संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट एजेंसी की पूर्व चीफ क्रिस्टियाना फिगरेस ने चेतावनी दी है कि पूरी दुनिया हीटवेव का शिकार हो रही है. सब त्रस्त हैं. यह सब क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन का नतीजा है. अगले कई दशकों तक यह बढ़ता तापमान खतरनाक मौसमी आपदाएं लेकर आएगा. कुछ आपदाएं अचानक आएंगी, कुछ रूटीन ही खराब कर देंगी. (फोटोः एपी)
आइए जानते हैं कि क्लाइमेट चेंज कैसे पूरी दुनिया में गर्मी को चरम स्थिति तक पहुंचा रहा है? इंसान लगातार जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल, डीजल और कोयले का इस्तेमाल कर रहा है. इससे ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड निकल रही है. यह वायुमंडल में गर्मी को जकड़ लेती हैं. इसकी वजह से पूरी दुनिया में गर्मी बढ़ रही है. (फोटोः एपी)
विश्व का औसत तापमान औद्योगिक क्रांति के समय से अब त 1.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. इंडस्ट्रियल क्रांति यानी वो समय जब पश्चिमी देशों ने कोयले और जीवाश्म ईंधन का धडल्ले से इस्तेमाल करना शुरू किया था. (फोटोः एपी)
हीटवेव पहली भी चलती थी. लेकिन जलवायु परिवर्तन ने गर्मी के इस दौर को और भी ज्यादा गर्म कर दिया है. वह भी बिना वायुमंडल को गर्म किए. वायुमंडल ठंडा है लेकिन उसके नीचे धरती, हवा, पानी सब उबल रहा है. (फोटोः एपी)
हैरानी और खतरे की बात ये है कि ये सभी हीटवेव की इवेंट्स लगातार ज्यादा गर्म होते जा रहे हैं. यूसीएलए के क्लाइमेट साइंटिस्ट डैनियल स्वेन कहते हैं कि इंसानों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन से अभी और ज्यादा गर्मी बढ़ेगी. (फोटोः एपी)
डैनियल कहते हैं कि इस बात के हजारों-लाखों सबूत मौजूद हैं. दस्तावेज हैं. लेकिन इंसान इन चीजों को मानने को तैयार नहीं है. वो अपनी सरकारों को कोसने में लगे रहते हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन तो इंसान ही कर रहे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
बात सिर्फ बढ़ते वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वॉर्मिंग की नहीं है. इसके अलावा अन्य जरिए भी होते हैं जो गर्मी बढ़ाते हैं. जैसे- जलवायु संबंधी सिस्टम. यानी अल नीनो या ला नीना, इनकी वजह से भी क्षेत्रीय सर्कुलेशन पैटर्न बदलता रहता है. (फोटोः एपी)
सूखी जमीन यानी बिना पेड़-पौधों की जमीन, गहरे रंग की सतह भी गर्मी बढ़ाती है. अगर जंगल और वेटलैंड्स नहीं होंगे तो गर्मी बढ़ेगी ही. दक्षिण एशिया में इस साल अप्रैल महीने में 45 बार गर्मी खतरनाक लिमिट पर पहुंची. सिर्फ कोलकाता में पारा 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. सामान्य से 10 डिग्री ज्यादा. (फोटोः रॉयटर्स)
अगर कार्बन उत्सर्जन अभी रुक जाए, तो भी दुनिया ने इतना उत्सर्जन कर दिया है कि तापमान कई दशकों तक ऊपर ही जाता रहेगा. दुनिया को 1995 की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन को आधा करना होगा. 2050 तक नेट जीरो पहुंचना होगा. तब जाकर वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़कर रुक जाएगा. (फोटोः रॉयटर्स)