पूरी दुनिया में जमीन के उपयोग का तरीका बदल रहा है. जंगलों को टुकड़ों में बांटकर काटा जा रहा है. कृषि का विस्तार हो रहा है. इसके अलावा मवेशियों का केंद्रित उत्पादन किया जा रहा है. ये सारे काम दुनिया में कई जगहों पर चमगादड़ों और उनके अंदर मौजूद कोरोना वायरस के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना रहे हैं. इन्हीं परिस्थितियों की स्टडी करके वैज्ञानिकों ने नए कोरोना वायरस के पैदा होने के संभावित हॉटस्पॉट की सूची बनाई है. साथ ही ये भी बताया है कि इन जगहों से भी कोरोना वायरस चमगादड़ों से इंसानों में जाकर उन्हें संक्रमित कर सकता है. (फोटोःगेटी)
ये स्टडी बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, मिलान के पॉलीटेक्निक यूनिवर्सिटी और न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने की है. वैज्ञानिकों ने बताया कि अब तक SARS-CoV-2 की उत्पत्ति के स्थान का सही पता नहीं चल पाया है. वैज्ञानिकों के ये पता है कि कोरोनावायरस ने पहले हॉर्स-शू चमगादड़ को संक्रमित किया, इसके बाद वह इंसानों में फैल गया. ये संक्रमण या तो सीधे फैला है या फिर इंसानों द्वारा जंगलों और जानवरों के संपर्क में आने से हुआ है. दूसरा तरीका है किसी माध्यम के जरिए जैसे चमगादड़ और इंसान के बीच पैंगोलिन का संक्रमित होना. (फोटोःगेटी)
नई स्टडी में पश्चिमी यूरोप से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक के देशों को शामिल किया गया. जहां पर जमीन के उपयोग का तरीका बदल रहा है साथ ही हॉर्स-शू चमगादड़ों की प्रजातियां मौजूद हैं. जब वैज्ञानिकों ने इन देशों में जंगलों के टुकड़ों, इंसानी बस्ती, कृषि के विस्तार और मवेशियों के उत्पादन को हॉर्स-शू चमगादड़ों के निवास से तुलना की तो उन्हें यह पता चल गया कि नया कोरोना वायरस कहां पैदा होकर लोगों को संक्रमित कर सकता है. क्योंकि अब जो कोरोना वायरस पैदा होगा, उसके लिए परिस्थितियां बेहद अनुकूल होती जा रही हैं. (फोटोःगेटी)
Analysis reveals global ‘hot spots’ where new coronaviruses may emergehttps://t.co/iblGbghN7Q
— UC Berkeley (@UCBerkeley) June 1, 2021
इस स्टडी में जिन जगहों का नाम बताया गया है, वहां पर आसानी से नए कोरोना वायरस का जन्म हो सकता है. साथ ही ये इंसानों को संक्रमित भी कर सकते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में पर्यावरणीय विज्ञान के प्रोफेसर पाओलो डिऑडोरिको ने बताया कि जमीन के उपयोग का बदलना इंसान की सेहत बड़ा असर डालती है. क्योंकि एक तो हम पर्यावरण को बदल रहे हैं. दूसरा इंसानों का जूनोटिक डिजीसेज (जानवरों से फैलने वाली बीमारियों) से खतरा बढ़ रहा है. अगर सरकारी स्तर पर भी किसी देश में जमीन का उपयोग बदला जा रहा है तब भी इंसान की सेहत पर पड़ने वाले असर की जांच कर लेनी चाहिए. क्योंकि इससे कार्बन स्टॉक, माइक्रोक्लाइमेट और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ता है. (फोटोःगेटी)
