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साइंस न्यूज़

KGF Chapter 2 Machine Gun: डोडम्मा मशीन गन ने 71 साल राज किया, जानिए इस बंदूक की ताकत

KGF-2 Machine Gun
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KGF-2 के एक्शन सिक्वेंस में मुख्य किरदार रॉकी एक बड़ी सी मशीन गन से फायरिंग करता है. लगातार 10 मिनट तक गोलियां बरसती रहती हैं. सामने पुलिस स्टेशन के इमारत की धज्जियां उड़ रही थीं. सामने खड़ी पुलिस जीप हवा में उड़ रही थी. ये बंदूक असल में थी और है भी. चुंकि फिल्म में 80 के दशक की कहानी दिखाई गई है, उस समय यह बंदूक कई सेनाएं और विद्रोही संगठनों के पास थी. आइए जानते हैं इस मशीन गन की ताकत...

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फिल्म में जिस मशीन गन को कन्नड़ भाषा में रॉकी 'डोडम्मा' यानी हिंदी में 'बड़ी मां' बुला रहे हैं, वो असल में ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन है. इसे अमेरिकन इंजीनियर जॉन ब्राउनिंग ने 1919 में बनाया था. यह .30 कैलिबर की मीडियम मशीन गन है. जिसका उपयोग 20वीं सदी में काफी ज्यादा हुआ था. भारत-चीन युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, कोरियन युद्ध और वियतनाम युद्ध में समेत बीसियों लड़ाइयों में उपयोग किया गया है.

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ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन को जमीन पर ट्राइपॉड पर रखकर चलाया जा सकता है. जमीन में छोटे बाइपॉड के साथ चलाया जा सकता है. इसे टैंक, हेलिकॉप्टर पर भी तैनात किया जा सकता है. या फिर आप इसे एंटी-एयरक्राफ्ट गन के रूप में फाइटर जेट को मार गिराने में उपयोग कर सकते हैं. (फोटोः यूएस डिफेंस)

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ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन का उत्पादन 1919 से 1945 तक किया गया. दुनियाभर में कुल मिलाकर इसके 4.38 लाख से ज्यादा सेल हुई. इसके आठ वैरिएंट्स आए. हर वैरिएंट पिछले वाले से अपग्रेड होता था. इस मशीन गन का वजन 14 किलोग्राम है, यानी एक आदमी इसे आसानी से उठाकर चल सकता है. बैरल की लंबाई 24 इंच थी. (फोटोः यूएस डिफेंस)

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हैरानी की बात ये थी कि ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन से दुनिया की 10 प्रकार की गोलियां दागी जा सकती थी. इसलिए इसका उपयोग कई युद्धों में बेहद शानदार तरीके से किया गया. इसके शुरुआती वैरिएंट्स एक मिनट में 400 से 600 गोलियां दागते थे. लेकिन बाद आखिरी वाले वैरिएंट यानी AN/M2 की फायरिंग कैपेसिटी 1200 से 1500 गोली प्रति मिनट थी. (फोटोः गेटी)

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इसकी मजल वेलोसिटी यानी गोलियों के निकलने की गति 853 मीटर प्रति सेकेंड थी, यानी करीब-करीब एक किलोमीटर प्रति सेकेड. मशीन गन की रेंज भी अपने समय के हिसाब से बहुत अच्छी थी. यह करीब डेढ़ किलोमीटर तक सफलता से निशाना लगाती है. जहां तक बात रही इसके कार्टिरेज यानी मैगजीन की तो इसमें 250 गोलियों की बेल्ट लगाई जाती थी. 

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इसकी गोलियों को फेंकने की जो प्रणाली थी, उसका नाम था क्लोज्ड बोल्ट शॉर्ट रिकॉयल ऑपरेशन. इसकी वजह से मशीन गर्म हो जाती थी. इसलिए लगातार इसके वैरिएंट बनाए गए. उनमें सुधार किया गया. दुनिया की पहली ऐसी सफल मशीन गन, जो जीप पर, ट्रक पर, बख्तरबंद वाहनों पर, टैंक्स पर, लैंडिंग क्राफ्ट्स पर, जमीन पर, चढ़ान या ढलान पर लगाकर फायर की जा सकती थी. 

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ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन के A4 वैरिएंट ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में काफी सफलता दिलाई थी. कोरिया और वियतनाम युद्ध में भी इस बंदूक ने झंडे गाड़े थे. इसके  A6 वैरिएंट को काफी ज्यादा हल्का बनाने का प्रयास किया गया था. इसके बैरल का वजन 3.8 किलोग्राम से घटाकर 1.8 किलोग्राम कर दिया गया था. (फोटोः यूएस डिफेंस)

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अमेरिकी नौसेना (US Navy) ने A4 वैरिएंट को बदलकर उसे 7.62 मिलीमीटर की NATO चैंबरिंग करके उसे एमके-21 मॉड 0 नाम दिया था. यह बदली हुई ब्राउनिंग मशीन गन ने वियतनाम वॉर में अमेरिकी सेना की काफी मदद की थी. यह मशीन गन उस समय दुनिया भर में इतनी ज्यादा फेमस हुई कि कई देश इसके अपने वर्जन बनाने लगे. खास तौर इंग्लैंड ने .303 कैलिबर की गन बनाई. उसे अपने फाइटर जेट्स सुपरमरीन स्पिटफायर, हॉकर हरिकेन, बमवर्षक ब्रिस्टल ब्लेनहीम, फेयरी बैटल, हैंडले पेज हैंपडेन और मार्टिन मैरीलैंड में लगा दिया. (फोटोः गेटी)

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इस मशीन गन से प्रेरित होकर हिस्पैनो-सुइजा एमके-2 बनाई गई, जो 20 मिलीमीटर कैलिबर की थी. यह एक एंटी-एयरक्राफ्ट गन थी. जिसे जमीन, युद्धपोत, जंगी जहाजों आदि पर लगाया जाता था. ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन का उत्पादन द्वितीय विश्व युद्ध के समय तीन अलग-अलग अमेरिकी कंपनियां कर रही थीं. ये थीं- बफेलो आर्म्स कॉर्पोरेशन, रॉक आइलैंड आर्सेनल और जनरल मोटर्स का सैगिनाव स्टीयरिंग गीयर डिविजन. (फोटोः गेटी)

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शुरुआती समय में यह 667 डॉलर्स यानी 50,854 रुपये की थी. लेकिन बाद में उत्पादन बढ़ा तो कीमत कम करके 142 डॉलर्स यानी 10,826 रुपये कर दी गई थी. ब्राउनिंग एम1919 (Browning M1919) मशीन गन को अमेरिका में 80 के दशक में आम नागरिक भी उपयोग करते थे. लेकिन अमेरिका ने 1986 में अपने बंदूकों के कानून में बदलाव करके इस मशीन गन की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा थी. कोई अपनी मशीन गन किसी को ट्रांसफर भी नहीं कर सकता था. लेकिन उस दशक में यह बंदूक हथियार तस्करों की चहेती बन चुकी थी. इसका काफी ज्यादा अवैध व्यापार हुआ था. 

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