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साइंस न्यूज़

Himalayan Ice Loss: उत्तराखंड में गंगोत्री, हिमाचल में गेपांग, लद्दाख में अरगनग्लास... पिघल रहे देश के ग्लेशियर, नदियां खतरे में

Himalayan Glaciers Ice Lost
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भारत की ज्यादातर प्रमुख नदियां हिमालय के ग्लेशियरों से आती हैं. भारत में ऐसे कौन से राज्य हैं, जहां पर ग्लेशियर हैं. साथ ही कितने ग्लेशियर है. ये ग्लेशियर पिछले पांच सालों में कितना पिघले. किसी ग्लेशियर में बर्फ बढ़ी या नहीं. प्रमुख ग्लेशियरों में अभी कितनी बर्फ है. भारत के चार राज्यों में कुल मिलाकर 34 प्रमुख ग्लेशियर हैं. इनमें 14 बड़े ग्लेशियर हैं. (फोटोः बाताल ग्लेशियर/फ्लिकर/लोपमुद्रा बर्मन)

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छोट-मोटे ग्लेशियर तो हजारों हैं. पहले हम ये जानते हैं कि किस राज्या में कितने ग्लेशियर हैं. और वो कितने पिघल चुके हैं. जिन चार राज्यों में ग्लेशियर हैं- वो हैं... लद्दाख यूनियन टेरिटरी, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश. किस राज्य में कितने ग्लेशियर... पहले लद्दाख UT. यहां पर 15 बड़े प्रमुख ग्लेशियर हैं. ये हैं- पेंसिलुंगपा, डुरुंग डुरुंग, पार्काचिक, सगतोग्पा, सगतोग्पा ईस्ट, थारा कांगड़ी, गरम पानी, रासा-1, रासा-2, अरगनग्लास ग्लेशियर, फुननग्मा, पानामिक-1, पानामिक-2, सासेर-1 और सासेर-2. (फोटोः पेंसिलुग्पा ग्लेशियर/एक्स/शकिल रोम्शू)

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लद्दाख के ग्लेशियरों हर साल काफी तेजी से पिघल रहे हैं. पेंसिलुंगपा में 5.60 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है. डुरुंग डुरुंग 12.0 मीटर प्रति वर्ष, पार्काचिक 4.21 मीटर प्रति वर्ष, सगतोग्पा 7.4 मीटर प्रति वर्ष, सगतोग्पा ईस्ट 8.13 मीटर प्रति वर्ष, गरम पानी 4.96 मीटर प्रति वर्ष, रासा-1 ग्लेशियर 8.13 मीटर प्रति वर्ष, रासा-2 ग्लेशियर 2.63 मीटर प्रति वर्ष की गति से पिघल रहे हैं. (फोटोः बड़ा सिगड़ी ग्लेशियर/एक्स/क्यांग थांग)

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लद्दाख के ही अरगनग्लास ग्लेशियर 18.86 मीटर की तेजी से पिघल रहा है. जो इस इलाके में सबसे तेज गति से पिघलने वाला ग्लेशियर बन गया है. फुननग्मा ग्लेशियर 11.35 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है. पानामिक-1 ग्लेशियर 1.68 मीटर और पानामिक-2 ग्लेशियर 4.09 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है. सासेर-1 ग्लेशियर 3.25 मीटर और सासेर-2 ग्लेशियर 2.85 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है. (फोटोः छोटा सिगड़ी ग्लेशियर/फ्लिकर/अम्रिताश चौबे)

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लद्दाख में सिर्फ थारा कांगड़ी ग्लेशियर इकलौता है, जो पिछले पांच साल में बढ़ा है. वह 11.13 मीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है. अब बात करते हैं अरुणाचल प्रदेश की. यहां पर एक ही ग्लेशियर है खांगड़ी. यह ग्लेशियर पिछले पांच साल में 6.50 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है. जो कि इस इलाके के लिए खतरनाक है. (फोटोः डोकरियानी ग्लेशियर/एक्स/शुभमटोरेस)

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हिमाचल प्रदेश में 12 प्रमुख ग्लेशियर हैं. इनमें से एक भी ग्लेशियर नहीं है जो बढ़ रहा हो. सब घट रहे हैं. ताकडुंग ग्लेशियर 9.64 मीटर प्रति वर्ष, उल्धांपू 4.66 मीटर प्रति वर्ष, मेंथोसा ग्लेशियर 4.32 मीटर, गुंबा 10.38 मीटर प्रति वर्ष, गांग्पू ग्लेशियर 2.79 मीटर, त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर 18 मीटर, बियास कुंड ग्लेशियर 15 मीटर, ग्लेशियर नंबर 20 भी 3.20 मीटर प्रति वर्ष की गति से पिघल रहा है. (फोटोः चोराबारी ग्लेशियर/एक्स/रॉयल पहाड़ी)

