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साइंस न्यूज़

नासा पृथ्वी के 'दुष्ट जुड़वा' ग्रह पर भेजेगा दो मिशन, लागत 3644 करोड़ रुपये

NASA Venus earth Evil Twin
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अचानक नासा को न जाने क्या सूझा कि उसने पृथ्वी के 'दुष्ट जुड़वा' ग्रह पर 30 साल बाद दो मिशन भेजने की तैयारी कर ली है. आप सोच रहे होंगे कि पृथ्वी का 'दुष्ट जुड़वा' ग्रह कौन सा है. तो ये जान लीजिए कि शुक्र ग्रह (Venus) को धरती का 'Evil Twin' कहते हैं. नासा के इन दो मिशन की लागत है 3644 करोड़ रुपये. इसमें एक मिशन शुक्र ग्रह की सतह की मैपिंग करेगा और दूसरा उसके वायुमंडल की जानकारी जुटाएगा. (फोटोःगेटी)

NASA Venus earth Evil Twin
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NASA शुक्र ग्रह पर 30 साल बाद यानी 1990 के बाद कोई मिशन भेजने की तैयारी में जुट गया है. ये मिशन अगले दस साल में पूरे किए जाएंगे. यानी 2031 तक नासा पहले दविंची+ (DAVINCI+) और उसके बाद वेरिटास (VERITAS) मिशन को लॉन्च करेगा. दविंची+ शुक्र ग्रह के वायुमंडल का अध्ययन करेगा. यह समझने की कोशिश करेगा कि यह कैसे बना. क्या यहां कभी सागर हुआ करते थे या नहीं. वहीं, वेरिटास शुक्र ग्रह के सतह और भौगोलिक इतिहास का अध्ययन करेगा. (फोटोःNASA)

NASA Venus earth Evil Twin
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शुक्र को पृथ्वी का 'दुष्ट जुड़वा' ग्रह क्यों कहते हैं? पहले ये जान लेते हैं. शुक्र ग्रह आकार में लगभग धरती के बराबर है. यह उसी पदार्थ से बना है, जिससे पृथ्वी बनी है. ऐसा माना जाता है कि शुक्र ग्रह पर पहले सागर हुआ करते थे. तो बाद में ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव में आकर खत्म हो गए. शुक्र ग्रह सूरज के नजदीक होने की वजह से ज्यादा गर्म रहता है. ऐसा माना जाता है कि वह जल रहा है. इसलिए कभी-कभार रात में आप अगर चांद के दाहिनी ओर उत्तर-पूर्व की ओर देखें तो आपको सबसे ज्यादा चमकता हुआ शुक्र ग्रह ही दिखाई देता है. (फोटोःगेटी)

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NASA Venus earth Evil Twin
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NASA के एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने बताया कि दविंची+ और वेरिटास मिशन उनके डिस्कवरी प्रोग्राम के तहत भेजे जाएंगे. इस मिशन के तहत हम जानने की कोशिश करेंगे कि शुक्र ग्रह पर भयानक गर्मी और जंगल की आग जैसा माहौल क्यों है. जबकि, शुक्र ग्रह बहुत हद तक धरती से समानता रखता है. हो सकता है कि सौर मंडल के निर्माण के वक्त शुक्र ग्रह रहने योग्य रहा हो. क्योंकि वहां धरती की तरह ही सागर थे और वैसा ही पर्यावरण. फिर अचानक वह गर्म क्यों हो गया. (फोटोःगेटी)

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दविंची+ (DAVINCI+) का पूरा नाम है डीप एटमॉस्फेयर वीनस इन्वेस्टीगेशन ऑफ नोबल गैसेस, केमिस्ट्री एंड इमेजिंग (Deep Atmosphere Venus Investigation of Noble gases, Chemistry and Imaging). यह शुक्र ग्रह के वायुमंडल के निर्माण की पूरी प्रक्रिया को समझने की कोशिश करेगा. साथ ही यह भी पता लगाएगा कि क्या शुक्र ग्रह पर कभी सागर था या नहीं. इसके अलावा यह नोबल गैसेस की स्टडी करेगा, जैसे-हीलियम, नियोन, आर्गन और क्रिप्टॉन. (फोटोःESA)

