IPE Global और ESRI India ने एक संयुक्त रिपोर्ट जारी की है. इसमें बताया है कि कैसे हमारा देश चरम गर्मी, चरम बारिश और कई जगहों पर दोनों की मार बर्दाश्त कर रहा है. जो स्थिति अभी चल रही है, उसके हिसाब से 2036 तक यानी मात्र 12 साल में हर दस में से आठ भारतीय चरम मौसमी आपदाओं का शिकार होगा. (सभी फोटोः PTI/AP)
अपने देश के 84% जिलों में एक्सट्रीम गर्मी पड़ रही है. 70% जिलों में चरम बारिश हो रही है. हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर में अत्यधिक गर्मी और बेहद घातक बारिश हो रही है. यानी दोहरी मार खा रहे हैं ये राज्य. यह स्टडी 1993 से 2022 के आंकड़ों पर बनाई गई है.
इतने वर्षों में गर्मी, बारिश की फ्रिक्वेंसी, तीव्रता और असंतुलन में बढ़ोतरी हुई है. इन तीन दशकों में मार्च से लेकर सितंबर तक एक्सट्रीम हीटवेव वाले दिनों में 15 गुना बढोत्तरी हुई है.
पिछले दस सालों में एक्स्ट्रीम हीटवेव के दिन में 19 गुना का इजाफा हुआ है. भविष्य में इसका प्रभाव और ज्यादा होगा. अक्तूबर से दिसंबर तक 62% से अधिक हीटवेव प्रभावित भारतीय जिले अनियमित और अत्यधिक वर्षा का सामना कर रहे हैं.
वायुमंडलीय तापमान (Atmospheric Temperature) और पूरी दुनिया में ह्यूमिडिटी में बढ़ोतरी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों (Tropical Region) में हीटवेव को बढ़ा रही है. तटीय क्षेत्रों में सबसे ज्यादा गर्मी इन राज्यों में पड़ रही है- गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं.
मैदानी और पहाड़ी इलाकों में सबसे ज्यादा गर्मी और हीटवेव इन राज्यों में पड़ रही है- उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगाना, बिहार और दिल्ली हैं. पहाड़ी इलाकों में त्रिपुरा, मिजोरम, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, मेघालय और हिमाचल प्रदेश हैं.
भारत में मानसून के मौसम में गैर-बरसात वाले दिनों को छोड़कर गर्मी रह रही है. इस गर्मी की वजह है पिछली सदी में 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान का बढ़ना. खतरनाक बारिश की घटनाएं भी बढ़ गई हैं. हाल ही में केरल के वायनाड में घटी घटनाएं इसी का नतीजा हैं. शहरों में बारिश ठप हो गई है.
जलवायु परिवर्तन की वजह से ही भविष्य और खतरनाक होने वाला है. इससे लोगों की कमाई और बुनियादी ढांचे पर भी असर पड़ेगा. लैंड यूज और लैंड कवर में 55 फीसदी बदलाव हुआ है. इसका असर जलवायु पर पड़ता है. फिर जलवायु अपने बदले हुए स्वरूप में असर दिखाती है.
भारतीय उपमहाद्वीप में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तनों की वजह है भूमि-उपयोग-सतह परिवर्तन, वनों की कटाई, मैंग्रूव और वेटलैड्स पर अतिक्रमण. स्टडी में हीट रिस्क ऑब्जर्वेटरी (HRO) स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है.