सबसे पहले जिस देश में नया कोरोना वायरस जन्म ले सकता है उसका नाम है चीन. चीन में कई ऐसे हॉटस्पॉट हैं जहां पर मांस उत्पादन की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसकी वजह से मवेशियों का उत्पादन ज्यादा हो रहा है. केंद्रित मवेशी उत्पादन चीन में चिंता का विषय है. क्योंकि ऐसी जगहों पर कई ऐसे जीव आते हैं जो जेनेटिकली एक समान होते हैं. साथ ही इनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. ये खुद संक्रमित होने और महामारी फैलाने में सक्षम होते हैं. (फोटोःगेटी)
इसके अलावा जिन जगहों पर कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन या वैरिएंट्स आ सकते हैं. या फिर नया कोरोना वायरस जन्म ले सकता है- उसमें जापान के कुछ हिस्से, फिलीपींस का उत्तरी इलाका, चीन का दक्षिणी इलाका और शंघाई सबसे पहले नए कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट बन सकते हैं. जबकि, इंडो-चाइना के कुछ हिस्से और थाईलैंड के कुछ इलाके जो अभी सही हैं, लेकिन भविष्य में हॉटस्पॉट में बदल सकते हैं. क्योंकि इन जगहों पर मवेशियों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है.(फोटोःगेटी)
A new analysis, co-authored by professor Paolo D'Odorico and published in @NatureFoodJnl, reveals global ‘hot spots’ where new #coronaviruses may emerge. Read more in @UCBerkeleyNews: https://t.co/fYfPL9ApHh
— ESPM UC Berkeley (@ESPM_Berkeley) June 1, 2021
मिलान स्थित पॉलीटेक्नीक यूनिवर्सिटी में हाइड्रोलॉजी. वॉटर एंड फूड सेफ्टी की प्रोफेसर मारिया क्रिस्टीना रूली ने बताया कि इस स्टडी में हमने जिन बातों का अध्ययन किया है, उसमें संभावना जताई जा रही है. क्योंकि इन इलाकों में जमीन का उपयोग बदला जा रहा है. जंगल काटे जा रहे हैं. पानी की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है. केंद्रित मवेशी उत्पादन हो रहा है. जिन जगहों पर ये सारे काम एकसाथ किए जा रहे हैं, वहां पर नए कोरोना वायरस के जन्म लेने की आशंका बहुत ज्यादा है. (फोटोःगेटी)
क्रिस्टीना मारिया रूली ने कहा कि हमें उम्मीद है कि हमारी स्टडी से लोगों का ध्यान उन इलाकों पर रहेगा जहां नए कोरोना वायरस के जन्म लेने की आशंका है. साथ ही किसी भी तरह की महामारी फैलने को रोकने के लिए इन इलाकों में कड़े नियम बनाए जाएंगे, साथ ही उनका सख्ती से पालन किया जाएगा. क्योंकि प्राकृतिक स्थानों पर इंसानों का कब्जा जानवरों से फैलने वाली बीमारियों को बढ़ाता है. साथ ही कीमती जैव-विविधता को कम करता है. कैसे आइए बताते हैं. (फोटोःगेटी)
क्रिस्टीना ने बताया कि इंसान सबसे पहले जंगलों के टुकड़े करता है. उसके बाद वहां पेड़ों की कटाई करता है. इस जमीन पर या तो वह कृषि करता है या फिर मवेशी पालता है या उद्योग लगाता है. यानी कई जीवों का प्राकृतिक घर उजड़ गया. जबकि, कुछ प्रजातियों के जीवों को जीने के लिए खास तरह का माहौल चाहिए होता है जिसे इंसानों ने खराब कर दिया. इन्हें स्पेशलिस्ट (Specialist) कहा जाता है. ये कहीं और नहीं जाते. दूसरे प्रजातियों के जीव जिन्हें तोड़फोड़ से असर नहीं पड़ता, उन्हें जनरलिस्ट (Generalist) कहते हैं. (फोटोःगेटी)
