ब्रह्मांड में सबसे बड़ा आकार होता है कई गैलेक्सियों के समूह का जो आपस में गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बंधी रहती है. इनमें हजारों आकाशगंगाएं, गर्म गैसों की समंदर, डार्क मैटर के अदृश्य द्वीप और कई बार चमकते हुए भूत जैसे जेलीफिश भी दिख जाते हैं. आप हैरान होंगे कि अंतरिक्ष में पानी का जीव कैसे पहुंच गया? अंतरिक्ष में जेलीफिश की तरह दिखने वाले खास तरह के बादलों को घोस्ट रेडियो जेलीफिश (Ghost Radio Jellyfish) कहते हैं. हाल ही में ऐसी जेलीफिश खोजी गई है. (फोटोः टॉरेंस हॉडसन/ICRAR)
धरती से करीब 30 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर स्थित इस घोस्ट रेडियो जेलीफिश (Ghost Radio Jellyfish) का नाम है एबेल 2877 (Abell 2877). यह धरती के दक्षिणी आसमान में है जो खुली आंखों से तो कतई नहीं दिखेगा. यहां तक कि टेलिस्कोप से भी नहीं. इसे देखने के लिए रेडियो टेलिस्कोप की जरूरत पड़ती है. (फोटोः गेटी)
घोस्ट रेडियो जेलीफिश (Ghost Radio Jellyfish) एबेल 2877 (Abell 2877) की चौड़ाई 10 लाख प्रकाशवर्ष है. इसके बीच में एक सुपरचार्ज्ड प्लाज्मा का घेरा है. जिसके चारों तरफ लंबे-लंबे गर्म गैस के सूंड हैं. ये प्लाज्मा इन्हीं सूंड़ों के रास्ते अंतरिक्ष में गर्मी फैला रहा है. और आसपास के अंतरिक्षीय वस्तुओं को चार्ज कर रहा है. (फोटोः गेटी)
एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक एबेल 2877 रेडियो जेलीफिश भूत जैसा है. क्योंकि ये अचानक से कैसे पैदा हुआ इसका पता नहीं चल पाया है. साथ ही ये बेहद चालाक है यानी ये अपने आकार को जेलीफिश से बदलने की कोशिश भी कर रहा है. ये कभी भी दिखना बंद भी हो सकता है. यानी ये फिर भूत की तरह गायब हो जाएगा. (फोटोः गेटी)
ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी रिसर्च (ICRAR) के साइंटिस्ट टॉरेंस हॉडसन ने कहा कि रेडियो जेलीफिश के नाम कई वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं. जैसे- ये आम रेडियो फ्रिक्वेंसी पर चमकदार दिखाई देता है, लेकिन फ्रिक्वेंसी 200 मेगाहर्ट्ज पहुंचने पर ये गायब हो जाता है. इससे पहले कभी भी अंतरिक्ष में इस तरह की चीज नहीं देखी गई है. जो इतनी जल्दी दिखे और गायब हो जाए. (फोटोः गेटी)
Ha la forma di una medusa la gigantesca struttura di plasma, ovvero gas ionizzato, rivelata nell’ammasso di galassie #Abell2877 con il radiotelescopio Murchison Widefield Array in Australia @ICRAR
— MEDIA INAF (@mediainaf) March 22, 2021
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ब्रह्मांड में इस समय ऊर्जा से भरी हुई कई आकृतियां तैर रही है, जो सिर्फ रेडियो वेवलेंथ पर ही दिखाई देती हैं. इसमें सबसे ऊपर नाम है आता है रहस्यमयी एक्स-शेप गैलेक्सी (X Shaped Galaxies) का. ये बैलगाड़ी की गति की तरह अंतरिक्ष में घूमती हैं. या फिर आप ट्विन ब्लॉब (Twin Blob) को ले लीजिए. ये आकाशगंगा के मध्य में मौजूद हैं. आजतक इतने पतले बैंड और रेडियो स्पेक्ट्रम पर इतनी बड़ी वस्तु नहीं देखी गई है. (फोटोः गेटी)
इसलिए वैज्ञानिकों ने रेडियो जेलीफिश एबेल 2877 को नया नाम दिया है. इसे वो रेडियो फीनिक्स (Radio Phoenix) कह रहे हैं. फीनिक्स ऐसा पक्षी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह आग की लपटों में खत्म हो गया था, उसके बाद राख से वापस जिंदा हो गया. अंतरिक्ष में मौजूद एबेल 2877 भी ऐसा ही कुछ करता हुआ दिखाई दे रहा है. (फोटोः गेटी)
Astronomers see a ghostly 'radio jellyfish' rise from the dead in the southern sky https://t.co/K0d2jw30n7 pic.twitter.com/g4DTgyjGKY
— Live Science (@LiveScience) March 31, 2021
ऐसा लगता है कि उच्च-ऊर्जा वाले किसी विस्फोट की वजह से एबेल 2877 बना है. कई लाख सालों से ये धुंधला होता जा रहा था. धीरे-धीरे इसके इलेक्ट्रॉन अपनी ऊर्जा खत्म कर रहे थे. तभी इनसे एक और गैलेक्सी आकर मिल गई. जिससे ये दोबारा जिंदा हो गया. इससे ये रेडियो फीनिक्स बन गया है. रेडियो फीनिक्स बनाने के लिए जरूरी है कि एक बड़ा विस्फोट हो जो कई करोड़ प्रकाशवर्ष की दूरी तक शॉकवेव भेज सके. (फोटोः गेटी)
टॉरेंस हॉडसन ने कहा कि हमारी थ्योरी के अनुसार करीब 200 करोड़ साल पहले कई आकाशगंगाओं के बीच मौजूद एक बेहद बड़े ब्लैक होल से प्लाज्मा की ताकतवर लहरें निकली होंगी. इस प्लाज्मा की ऊर्जा कई लाख साल में धीरे-धीरे करके कमजोर हुई होगी. जबतक कि हाल ही में दो अंतरिक्षीय वस्तुएं आपस में टकराई न हो. दूसरी गैलेक्सी के टकराने से ही इस प्लाज्मा में फिर से जान आई है. इसने रेडियो जेलीफिश और बाद में रेडियो फीनिक्स का रूप रख लिया. (फोटोः गेटी)
टॉरेंस और उनकी टीम में रेडियो टेलिस्कोप से प्राप्त सिग्नलों के आधार पर कंप्यूटर सिमुलेशन किया. इसके बाद इस रेडियो जेलीफिश यानी रेडियो फीनिक्स के आकार और धरती से दूरी की गणना की. ये भी बताया कि उसके अंदर कितना गर्म प्जाज्मा कहां है. ये सारी डिटेलिंग ऑस्ट्रेलिया में लगाए गए स्क्वायर किलोमीटर एरे रेडियो टेलिस्कोप की वजह से संभव हुआ है. (फोटोः गेटी)