भारत में लोगों को सबसे ज्यादा कोविशील्ड वैक्सीन की डोज लग रही है. पहले लोग खुश थे कि एक महीने से दो महीने में उन्हें कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लग जाएंगी. अब केंद्र सरकार ने दो डोज के बीच के समय को बढ़ा दिया है. इसे 12 से 16 हफ्ते कर दिया है. लोगों की समझ में नहीं आ रहा कि अब वो क्या करें? क्या इतना अंतर सही है? क्या इससे लोगों को फायदा होगा? क्या बाकी देशों में भी ऐसा ही हाल है? तो आइए जानते हैं कि किस देश में किस वैक्सीन के डोज के बीच कितना अंतर है...(फोटो: रॉयटर्स)
कोविशील्ड (Covishield): भारत में केंद्र सरकार ने कोविशील्ड के दो डोज के बीच का अंतर बढ़ाकर 12 से 16 हफ्ते कर दिया है. यानी 3 से 4 महीने. कोविशील्ड को ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका दवा कंपनी ने मिलकर बनाया है. इसका उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) कर रही है. अब मुद्दे की बात ये है कि क्या यूके (UK) में कोविशील्ड वैक्सीन की डोज में अंतर बढ़ाया गया है. तो आप जानकर हैरान होंगे कि ब्रिटेन ने पिछले साल दिसंबर में ही इस वैक्सीन की डोज के बीच गैप बढ़ाकर 12 हफ्ते कर दिया था. लेकिन B.1.617 कोरोना वैरिएंट के आने बाद मची तबाही से डरकर दो डोज के गैप को घटाकर 8 हफ्ते कर दिया गया है. (फोटो:गेटी)
ब्रिटेन में फाइजर और बायोएनटेक (Pfizer/BioNTech) की कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज में 12 हफ्ते का अंतर रखा था. ब्रिटेन में हुई स्टडी में यह बात सामने आई थी कि फाइजर और बायोएनटेक की वैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही टीके काफी कारगर साबित हो रहे हैं. इसलिए दोनों के डोज में 12 हफ्ते का गैप होना चाहिए. WHO ने भी इस फैसले में सहमति जताई थी. ज्यादा गैप होने से सरकार और वैक्सीन निर्माताओं को टीके के उत्पादन और सप्लाई के लिए समय मिलेगा. (फोटो:गेटी)
कोवैक्सीन (Covaxin): भारत सरकार ने इस वैक्सीन के डोज के बीच अंतर बढ़ाने की फिलहाल कोई बात नहीं की है. कोवैक्सीन के दो डोज के बीच 4 से छह हफ्ते का ही अंतर है. हालांकि, हो सकता है कि भविष्य में इस वैक्सीन की डोज को लेकर तय किए गए अंतर को बढ़ाया जाए. यह निर्भर करता है वैक्सीन की उत्पादन क्षमता और कोरोना वैरिएंट के बढ़ते असर पर. कोवैक्सीन को भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने बनाया है. (फोटो:गेटी)
स्पुतनिक V (SputnikV): रूस से आई कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक V (Sputnik V) वैक्सीन को बनाने वाली संस्था गामालेया रिसर्च सेंटर ने कहा है कि फिलहाल स्पुतनिक वैक्सीन के दो डोज के बीच तीन हफ्ते का गैप है. लेकिन भविष्य में इसे बढ़ाकर तीन महीने किया जा सकता है. यानी 12 हफ्ते. स्पुतनिक वैक्सीन कोरोना के खिलाफ 91.6 फीसदी बचाव देती है. भारत में डॉ. रेड्डी लेबोरेटरीस स्पुतनिक वैक्सीन का निर्माण कर रही है. रूस और भारत दोनों जगहों पर स्पुतनिक वैक्सीन के दो डोज के बीच का अंतर 21 दिन ही है. यानी तीन हफ्ते. (फोटो:गेटी)
फाइजर (Pfizer) की वैक्सीन: भारत में फिलहाल इस वैक्सीन का उपयोग नहीं हो रहा है. फाइजर और बायोएनटेक ने मिलकर कोरोना की जो वैक्सीन बनाई है. उसे पहले तीन हफ्ते के अंतर पर लिया जा रहा था. लेकिन ब्रिटेन में इसके डोज के अंतर को बढ़ाकर 12 हफ्ते कर दिया गया है. पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड में सलाहकार एपिडेमियोलॉजिस्ट गायत्री अमृतालिंगम ने कहा कि फाइजर की वैक्सीन अच्छा असर दिखा रही है. लोगों में कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी और एंटीबॉडी बढ़ रहे हैं. ऐसे में 12 हफ्ते का अंतर बेहतरीन है. इससे लोगों को काफी फायदा होगा. साथ ही वैक्सीन की सप्लाई में दिक्कत कम होगी. सभी लोगों तक वैक्सीन पहुंच पाएगी. (फोटो:गेटी)
