अंतरिक्ष को नई आंखें मिले आज ठीक एक महीना हो गया है. इस आंख का नाम है जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope - JWST). 30 दिन के अंदर इस टेलिस्कोप ने धरती से 1,609,344 किलोमीटर की दूरी बना ली है. यानी हर दिन इसने करीब 53,644 किलोमीटर की यात्रा की. अब यह 16.09 लाख किलोमीटर की कक्षा में धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है. यह इसकी अंतिम कक्षा है. इसके साथ ही अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ESA ने एक नया इतिहास रच दिया है. क्योंकि इसके पहले अंतरिक्ष में इतनी दूरी किसी टेलिस्कोप को तैनात नहीं किया गया था. (फोटोः NASA)
JWST ऑब्जरवेटरी के मैनेजर कीथ पैरिश ने कहा कि पांच मिनट के लिए इसके थ्रस्टर्स को ऑन करके इसे अंतिम कक्षा में पहुंचाया गया है. लेकिन उसकी दिशा ठीक करने में 55 मिनट और लगे. यानी कुल एक घंटे तक इस टेलिस्कोप को सही और निर्धारित अंतिम कक्षा में पहुंचाने में लगा है. 25 दिसंबर 2021 की लॉन्च के बाद यह इस टेलिस्कोप का सबसे बड़ा काम था. अगर जरा सी भी गलती होती तो यह ओवरशूट हो जाता. यानी तय कक्षा से दूर निकल जाता. इसे धरती के चारों तरफ सेकेंड लैरेंज प्वाइंट (L2) पर तैनात किया गया है. धरती और सूर्य के बीच पांच लैरेंज प्वाइंट हैं. इन लैरेंज प्वाइंट पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का संतुलन बना रहता है. (फोटोः STSci)
कीथ पैरिश ने बताया कि JWST हर छह महीने में L2 प्वाइंट पर आएगा. इसे हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) भी कहते हैं. वैज्ञानिक इसे बनाए रखने के लिए हर 21 दिन में इसके थ्रस्टर्स को कुछ सेकेंड्स के लिए ऑन करेंगे. इतनी ऊर्जा खर्च करने के बावजूद यह टेलिस्कोप अगले 10 सालों तक काम करता रहेगा. वैसे इस टेलिस्कोप में इतना ईंधन है कि यह 20 सालों तक भी काम कर सकता है. यह टेलिस्कोप ब्रह्मांड की सुदूर गहराइयों में मौजूद आकाशगंगाओं, एस्टेरॉयड, ब्लैक होल्स, ग्रहों, Alien ग्रहों, सौर मंडलों आदि की खोज करेंगी. ये आंखें मानव द्वारा निर्मित बेहतरीन वैज्ञानिक आंखें हैं. (फोटोः NASA)
JWST को एरियन-5 ईसीए (Ariane 5 ECA) रॉकेट से लॉन्च किया गया था. फ्रेंच गुएना स्थित कोरोऊ लॉन्च स्टेशन से इसकी लॉन्चिंग हुई थी. जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की आंखें यानी गोल्डेन मिरर की चौड़ाई करीब 21.32 फीट है. ये एक तरह के रिफलेक्टर हैं. जो 18 षटकोण टुकड़ों को जोड़कर बनाए गए हैं. ये षटकोण बेरिलियम (Beryllium) से बने हैं. हर षटकोण के ऊपर 48.2 ग्राम सोने की परत लगाई गई है. (फोटोः ESA)
🏠 Home, home on Lagrange! We successfully completed our burn to start #NASAWebb on its orbit of the 2nd Lagrange point (L2), about a million miles (1.5 million km) from Earth. It will orbit the Sun, in line with Earth, as it orbits L2. https://t.co/bsIU3vccAj #UnfoldTheUniverse pic.twitter.com/WDhuANEP5h
— NASA Webb Telescope (@NASAWebb) January 24, 2022
NASA ने कहा था कि इसकी एक महीने की स्पेस जर्नी ही सबसे कठिन पार्ट है. लेकिन इसे वैज्ञानिकों ने सही सलामत पूरा कर लिया है. क्योंकि इतनी दूर जाकर सटीक स्थान पर इसे सेट करना एक बड़ी चुनौती थी. उसके बाद उसके 18 षटकोण को एलाइन करके एक परफेक्ट मिरर बनाना दूसरी बड़ी चुनौती थी. ताकि उससे पूरी इमेज आ सके. एक भी षटकोण सही नहीं सेट हुआ तो इमेज खराब हो जाएंगी. ऐसी उम्मीद है कि अबसे 10 दिन बाद यह टेलिस्कोप अनपी पहली तस्वीर लेगा. (फोटोः NASA)
नासा के सिस्टम इंजीनियर बेगोना विला ने बताया कि हम किसी भी तारे की एक तस्वीर नहीं देखेंगे. क्योंकि हमें हर षटकोण से उसकी अलग तस्वीर मिलेगी. यानी एक ही ऑब्जेक्ट की 18 तस्वीरें एकसाथ. ये भी हो सकता है कि अलग-अलग षटकोण अलग-अलग तारों की तस्वीर ले रहे हों. ऐसे में हमारा काम बढ़ जाएगा कि कौन सा तारा क्या है. इसके लिए हमें इससे मिलने वाली सारी तस्वीरों को जोड़ना होगा. तब जाकर ये तय होगा कि इसमें कितने तारे या अन्य अंतरिक्षीय वस्तुएं दिख रही हैं. (फोटोः NASA)
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप पर पूरे एक साल तक दुनिया भर के 40 देशों के साइंटिस्ट नजर रखेंगे. ये सारे उसके हर बारीक काम को देखेंगे. क्योंकि इस टेलिस्कोप का कॉन्सेप्ट 30 साल पहले आया था. अच्छी बात ये हैं कि इस टेलिस्कोप को हबल टेलिस्कोप की तरह रिपेयर करने के लिए नहीं जाना पड़ेगा. इसकी रिपेयरिंग और अपग्रेडेशन जमीन पर बैठे ऑब्जरवेटरी से पांच बार किया जा सकेगा. (फोटोः NASA)
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप मिशन की लागत 10 बिलियन यूएस डॉलर्स है. यानी 73,616 करोड़ रुपए. ये दिल्ली सरकार के इस साल के बजट से करीब 4 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है. दिल्ली सरकार का साल 2021 का बजट करीब 69 हजार करोड़ का है. JWST इंफ्रारेड लाइट को लेकर काफी संवेदनशील है. ये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम को भी कैच करेगा. यानी जो तारे, सितारे, नक्षत्र, गैलेक्सी बहुत दूर और धुंधले हैं, उनकी भी तस्वीरें खींच लेगा. (फोटोः NASA)