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इसके अलावा गेपांग गाठ ग्लेशियर 30 मीटर प्रति वर्ष की दर के आसापास की गति से पिघल रहा है. समुद्र टापू ग्लेशियर भी 10 से 15 मीटर प्रति वर्ष की गति से पिघल रहा है. बाताट और कुंजम ग्लेशियर भी 5 से 10 मीटर प्रति वर्ष की गति से पिघल रहा है. इसके अलावा सुतरी ढाका भी 11 मीटर प्रति वर्ष की गति से कम हो रहा है. यानी हिमाचल में गेपांग गाठ और त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. (फोटोः होकसर ग्लेशियर/शकिल रोम्शू)

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उत्तराखंड में छह प्रमुख ग्लेशियर हैं. माबांग ग्लेशियर 6.96 मीटर प्रति वर्ष, प्यूंग्रू ग्लेशियर 4.45 मीटर, चिपा 7.90 मीटर प्रति वर्ष, गंगोत्री ग्लेशियर 33.80 मीटर प्रति वर्ष, डोकरियानी 21 मीटर प्रति वर्ष, चोराबारी 11 मीटर प्रति वर्ष की गति से पिघल रहे हैं. यानी उत्तराखंड में ग्लेशियर के पिघलने की दर देश में सबसे ज्यादा है. सबसे ज्यादा खतरा भी यहीं हैं. (फोटोः कोलाहोई ग्लेशियर/टेरी)

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अगर मास बैलेंस की बात करें तो एक भी ग्लेशियर नहीं है जो पॉजिटिव संख्या में हो. मास बैलेंस यानी नदी को कितना पानी सप्लाई हो रहा है. जम्मू और कश्मीर के दो ग्लेशियर कोलाहोई में माइनस 0.84 मीटर वाटर इक्वीवैलेंट प्रति वरअष (MWE/Year) और होकसर ग्लेशियर माइनस 0.95 मीटर वाटर इक्वीवैलेंट प्रति वर्ष. दोनों ग्लेशियर झेलम नदीं को पानी सप्लाई करते हैं. (फोटोः कुंजम ग्लेशियर/गेटी)

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लद्दाख में स्टोक ग्लेशियर माइनस 0.39 MWE/Year और पेंसिलुग्पा ग्लेशियर माइनस 0.46 MWE/Year है. ये दोनों ग्लेशियर सिंधु और सुरू नदीं को पानी देते हैं. हिमाचल प्रदेश में 8 ग्लेशियर मिलकर चंद्रा नदीं को पानी देते हैं. ये हैं- छोटा सिगड़ी ग्लेशियर माइनस 0.22 MWE/Year, सुत्री ढाका ग्लेशियर माइनस 0.72 MWE/Year, बाताल ग्लेशियर माइनस 0.41 MWE/Year और समुद्र टापू ग्लेशियर माइनस 0.82 MWW/Year है. (फोटोः स्टॉक कांगड़ी/फ्लिकर/मिशेल राउसेल)

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हिमाचल के बड़ा सिगड़ी ग्लेशियर माइनस 0.43, कुंजम ग्लेशियर माइनस 0.30, गेपांग गठ माइनस 0.96 और नाराडू ग्लेशियर माइनस 0.85 मीटर वाटर इक्वीवैलेंट प्रति वर्ष की दर से पानी की सप्लाई कर रहा है. यानी इन ग्लेशियरों के पिघलने से देश के कई प्रमुख नदियों में पानी की कमी हो जाएगी. उत्तराखंड में दो बड़े ग्लेशियर हैं. चोराबारी और डोकरियानी. (फोटोः समुद्र टापू/इंडिया टुडे आर्काइव)

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चोराबारी ग्लेशियर का मास बैलेंस 0.77 मीटर वाटर इक्वीवैलेंट प्रति वर्ष और डोकरियानी का मास बैलेंस 0.37 मीटर प्रति वर्ष है. इन ग्लेशियरों पर नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) और कई अन्य संस्थाएं लगातार नजर रख रही हैं. इसके अलावा ISRO भी सैटेलाइट्स के जरिए इनकी स्टडी करता रहता है. (फोटोः सुत्री ढाका ग्लेशियर/एक्स/लवकुश पटेल)

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