Chandrayaan-3 का विक्रम लैंडर इस समय चांद के चारों तरफ 24 km x 134 km की ऑर्बिट में घूम रहा है. लैंडर के मुख्य कैमरा यानी लैंडर इमेजर (LI) ने शानदार वीडियो बनाया है. ये वीडियो 20 अगस्त 2023 को दूसरी बार डीबूस्टिंग करने के बाद बनाया गया है. इसमें एक तरफ घूमता हुआ चंद्रमा दिख रहा है. दूसरी तरफ विक्रम लैंडर के सोलर पैनल्स और गोल्डेन रेडिएशन कवर. ये वीडियो ये बताता है कि चंद्रयान-3 की सेहत सही है. (सभी फोटोः ISRO)
इसके पहले इस कैमरे ने 17 अगस्त 2023 की दोपहर जब विक्रम लैंडर चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हुआ, तब उसने चांद की फोटो ली. वीडियो बनाया. इसमें एक जगह पर धरती भी झांकती हुई दिखती है. दाहिने ऊपर की ओर कोने से.
.... and
— ISRO (@isro) August 22, 2023
The moon as captured by the
Lander Imager Camera 4
on August 20, 2023.#Chandrayaan_3 #Ch3 pic.twitter.com/yPejjLdOSS
इस तस्वीरों में विक्रम लैंडर ने जिस जगह को कैप्चर किया है. उनमें से दो तीन क्रेटर्स यानी गड्ढों का नाम भी दिया गया है. इसरो ने बताया था कि ये गड्ढे कौन से हैं. इसरो ने अपने ट्विटर हैंडल पर ये वीडियो जारी किया है. इससे थोड़ी देर पहले इसरो ने लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (Lander Position Detection Camera - LPDC) से ली गई चांद की तस्वीर और वीडियो को जारी किया था.
यह 19 अगस्त का वीडियो है. तब चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह से करीब 70 किलोमीटर दूर था. चंद्रयान-3 मिशन शेड्यूल के मुताबिक चल रहा है. सभी सिस्टम्स सही हैं. फिलहाल चांद के चारों तरफ विक्रम लैंडर आराम से चक्कर लगा रहा है. लैंडिंग की लाइव स्ट्रीमिंग 23 अगस्त 2023 की शाम पांच बजकर 20 मिनट से शुरू हो जाएगी.
LPDC विक्रम लैंडर के निचले हिस्से में लगा हुआ है. यह इसलिए लगाया गया है ताकि विक्रम अपने लिए लैंडिंग की सही और सपाट जगह खोज सके. इस कैमरे की मदद से यह देखा जा सकता है कि विक्रम लैंडर किसी ऊबड़-खाबड़ जगह पर लैंड तो नहीं कर रहा है. या किसी गड्ढे यानी क्रेटर में तो नहीं जा रहा है.
इस कैमरे को लैंडिंग से थोड़ा पहले फिर से ऑन किया जा सकता है. क्योंकि अभी जो तस्वीर आई है, उसे देखकर लगता है कि यह कैमरा ट्रायल के लिए ऑन किया गया था. ताकि तस्वीरों या वीडियो से यह पता चल सके कि वह कितना सही से काम कर रहा है. चंद्रयान-2 में भी इस सेंसर का इस्तेमाल किया गया था. वह सही काम कर रहा था.
LPDC का काम है विक्रम के लिए लैंडिंग की सही जगह खोजना. इस पेलोड के साथ लैंडर हजार्ड डिटेक्शन एंड अवॉयडेंस कैमरा (LHDAC), लेजर अल्टीमीटर (LASA), लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC) मिलकर काम करेंगे. ताकि लैंडर को सुरक्षित सतह पर उतारा जा सके.
विक्रम लैंडर जिस समय चांद की सतह पर उतरेगा, उस समय उसकी गति 1 से 2 मीटर प्रति सेकेंड के आसपास होगी. लेकिन हॉरीजोंटल गति 0.5 मीटर प्रति सेकेंड होगी. विक्रम लैंडर 12 डिग्री झुकाव वाली ढलान पर उतर सकता है. इस गति, दिशा और समतल जमीन खोजने में ये सभी यंत्र विक्रम लैंडर की मदद करेंगे. ये सभी यंत्र लैंडिंग से करीब 500 मीटर पहले एक्टिवेट हो जाएंगे.
इसके बाद विक्रम लैंडर में लगे चार पेलोड्स काम करना शुरू होंगे. ये हैं रंभा. यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा. चास्टे, यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा. इल्सा, यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे, यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा.