारे में हम आपको बातने वाले हैं उसमें आपका दिमाग और मशीन एक दूसरे के साथ सीधा कनेक्ट होकर बिना कोई कंमाड लिए सोचने भर से काम करना शुरू कर देंगे. सेलेब्रिटी इंजीनियर और एलन मस्क ने पिछले साल ऐसी घोषणा की जिसने सबको चौंका दिया. मस्क ने कहा कि उनकी कंपनी न्यूरालिंक ने एक ऐसा न्यूरल इंप्लांट विकसित किया है जो बिना किसी बाहरी हार्डवेयर के दिमाग के अंदर चल रही गतिविधि को वायरलेस से प्रसारित कर सकता है. (फोटोः विकिपीडिया)

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अपने स्टाइल के मुताबिक मस्क केवल घोषणा करने नहीं आए थे, उन्होंने इस तकनीक का सबके सामने डेमो भी पेश किया. घोषणा करते हुए कुछ ऐसे सुअरों को दिखाया जिनके दिमाग में न्यूरालिंक के डिवाइस को इंप्लांट किया गया था. ये सुअर जो भी हरकते कर रहे थे, उनके दिमाग के भीतर की सारी गतिविधियां एक स्क्रीन पर दिखाई दे रहीं थी. (फोटोः न्यूरालिंक)

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क्या है न्यूरालिंक

न्यूरालिंक कंपनी की घोषणा करते हुए मस्क ने बताया कि इसका लक्ष्य एक ऐसे न्यूरल इंप्लांट को विकसित करने का है जो इंसानी दिमाग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से सिंक्रोनाइज कर कंप्यूटर्स, कृत्रिम शारीरिक अंग और दूसरी मशीनों को केवल विचारों के माध्यम से चला सके. न्यूरालिंक जिस डिवाइस को बना रहा है, वो एक उंगली के नाखून के बराबर, बैट्री से चलने वाली और इंसानी बाल से भी कई गुने पतले तारों से लैस छोटी सी मशीन होगी, जो दिमाग के अंदर इंप्लांट कर दी जाएगी. (फोटोः गेटी)

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न्यूरालिंक के इम्प्लांट में बैटरी, प्रोसेसिंग चिप और ब्लूटूथ रेडियो सहित सभी आवश्यक चीजें होती हैं, साथ ही इस डिवाइस में लगभग 1000 इलेक्ट्रोड होते हैं. हर इलेक्ट्रोड दिमाग में जीरो और चार के न्यूरॉन्स (दिमाग के अंदर संदेशवाहक कोशिकाओं) के बीच की गतिविधि को रिकॉर्ड करता है. हालांकि वैज्ञानिकों के लिए ये तकनीक नई नहीं है. विश्व स्तर पर शोधकर्ताओं की टीम करीब 15 सालों से मनुष्यों में सर्जिकली इंप्लांटेड BCI (ब्रेन-कंप्यूटर-इंटरफेस) सिस्टम पर काम कर रही है. (फोटोः गेटी)

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एलन मस्क की कंपनी केवल इस डिवाइस को बनाने में ही काम नहीं कर रही बल्कि इस डिवाइस को दिमाग के भीतर लगाने की तकनीक पर भी काफी हद तक सफलता पा चुकी है. न्यूरालिंक ने एक ऐसा सर्जिकल रोबोट विकसित किया है जो दिमाग में बेहद संवेदनशील गहराई तक इम्प्लांट के इलेक्ट्रोड डालने में सक्षम है, जो इंसानी हाथों की मदद से असंभव है. खास बात ये है कि इस रोबोटिक तकनीक से इंप्लांट करने पर दिमाग के टिश्यू को नुकसान होने का जोखिम भी कम रहता है. (फोटोः गेटी)

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न्यूरालिंक के फायदे

आने वाले वक्त में अगर ये तकनीक पर्याप्त रूप से विकसित हो गई तो इसका सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को होगा जो किसी रीढ़ की हड्डी की चोट, पैरालिसिस या किसी तरह के शारीरिक और मानसिक अक्षमता से गुजर रहे हैं. सोचिए एक व्यक्ति जिसके न तो हाथ-पैर काम कर रहे हों और न ही बोल पाता हो, उसके लिए न्यूरालिंक जैसी तकनीक एक नए जन्म के बराबर होगी. आम जीवन में इसके उपयोग का तब तक इंतजार करना होगा जब तक इसकी कीमत किसी कम्प्यूटर या किसी महंगे स्मार्टफोन के बराबर न हो जाए. इस तकनीक का इस्तेमाल खुफिया एजेसियां अपने खुफिया एजेंट्स के लिए उपयोग में ला सकती हैं. (फोटोः न्यूरालिंक)

