ये बात तो तय है कि कुछ सालों में हमें दुनिया से कई जीवों की प्रजातियों को बाय-बाय बोलना पड़ेगा. क्योंकि ये बचेंगी ही नहीं. कारण होगा जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गर्मी. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 10 लाख प्रजातियां अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. पिछले साल नेचर मैगजीन में रिपोर्ट छपी थी कि उष्णकटिबंधीय समुद्र में 2030 तक और पहाड़ों में 2050 तक ईकोसिस्टम खत्म हो जाएगा. लेकिन कुछ जानवर इससे बचने के लिए अनोखे तरीके अपना रहे हैं. (फोटोः गेटी)
संयुक्त राष्ट्र (UN) की साल 2019 में आई रिपोर्ट, नेचर मैगजीन में पिछले साल छपी रिपोर्ट और एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक अगर इसी तरह से धरती की गर्मी बढ़ती रही तो साल 2100 तक धरती से आधे जानवर अपने-अपने हैबिटैट से खत्म हो जाएंगे. कुछ जानवरों ने बढ़ते तापमान के बीच खुद को सुरक्षित रखने के अनोखे तरीके खोज लिए हैं. (फोटोः गेटी)
पक्षी अब विस्थापन की प्रक्रिया जल्दी शुरु कर देते हैं. समुद्री कछुए अपना रूट बदल लेते हैं. कैरबोस सीजन से पहले बच्चे पैदा कर रहे हैं. जानवर लगातार विपरीत परिस्थितियों में खुद को ढालने के लिए बदलाव कर रहे हैं. लेकिन यह प्रक्रिया कितनी लंबी होगी? कितनी कारगर होगी...यह बता पाना किसी भी जीव या पर्यावरण विज्ञानी की समझ से बाहर है. (फोटोः गेटी)
येल यूनिवर्सिटी की इवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट मार्टा मुनोज ने कहा कि यह एक इवोल्यूशनरी पहेली है, जिसे सुलझाना आसान नहीं है. जानवर बढ़ती गर्मी के बीच अपने शरीर का तापमान संतुलित रखने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं. शरीर के तापमान को पर्यावरण के साथ संतुलित करने की प्रक्रिया को थर्मोरेगुलेशन (Thermoregulation) कहते हैं. (फोटोः गेटी)
थर्मोरेगुलेशन (Thermoregulation) को पहली बार 1944 में परिभाषित किया गया था. इसके करीब दस साल बाद ही डीएनए के ढांचे का खुलासा हुआ था. जानवर दो तरह से थर्मोरेगुलेट करते हैं. पहला या तो वो अपनी ऊर्जा को खत्म करते हैं, ताकि शरीर का तापमान संतुलित रहे. ये तरीका आमतौर पर गर्म खून वाले जीवों ने चुना है. (फोटोः गेटी)
Animals are finding surprising ways to adapt to rising temperatures https://t.co/7K3psTeYgr pic.twitter.com/cUHeMH7cCz
— Popular Science (@PopSci) July 18, 2021
दूसरा तरीका ये है कि जीव अपने शरीर के मेटाबॉलिज्म को धीमा कर लें. ताकि बाहर के तापमान से संतुलन बना सकें. आमतौर पर ये काम एंफिबियंस, सरिसृप, कीड़े और ज्यादातर पानी में रहने वाले जीव करते हैं. इसलिए आपको एक नजारा देखने को मिलता है कि जब अमेरिका के मियामी में सर्दी बढ़ती है, तो पेड़ों से इगुआना (Iguana) गिरने लगते हैं. क्योंकि तापमान के साथ संतुलन बनाने के लिए वो अपने शरीर का मेटाबॉलिज्म धीमा कर देते हैं. इससे मासंपेशिया काम करना बंद कर देती है. फिर वो पेड़ों से टपकने लगते हैं. (फोटोः गेटी)
मार्टा मुनोज कहती हैं कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि जानवर किस तरीके से अपने शरीर का तापमान बाहर के मौसम के साथ संतुलित करते हैं. दिक्कत ये है कि लगातार बढ़ रही गर्मी एक बड़ी समस्या है. मार्टा की स्टडी में उन्होंने दिखाया है कि कैसे सर्दियों में छिपकलियों की क्षमता कम हो जाती है. लेकिन उन्होंने इसे बर्दाश्त करने की क्षमता को 10 गुना तक विकसित कर लिया. लेकिन गर्मियों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं. (फोटोः गेटी)
मार्टा कहती हैं कि जानवर सर्दियों के मुताबिक खुद को ढालते हैं या फिर मर जाते हैं. सर्दी से बचने का कोई तरीका नहीं है. आप उससे छिप या भाग नहीं सकते. लेकिन गर्मियों में छिपकलियों को पेड़ों की छांव, गड्ढे, बिल, सुराख आदि मिल जाते हैं, ताकि वो खुद को गर्मियों से बचा लें. लेकिन सर्दियों में तो हर जगह गर्मी नहीं मिलती. (फोटोः गेटी)
