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साइंस न्यूज़

पांच महीने की यात्रा करने के बाद चांद पर पहुंचेगा Japan का SLIM यान, चंद्रमा की कक्षा में अब पहुंचा

Japan SLIM Moon Mission
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जापान का SLIM यानी स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून मिशन 25 दिसंबर 2023 को चांद की कक्षा में पहुंच गया. पूरी चार महीने की यात्रा करने के बाद. पांचवें महीने की यात्रा के बाद 19 जनवरी 2024 में यह चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. यानी चांद की सतह पर उतरेगा. जापानी स्पेस एजेंसी JAXA ने इसके लैंडिंग के लिए 600x4000 km का इलाका खोजा है. ये इलाका चांद के ध्रुवीय इलाके में स्थित है. (सभी फोटोः JAXA/AP)

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हालांकि जापान को उम्मीद है कि जो चांद की सतह पर लैंडिंग का जो टारगेट है, उससे 100 मीटर आसपास ही ये यान उतरेगा. लैंडिंग साइट है शियोली क्रेटर (Shioli Crater). रूस ने जल्दबाजी दिखाई तो उसका Luna-25 मून मिशन चांद पर क्रैश हो गया. भारत के Chandrayaan-3 ने सफल लैंडिंग की. 

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जापान ने भी 06 सितंबर 2023 की सुबह मून मिशन तांगेशिमा स्पेस सेंटर के योशीनोबू लॉन्च कॉम्प्लेक्स से लॉन्च किया. स्लिम के साथ एक्स-रे इमेजिंग एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन (XRISM) भी गया है. SLIM एक हल्का रोबोटिक लैंडर है. जिसे तय स्थान पर ही उतारा जाएगा. उसकी जगह में कोई बदलाव नहीं होगा. ताकि सटीक सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन हो सके. इस मिशन को मून स्नाइपर (Moon Sniper) भी कहा जा रहा है. यह मिशन 831 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. 

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जापानी स्पेस एजेंसी के प्रेसिडेंट हिरोशी यामाकावा ने कहा कि स्लिम को इस हिसाब से भेजा जा रहा है, उसके ईंधन को ज्यादा से ज्यादा बचाया जा सके. यह मिशन चांद की सतह पर अगले साल जनवरी या फरवरी महीने में लैंड करेगा. मकसद सटीकता वाली लैंडिंग है. यानी जहां हम चाहते हैं, वहीं पर लैंड हो. बल्कि ये नहीं कि कहां हम कर सकते हैं. 

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जापान का SLIM लैंडर चांद के नीयर साइड यानी उस हिस्से में उतरेगा जो हमें अपनी आंखों से दिखाई देता है. संभावित लैंडिंग साइट मेयर नेक्टारिस (Mare Nectaris) है. जिसे चांद का समुद्र कहा जाता है. लेकिन अभी इसमें शियोली क्रेटर के आसपास लैंडिंग की संभावना जताई जा रही है. यह चांद पर सबसे ज्यादा अंधेरे वाला धब्बा कहा जाता है. स्लिम में एडवांस्ड ऑप्टिकल और इमेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी लगी है. 

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लैंडिंग के बाद स्लिम चांद की सतह पर मौजूद ओलिवीन पत्थरों की जांच करेगा, ताकि चांद की उत्पत्ति का पता चल सके. इसके साथ किसी तरह का रोवर नहीं भेजा गया है. इसके साथ XRISM सैटेलाइट भी भेजा गया है. जो चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इसे जापान, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मिलकर बनाया है. यह चांद पर बहने वाले प्लाज्मा हवाओं की जांच करेगा. ताकि ब्रह्मांड में तारों और आकाशगंगाओं की उत्पत्ति का पता चल सके. 

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H-IIA जापान का सबसे भरोसेमंद रॉकेट है. यह उसकी 47वीं उड़ान थी. इसे मित्शुबिशी हैवी इंड्स्ट्रीज ने बनाया है. इसकी लॉन्चिंग सफलता दर 98 फीसदी है. जापान ने इस मून मिशन की लॉन्चिंग कई महीनों तक टाली थी, ताकि वह मीडियम लिफ्ट H3 रॉकेट के फेल होने की जांच कर रहा था. इस मिशन के बाद जापान 2024 में हाकुतो-2 (Hakuto-2) और 2025 में हाकुतो-3 (Hakuto-3) मिशन भेजेगा. यह भी एक लैंडर और ऑर्बिटर मिशन होगा.

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जापान ने पिछले साल भी चांद पर लैंडर भेजा था. लेकिन उसके हाथ विफलता लगी. जापान का अपने मून लैंडर ओमोतेनाशी (Omotenashi) से संपर्क टूट गया था. जिसे पिछले साल नवंबर में लैंड होना था. इसके बाद अप्रैल महीने में हाकूतो-आर (Hakuto-R) मिशन लैंडर को चांद पर भेजा गया. लेकिन यह चांद पर जाकर क्रैश हो गया. इससे पहले अक्टूबर 2022 में एप्सिलॉन रॉकेट में लॉन्च के समय विस्फोट हो गया था. 

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