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न्यूरालिंक ने इस तकनीक में एक कदम आगे जाते हुए एक वीडियो रिलीज किया जिसमें एक 9 साल के लंगूर को दिखाया गया जिसके दिमाग में इस डिवाइस को इंप्लाट किया गया था. वीडियो में लंगूर पहले तो एक जॉयस्टिक के सहारे कंप्यूटर पर माइंड पोंग गेम खेलता दिखा. कुछ देर बाद जॉयस्टिक अलग कर दी जाती है और लंगूर बिना किसी हाथ का उपयोग किए केवल अपने दिमाग से ट्रंसमिट हो रहे सिंग्नल के सहारे गेम को ऐसे खेल पा रहा था जैसे वो इसका चैंपियन हो. (फोटोः न्यूरालिंक)  

यहां क्लिक कर देखें वीडियो...

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आड़े आ रहीं ये चुनौतियां

इंसानी शरीर का सबसे जटिल और संवेदनशील अंग दिमाग है. रोबोटिक तकनीक से इंप्लांट किए जाने वाले इस डिवाइस को लेकर सबसे पहला खतरा इसके अंदर जाते ही ब्रेन सेल्स और टिश्यू में इंन्फेक्शन फैलने का है. न्यूरालिंक ने अब तक जो रिसर्च की है, वह रिसर्चर्स कम्यूनिटी द्वारा अब तक सत्यापित नहीं किया गया है. बायो-मेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बोलू अजीबोये ने कहा कि एक छोटा सा डिवाइस जो इंसानी दिमाग के भीतर मौजूद असंख्य और अनियंत्रित इंन्फॉर्मेशन को ट्रांसमिट करते वक्त दिमाग के टिश्यू को नष्ट करने लायक हीट जनरेट कर सकता है. इतना ही नहीं न्यूरालिंक डिवाइस इतना छोटा होने के बावजूद भी इंसानी दिमाग के लिए काफी बड़ा है. इसका सिलेन्ड्रिकल आकार 23 मिमी व्यास x 8 मिमी लंबा है. जो इंसान के दिमाग में बिना कोई नुकसान पहुंचाए जगह बना ले, ये सबसे बड़ा चैलेंज है. (फोटोः न्यूरालिंक)

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अजीबोय कहते कि न्यूरल डिकोडिंग बेहद जटिल और महत्वपूर्ण है. दुनिया भर में कई प्रयोगशालाएं इस पर गहन अगल-अलग तरीकों से शोध कर रही हैं. न्यूरल डिकोडिंग के लिए विकसित की जाने वाली एल्गोरिदम इस तकनीक का सबसे अहम हिस्सा है. जिसको लेकर अब तक न्यूरालिंक से कोई बात नहीं कही गई है. इंसानी दिमाग इस तरह की तकनीक को संभाल पाने, बायो-इंफोर्मेशन को 'न्यूरॉन्स के भीतर से चोरी' करने की तकनीक बेहद जटिल है. इस तकनीक से कंप्यूटर सुपरमेसी का डर भी जुड़ा हुआ है. यानी जिस तरह से दिमाग विचारों से मशीनों पर काबू पाएगा, इस तकनीक की रिवर्स इंजीनियरिंग कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानी दिमाग पर काबू पा सकती है. (फोटोः न्यूरालिंक)

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इतना ही नहीं न्यूरालिंक के साथ सबसे बड़ा खतरा हमारी प्राइवेसी का है. मान लीजिए कि ये डिवाइस किसी इंसान के दिमाग में अच्छे से ऑपरेट कर रहा है. अब वह इंसान जो कुछ भी सोच रहा है, जो भी प्लान्स बना रहा है, जो भी यादें उसके दिमाग में स्टोर हैं, वे सब न्यूरालिंक से कनेक्ट किसी कंप्यूटर या स्मार्टफोन के जरिए डाटा कंपनियों तक सीधी प्रसारित हो रही हैं. (फोटोः न्यूरालिंक)

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