मॉडर्ना (Moderna) की वैक्सीन: भारत में यह वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह भी फाइजर की तरह mRNA तरीके पर बनाई गई है. इसके पहले और दूसरे डोज के बीच चार हफ्ते का गैप है. हालांकि इस वैक्सीन के लिए जो अंतर रखना था वह 28 दिन का था. यह मानक अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल (CDC) ने तय किया था. लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि मॉडर्ना अपनी वैक्सीन के दो डोज के बीच 42 दिन से ज्यादा का अंतर नहीं बना सकती. यानी 4 से 6 हफ्ते का गैप. (फोटो:गेटी)
जॉन्सन एंड जॉन्सन (Johnson & Johnson) की वैक्सीन: जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन के दूसरे डोज का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि यह वैक्सीन सिंगल डोज है. इसका सिंगल डोज लेने के बाद दो हफ्ते लगते हैं शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज बनने में. कोरोना के खिलाफ इसकी क्षमता फाइजर और मॉडर्ना के वैक्सीन जैसी नहीं है लेकिन ये तब भी काफी ज्यादा असरदार है. फिलहाल जॉन्सन एंड जॉन्सन अपनी वैक्सीन के बूस्टर शॉट पर काम कर रही है. ये कितने दिन बाद दी जाएगी यह जानकारी अभी कंपनी या किसी रेगुलेटरी संस्था द्वारा जारी नहीं की गई है. (फोटो:गेटी)
साइनोवैक (Sinovac): चीन की वैक्सीन साइनोवैक के निर्माताओं ने सलाह दी है कि अगर उनकी वैक्सीन के दो डोज के बीच का अंतर बढ़ा दिया जाए तो यह ज्यादा कारगर होगी. पूरी दुनिया के करीब 22 देशों में दी जा रही यह वैक्सीन कोरोना को रोकने में सिर्फ 50 फीसदी ही कारगर है. जबकि फाइजर की वैक्सीन 97 फीसदी एफिकेसी रखती है. हालांकि इसके दो डोज के बीच का वर्तमान अंतर 21 दिन यानी तीन हफ्ते हैं. (फोटो:गेटी)
नोवावैक्स (Novavax): यह वैक्सीन भारत में उपलब्ध नहीं है लेकिन इसका ट्रायल भारत में कोरोवैक्स के नाम से किया जा रहा है. कोरोना के खिलाफ इसकी क्षमता 89 फीसदी है. इसके दो डोज लगते हैं. पहले और दूसरे डोज के बीच फिलहाल 21 दिन का अंतर है. अगर जरूरत पड़ेगी तो भविष्य में इसे बढ़ाया जा सकता है. हालांकि, इस वैक्सीन को लेकर फिलहाल किसी भी देश में डोज का अंतर बढ़ाने की बात सामने नहीं आई है. (फोटो:गेटी)
पहले ये समझिए कि वैक्सीन कैसे करती है काम?
दुनिया में फिलहाल जितनी भी वैक्सीन हैं, उनमें जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन छोड़कर सभी दो डोज वाली वैक्सीन है. वैक्सीन की पहली डोज शरीर में एंटीबॉडी बनाने का काम करती है. वहीं, दूसरी डोज शरीर की इम्यूनिटी को और ताकतवर बनाती है. इसलिए हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि कोरोना वैक्सीन की पहली डोज के बाद अगर कोई संक्रमित हो भी जाए तो उसे दूसरी डोज लेनी चाहिए लेकिन अपने डॉक्टर की सलाह के बाद. दोनों डोज लगने के बाद इंसान को ज्यादा सुरक्षित माना जाता है. (फोटो:गेटी)
अब जानते हैं डोज के बीच अंतर क्यों बढ़ाया गया?
दुनियाभर के देशों के वैक्सीन की डोज के अंतर को बढ़ाने के लिए कई रिसर्च हुए हैं. केस स्टडी और क्लीनिकल डेटा के आधार पर यह अंतर बढ़ाया गया है. पहली डोज के बाद कई हफ्ते बाद दूसरी डोज लेने पर कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी और एंटीबॉडी बढ़ जाती है. कोविशील्ड को लेकर पहले 4 से छह हफ्ते का अंतर रखने को कहा गया था. बाद में क्लीनिकल ट्रायल में पता चला कि पहला डोज लेने के 8 हफ्ते बाद दूसरा डोज लेने पर कोरोना के खिलाफ 80 से 90 फीसदी इम्यूनिटी बढ़ती है. (फोटो:गेटी)
ज्यादा अंतर होने पर एंटीबॉडी की ताकत बढ़ती है
सिर्फ भारत ही नहीं है जिसने दो डोज में अंतर को बढ़ाया है. इससे पहले स्पेन, ब्रिटेन समेत कई देश ऐसा कर चुके हैं. अगर अंतर अच्छा होता है तो शरीर में कोरोना से लड़ने की क्षमता को दोगुना तक बढ़ा सकता है. (फोटो:गेटी)
जो लोग दोनों डोज ले चुके हैं उनका क्या?
स्वास्थ्यकर्मी, बुजुर्ग, फ्रंटलाइन वर्कर्स जिन्हें दो डोज लग चुके हैं, उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हो सकता है कि भविष्य में वैक्सीन का बूस्टर डोज भी लगाया जाए. अंतर बढ़ाने से एक बड़ा फायदा ये होगा कि दवा कंपनियों को वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने की मोहलत मिल जाएगी और उसके बाद डिलीवरी भी आसानी से होगी. (फोटो:गेटी)