मार्टा यह अनुमान लगाती हैं कि इस सदी के अंत तक छिपकलियां गर्मियों के हिसाब से भी अपने-आप को ढाल लेंगी. लेकिन अत्यधिक गर्मी में ये खुद को भी संभाल नहीं पाएंगी. इन्हें भागकर छिपना ही होगा. गर्मियों के मुताबिक इनके शरीर में इवोल्यूशन होने की संभावना कम है. ऐसा ही व्यवहार तितलियां भी दिखाती हैं. (फोटोः गेटी)
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर एंड्रयू ब्लाडेन ने कहा कि तितलियां और उनके जैसे कीड़े जंगलों में गर्मियों से बचने के लिए ठंडे इलाके खोज लेती हैं. छांव आदि के नीचे छिप जाती है. या फिर पत्तियों की नीचे टिक जाती हैं. या फिर अपने पंखों को इस एंगल से घुमाती हैं कि जिससे सूरज की रोशनी सीधे हिट न करे. बढ़ते तापमान ने यूके में तितलियों की आबादी पर खासा असर डाला है. (फोटोः गेटी)
हाल ही में एंड्रयू ब्लाडेन की टीम ने 16 प्रजातियों की 4000 तितलियों के शरीर का तापमान मापा. उन्होंने उनपर नजर रखी कि क्या तितलियां थ्रर्मोरेगुलेशन कर रही हैं. तो पता चला कि वो अपने शरीर के तापमान में बदलाव लाती हैं. या फिर अपने पंखों को इस तरह से फड़फड़ाती हैं, जिससे सूरज की रोशनी सीधे न पड़े. यह स्टडी जर्नल ऑफ एनिमल इकोलॉजी में प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)
एंड्रयू ने बताया कि तितलियां पिछले 40 सालों से लगातार अपने शरीर के तापमान में बदलाव करने का प्रयास कर रही हैं. जो गर्मियों और सर्दियों को बर्दाश्त करने की क्षमता विकसित कर लेता है, उसकी आबादी बनी रहती हैं. नहीं तो प्रजातियां खत्म होने लगती हैं. यानी कि लंबे समय तक अगर किसी जीव को रहना है तो उसे लगातार अपने आप में बदलाव लाते रहना होगा. नहीं तो पर्यावरणीय बदलाव के आगे उनकी प्रजाति खत्म हो जाएगी. (फोटोः गेटी)
पुर्तगाल के यूनिवर्सिटी ऑफ एवियेरो की मरीन बायोलॉजिस्ट डायना मडीरा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का मतलब लगातार तापमान का बढ़ना ही नहीं है. बल्कि किसी खास इलाके में अचानक से तापमान का बढ़ जाना और फिर एकदम से गिर जाना. ये हालात भी जीवों के लिए मुश्किल खड़ी कर देते हैं. ऐसे अचानक हुए बदलावों से जीवों को शॉक लगता है. वो अपने सामान्य शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में नहीं रह पाते. (फोटोः गेटी)
डायना ने बताया कि यूरोप में गिल्ट हेड ब्रीम (Gilt Head Bream) मछली 30 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी में अधिकतम 28 दिन जिंदा रह पाती है. यूरोप के सागरों और जलस्रोतों का तापमान 2100 तक औसत 30 डिग्री हो जाएगा. यानी कई प्रजातियों की मछलियां खत्म हो जाएंगी. वो ये तापमान बर्दाश्त ही नहीं कर पाएंगी. नदियों, सागरों और नहरों में मछलियों की लाशें तैरती हुई मिलेंगी. (फोटोः गेटी)
डायना ने बताया कि कई मछलियों के लार्वा खत्म हो जाएंगे. वो इस बदलाव को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी. हो सकता है कि कुछ मछलियां बच जाएं लेकिन वो प्रजनन करने की क्षमता ही खो दें तो. ऐसा सिर्फ मछलियों के साथ नहीं होगा, हो सकता है कि ये बुरी स्थिति धरती पर मौजूद अन्य जीवों के साथ भी हो. वो जीवित तो बच जाएं लेकिन वो अपनी अगली पीढ़ी को जन्म ही न दे पाएं. (फोटोः गेटी)
जर्मनी में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कोन्सटांज के शोधकर्ता ट्रेवर फ्रिस्टो ने बताया कि स्तनधारी जीवों और पक्षियों में शरीर के तापमान का संतुलन बनाने के लिए ऊर्जा का उपयोग किया जाता है. ये शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा देते हैं. पानी में खेलते हैं, कानों को हिलाते हैं, पूंछ हिलाते रहते हैं. जोर-जोर से सांस लेते हैं. बंदर और घोड़े तो अपनी त्वचा से पसीने निकालकर तापमान को संतुलित करते हैं. (फोटोः गेटी)