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साल 2020 में वैज्ञानिकों के बीच एक तर्क-वितर्क तब चलने लगा जब ये पता चला कि शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन गैस (Phosphine Gas) के अंश है. यह एक रंगहीन गैस होती है जो कुछ सूक्ष्मजीवों (Microorganisms) के द्वारा उत्सर्जित यानी पैदा की जाती है. यह तब होता है जब ऑक्सीजन का स्तर बेहद कम या एकदम न हो. लेकिन यह खुशी का मौका जल्द ही खत्म हो गया. एक स्टडी सामने आई जिसमें कहा गया कि वह फॉस्फीन गैस नहीं बल्कि सामान्य सल्फर डाईऑक्साइड थी. अब नोबल गैसों की स्टडी करने वाला यंत्र यह भी पता लेगा कि वहां पर फॉस्फीन गैस है भी या नहीं. (फोटोःगेटी)

NASA Venus earth Evil Twin
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दविंची+ पहली बार शुक्र ग्रह के टेसेरे (Tesserae) नामक महाद्वीप की हाई रेजोल्यूशन तस्वीर भी भेजेगा. शुक्र ग्रह का यह महाद्वीप धरती के महाद्वीपों की तरह ही बड़ा और ऊंचा-नीचा है. नासा के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस जुरबुचेन ने कहा कि नासा ने इस मिशन के लिए अति-अत्याधुनिक तकनीक बनाई है. क्योंकि हम एक नए शुक्र ग्रह की ओर जा रहे हैं, जो पिछले 30 साल में काफी बदल गया है. इसके अध्ययन से हमें पता चलेगा कि क्या कभी धरती भी शुक्र ग्रह की तरह गर्म हो जाएगी. क्या इसपर जीवन बचेगा या नहीं. (फोटोःESA)

NASA Venus earth Evil Twin
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नासा ने आखिरी बार शुक्र ग्रह पर जो दो मिशन भेजे थे, वह हैं- 1978 में भेजे गए पायनियर-वीनस प्रोजेक्ट (Pioneer-Venus Project) और मैगेलेन (Magellan). मैगलेन साल 1990 में धरती पर वापस आ गया था. इसने करीब चार साल तक शुक्र ग्रह की निगरानी की थी. इसके बाद इस साल अप्रैल में नासा का पार्कर सोलर प्रोब ने शुक्र ग्रह के वायुमंडल से रेडियो सिग्नल कैच किया. तब वह सूरज की ओर जा रहा था और शुक्र के करीब से निकला था. फिलहाल सिर्फ जापान का स्पेसक्राफ्ट आकासूकी (Akatsuki) ही इस ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है. (फोटोःNASA)

NASA Venus earth Evil Twin
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दूसरा मिशन है वेरिटास (VERITAS) यानी वीनस एमिसिविटी, रेडियो सांइस, इनसार, टोपोग्राफी एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी (Venus Emissivity, Radio Science, InSAR, Topography, and Spectroscopy). यह शुक्र ग्रह के सतह की जांच करके वहां के भौगोलिक इतिहास की जानकारी लेगा. यह पता करेगा कि क्यों यह धरती से अलग हो गया. कैसे इसका विकास धरती से अलग तरीके से हुआ. (फोटोःगेटी)

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दुनियाभर में ये माना जा रहा है कि अगले कुछ सालों में चीन स्पेस इंडस्ट्री का बड़ा प्लेयर बनकर सामने आएगा. इसलिए अमेरिका समेत कई देश अपनी अंतरिक्ष कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में जुट गए हैं. चीन ने हाल ही में मंगल ग्रह पर अपना रोवर उतारा है. ऐसा करने वाला वह पहला एशियाई देश है. आपको बता दें कि शुक्र ग्रह पर 200 से 300 करोड़ साल पहले पानी अपनी प्राकृतिक अवस्था में था. लेकिन 70 करोड़ साल पहले अचानक वहां बदलाव हुए और सारा पानी खत्म हो गया. इसके पीछे ज्वालामुखीय विस्फोट को वजह माना जाता है. (फोटोःगेटी)

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