पिछले एक हफ्ते में ग्रीनलैंड की बर्फीली परत इतनी ज्यादा पिघली कि उससे पूरे पश्चिम बंगाल में चार इंच पानी जमा हो जाए. डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट तस्वीरों से बर्फ की परत की जांच करके यह खुलासा किया है. आइए जानते हैं कि आखिरकार इतनी बर्फ पिघली कैसे? इससे निकलने वाला पानी कितने बड़े इलाके को कितना डूबो सकता है? (फोटोः रॉयटर्स)
डेनमार्क के शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी का रिजल्ट पोलर पोर्टल नाम की साइट पर डाला है. इसमें कहा गया है कि बुधवार (28 जुलाई 2021) के 1950 बाद तीसरी बार सबसे ज्यादा बर्फ पिघली. इससे पहले साल 2012 और 2019 में इतनी बर्फ पिघली थी. हालांकि, 2019 में भी काफी ज्यादा बर्फ पिघली थी, लेकिन वह इतने बड़े इलाके में पानी जमा नहीं कर सकती थी, जितना इस बार का अंदाजा है. (फोटोः रॉयटर्स)
Massive melting event in Greenland. While not as extreme as in 2019 in terms of gigatons (left image - but still would be enough to cover Florida with two inches of water), the area over which melting takes place (right image) is even a bit larger than two years ago. pic.twitter.com/rEeDIlYTA7
— Polar Portal (@PolarPortal) July 29, 2021
वैज्ञानिकों ने बताया कि ग्रीनलैंड में जितनी बर्फ पिघली है उससे पूरे अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत में 2 इंच पानी जमा हो जाएगा. फ्लोरिडा का क्षेत्रफल हमारे देश में पश्चिम बंगाल के क्षेत्रफल से करीब दोगुना है. यानी पश्चिम बंगाल में चार इंच पानी जमा हो सकता है. (फोटोः रॉयटर्स)
बेल्जियम स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लीज के पर्यावरण वैज्ञानिक जेवियर फेटविस ने अनुमान लगाया है कि 28 जुलाई को ग्रीनलैंड में 22 गीगाटन बर्फ पिघली है. 12 गीगाटन पिघले हुए बर्फ के पानी का आधे से ज्यादा हिस्सा समुद्र में चला गया. इसके अलावा 10 गीगाटन पिघले हुए बर्फ के ऊपर हुई तेज बर्फबारी की वजह से पानी जम गया या एबजॉर्ब हो गया. 1 गीगाटन का मतलब है 100 करोड़ मीट्रिक टन. (फोटोः रॉयटर्स)
जेवियर फेटविस ने कहा कि वायुमंडलीय बदलाव की वजह से ऐसी नौबत आई है. क्योंकि आर्कटिक इलाके के ऊपर गर्म हवा फंस गई है. इसकी वजह से नीचे जमा बर्फ तेजी से पिघल रही है. डैनिश मेटरेलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कहा कि इस समय ग्रीनलैंड में गर्मियों का मौसम है. तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दो बार जा चुका है. (फोटोः रॉयटर्स)
गुरुवार यानी 29 जुलाई 2021 को तापमान 23.4 डिग्री सेल्सियस था. वैज्ञानिकों को डर है कि अगर यह गर्म हवा आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर ज्यादा दिन तक टिकी रही तो और ज्यादा बर्फ पिघल सकती है. क्योंकि वायुमंडलीय बदलाव में किसी तरह का परिवर्तन होता नहीं दिख रहा है. (फोटोः रॉयटर्स)
अगर बर्फ पिघलती गई तो सूरज की रोशनी का परावर्तन यानी रिफलेक्शन कम हो जाएगा. यानी गर्मी और बढ़ेगी. ज्यादा गर्मी होने पर बर्फ की परतें पिघलेंगी. जिसकी वजह से समुद्र के जलस्तर में तेजी से इजाफा हो सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार साल 1990 से ग्रीनलैंड की बर्फ का पिघलना शुरु हुआ है. (फोटोः रॉयटर्स)
साल 2000 के बाद से ग्रीनलैंड में बर्फ की मोटी परतों के पिघलने के दर में तेजी आई है. लेकिन हाल के दिनों में साल 2000 से चार गुना ज्यादा दर से बर्फ पिघल रही है. ग्रीनलैंड दुनिया का सबसे बड़ा गैर-महाद्विपीय आइलैंड है. जहां पर अंटार्कटिका के बाद हमेशा बर्फ जमा रहती है. (फोटोः रॉयटर्स)
दूसरी रोचक बात ये है कि ग्रीनलैंड में जमी बर्फ की परत धरती पर दूसरा सबसे बड़ा साफ पानी का स्रोत है. ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ दुनिया में मौजूद साफ पानी का 70 फीसदी हिस्सा अपने पास रखता है. वैज्ञानिकों का अंदाजा है कि अगर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की सारी बर्फ एकसाथ पिघल जाए तो समुद्र के जलस्तर में करीब 23 फीट की बढ़ोतरी होगी. इससे दुनिया के कई देश पानी में डूब जाएंगे. कइयों का तो नामोंनिशान मिट जाएगा. (फोटोः रॉयटर्स)