स्पेशलिस्ट प्रजाति के जीव अपना घर टूटने से या तो दूसरी जगह चले जाते हैं. या फिर उनकी प्रजाति खत्म हो जाती है. लेकिन जनरलिस्ट प्रजाति के जीव खुद को बचाने के लिए इंसानी बस्तियों में जगह खोजते हैं. इन्हें कोई खास पर्यावरण या स्थान नहीं चाहिए होता है रहने के लिए. इसलिए जैसे ही ये इंसानों के करीब आते हैं, इनके साथ घूमने वाले बैक्टीरिया-वायरस भी इंसानों के नजदीक आ जाते हैं. यहीं से इंसानों में जूनोटिक बीमारियां फैलने की आशंका बढ़ जाती है. (फोटोःगेटी)
प्रो. पाओलो डिऑडोरिको ने बताया कि हॉर्स-शू चमगादड़ जनरलिस्ट श्रेणी में आने वाला जीव है. यह अक्सर इंसानी गतिविधियों की वजह से परेशान होकर विस्थापित होता रहता है. इसके पहले भी पाओलो, क्रिस्टीना और डेविड हेमैन की स्टडी में इस बात का खुलासा किया था कि कैसे अफ्रीका में जंगलों के टुकड़े करके जीवों का घर बर्बाद करने की वजह से इबोला वायरस इंसानों में फैला था. (फोटोःगेटी)
प्रो. पाओलो कहते हैं कि इंसान इतना सोचकर जंगल नहीं काटता. वह सिर्फ काट देता है. वह जमीन का उपयोग बदल देता है. जिसकी वजह से स्पेशलिस्ट जीव खत्म हो जाते हैं या फिर नई जगह चले जाते हैं. इसी का फायदा उठाते हैं हॉर्स-शू चमगादड़ जैसे जनरलिस्ट श्रेणी के जीव. पाओलो ने बताया कि हम यह दावा पुख्ता तौर पर नहीं कर सकते कि जंगली जीवों से ही इंसानों में कोरोना वायरस आया है. लेकिन हमें ये पता है कि जमीन के उपयोग को बदलना इस कहानी की शुरुआत है. ये सिर्फ चमगादड़ों से फैलने वाले वायरस की बात नहीं है. इंसान किसी जीव का घर तोड़ेगा तो वह इंसान को कैसे छोड़ेगा. किसी न किसी तरह से इंसानी जीवन और बस्ती को प्रभावित करेगा ही. (फोटोःगेटी)
चीन पिछले दो दशकों से पौधारोपण और हरियाली बढ़ाने के प्रयास में लीडर रहा है. लेकिन पौधारोपण कार्यक्रम ऐसी जगहों पर किए गए हैं, जो जंगलों के टुकड़ों से दूर हैं. यानी वो किसी भी स्पेशलिस्ट जीव के रहने योग्य नहीं है. अगर स्पेशलिस्ट जीव को बचाना है तो जंगलों के दायरे को बढ़ाना होगा. वाइल्डलाइफ कॉरिडोर्स बनाने होंगे. ताकि जंगल में पेड़ों की संख्या बढ़ सके. इससे जंगल का आकार बढ़ेगा और जीवों का इंसानों से सीधा संपर्क कम होगा. (फोटोःगेटी)
प्रो. पाओलो ने कहा कि पर्यावरण की सेहत बिगड़ेगी तो इंसानों की बिगड़ेगी. साथ ही जानवरों की भी. क्योंकि ये सारे आपस में संबंधित हैं. ये एकदूसरे को तय दूरी और सीमा में बांधते हैं. अगर यह दूरी और सीमा तोड़ी जाएगी तो नुकसान इंसानों को ज्यादा होगा. हमारी स्टडी ने कोरोना वायरस महामारी, पर्यावरण, इंसान, जीवों से फैलने वाली बीमारियों को बिंदुवार तरीके से जोड़ा है. (फोटोःगेटी)
पाओलो ने कहा कि अगर और गहराई में जाना है तो कई देशों में जमीन के बदलते उपयोग का डेटा स्टडी करना पड़ेगा. ताकि सटीक जानकारी निकाली जा सके कि कहां से नया कोरोना वायरस जन्म ले सकता है. क्योंकि जमीन के उपयोग को बदलने के चक्कर में इंसान ऐसी प्रजातियों के जीवों के संपर्क में आ रहा है, जो कई प्रकार के वायरस और बैक्टीरिया के वाहक हो सकते हैं. ये इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं. (फोटोःगेटी)