एक ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में दुनियाभर के डॉक्टरों को जानकारी कम है. यह कोरोना से पीड़ित लोगों को भी हो सकती है. इस बीमारी को फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) कहते हैं. हाल ही में हुई एक स्टडी के मुताबिक लॉन्ग कोविड मरीजों को यह समस्या परेशान कर सकती है. आइए जानते हैं कि इस बीमारी में होता क्या है? लोगों को किस तरह की दिक्कत आ सकती है. (फोटोः गेटी)
फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) एक ऐसी स्थिति है जिसमें पूरे शरीर में दर्द रहता है. साथ ही अत्यधिक थकान महसूस होती है. वैज्ञानिकों और हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह दर्द को महसूस करने वाले नसों (Pain Sensing Nerves) की गतिविधि बढ़ने की वजह से हो सकता है. क्योंकि यह एक ऑटोइम्यून रिसपॉन्स (Autoimmune Response) है. यह स्टडी हाल ही में जर्नल ऑफ क्लीनिकल इन्वेस्टिगेशन में प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)
किंग्स कॉलेज लंदन में इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री, साइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस के डॉ. डेविड एंडरसन कहते हैं कि यह समस्या मायल्जिक इन्सेफ्लोमाइलटिस (Myalgic Encephalomyelitis), क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (Chronic Fatigue Syndrome) और लॉन्ग कोविड पेशेंट को हो सकता है. ये सारे अलग-अलग सिंड्रोम्स हैं लेकिन लक्षणों के आधार पर ये बहुत हद तक एक जैसे ही हैं. इसलिए फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) इन दिक्कतों के साथ या अलग से भी संभव है. (फोटोः गेटी)
डॉ. डेविड ने बताया कि फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) 40 में से किसी एक को होता है. जबकि, कुछ स्टडीज यह भी कहती हैं कि यह 20 में से किसी एक को होती है. यह दर्द के स्तर पर अलग-अलग श्रेणियों में बांटी जाती है. कई बार हेल्थ एक्सपर्ट इसे फाइब्रो फॉग (Fibro Fog) कहते हैं. आमतौर पर यह बीमारी 25 से 55 साल के बीच की उम्र वालों को होती है. हालांकि, यह बच्चों को भी हो सकती है, कोरोना काल में इसके जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें से 80 फीसदी महिलाएं थीं. (फोटोः गेटी)
इस समय फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) को लेकर जो इलाज की पद्धत्तियां हैं, उनमें सबसे जरूरी है जेंटल एरोबिक एक्सरसाइज (Gentle Aerobic Excercise). इसके अलावा दवाएं और साइकोलॉजिकल थैरेपीज भी की जाती हैं, ताकि दर्द को कम करने का प्रयास किया जा सके. लेकिन इलाज की पद्धत्तियां अब तक ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई हैं. डॉ. डेविड एंडरसन कहते हैं कि आमतौर पर यह धारणा है कि यह बीमारी दिमागी है. लेकिन ऐसा नहीं है. (फोटोः गेटी)
डॉ. डेविड और उनकी टीम ने फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) से पीड़ित 44 लोगों के शरीर से खून का सैंपल लिया. इन नमूनों में प्यूरीफाइड एंटीबॉडीज निकालकर अलग-अलग चूहों के शरीर में डाली. इसके बाद चूहे दबाव और ठंड को लेकर ज्यादा सक्रिय हो गए. लेकिन उनके पैरों की पकड़ ढीली हो गई. वहीं, स्वस्थ लोगों के शरीर से ली गई एंटीबॉडी वाले चूहे ठीक-ठाक थे. उनके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. (फोटोः गेटी)
Fibromyalgia may be a condition of the immune system not the brain – study https://t.co/SLT67uZYN0
— Guardian Science (@guardianscience) July 1, 2021
इस स्टडी में शामिल स्वीडन स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर कैमिला स्वेनसन कहती हैं कि यूके में रहने वाले फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) के मरीजों और स्वीडन के मरीजों की एंटीबॉडीज का असर एक जैसा था. हमारी स्टडी से इलाज की पद्धत्ति बदलने की जरूरत महसूस होने लगी है. हमें फाइब्रोमायल्जिया के मरीजों के इलाज के लिए कोई नई और असरदार पद्धत्ति निकालनी होगी. (फोटोः गेटी)
डॉ. डेविड एंडरसन कहते हैं कि फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) का दिमाग से कोई लेना देना नहीं है. यह एक ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर (Autoimmune Disorder) है, जिसके इलाज के लिए नया तरीका निकालना होगा. अगर इसका कारगर इलाज निकलता है तो यह लॉन्ग कोविड पेशेंट और मायल्जिक इन्सेफ्लोमाइलटिस (Myalgic Encephalomyelitis), क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (Chronic Fatigue Syndrome) जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए फायदेमंद होगा. (फोटोः गेटी)
वहीं, फाइब्रोमायल्जिया एक्शन यूके के चेयर डेस क्विन ने कहा कि फाइब्रोमायल्जिया (Fibromyalgia) को ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर कहने पर विवाद काफी दिनों से चल रहा है. हो सकता है कि ये हो लेकिन हमारे सामने ऐसी स्टडी के परिणाम नहीं हैं आएं हैं. ऐसे परिणाम सामने आएं और उनका डिटेल में अध्ययन किया जाए तो ज्यादा सही जानकारी मिलेगी. (फोटोः गेटी)