भारत की राजधानी नई दिल्ली में बन रहे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की लागत के लगभग ही पैसे लगे थे नासा को मंगल ग्रह पर पर्सिवरेंस रोवर और लैंडर भेजने में. यही कोई 20 हजार करोड़ रुपये के आसपास. पर्सिवरेंस रोवर को मंगल की सतह पर उतारने के लिए एक खास तरह का कैप्सूल बनाया गया था. यह कैप्सूल पैराशूट की मदद से मंगल की सतह पर उतरा था. उसके बाद कैप्सूल और पैराशूट तब से वहीं पड़े हैं. (फोटोः NASA)
19 अप्रैल 2022 को इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर की 26वीं उड़ान के दौरान नासा के वैज्ञानिकों को यह खूबसूरत नजारा दिखा. इंजीन्यूटी टीम के साइंटिस्ट टेडी जानेटोस ने कहा कि जब भी यह हेलिकॉप्टर उड़ान भरता है, हम तब नई जगह एक्सप्लोर करने की कोशिश करते हैं. हमें इस बार तो तोहफा ही मिल गया. हमें पर्सिवरेंस रोवर और लैंडर का लैंडिंग गियर और पैराशूट मिला. (फोटोः NASA)
टेडी ने बताया कि कुछ दिन पहले भी पर्सिवरेंस रोवर ने इन दोनों की तस्वीर ली थी. तब भी कैप्सूल का बैकशेल (Backshell) और पैराशूट इसी तरह से दिखे थे. इनकी दिशा और दशा में ज्यादा अंतर नहीं आया है. इंजीन्यूटी से जब तस्वीरें मिलीं तो और कई जानकारियां भी पुख्ता हो गईं. (फोटोः NASA)
मार्स पर्सिवरेंस रोवर (Mars Perseverance Rover) ने मंगल ग्रह के वायुमंडल में प्रवेश करते ही क्रूज स्टेज से अलग हो गया था. 10 मिनट तक इस कैप्सूल ने वायुमंडल में यात्रा की थी. यानी वायुमंडल के घर्षण से पैदा होने वाली गर्मी बर्दाश्त की थी. लेकिन लैंडिंग सुरक्षित कराई थी. (फोटोः NASA)
🤯 Check out what Ingenuity has spotted! How cool is that!
— Marcus House (@MarcusHouse) April 27, 2022
📷 by #NASA JPLhttps://t.co/RsZCakuFeK pic.twitter.com/xDu4PPIQiU
पर्सिवरेंस रोवर में नई रेंज ट्रिगर टेक्नोलॉजी पर आधारित पैराशूट डिप्लॉयमेंट सिस्टम लगा हुआ था. यह स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग से ठीक पहले यह जान लेता है कि पैराशूट कब खुलना है. पैराशूट मंगल की सतह से करीब 9 से 12 किलोमीटर ऊपर खुला था. इस समय इसकी गति 1512 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. (फोटोः NASA)
इसके बाद क्रूज स्टेज और उसके अंदर मौजूद पर्सिवरेंस रोवर और हेलिकॉप्टर को वायुमंडल की गर्मी से बचाने वाला हीट शील्ड अलग हुआ था. इस समय इसकी मंगल के सतह से ऊंचाई 6 से 8 किलोमीटर थी. जबकि गति 579 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. रोवर को किस तरह सुरक्षित सतह पर उतारना था, इस काम की निगरानी यान में लगा एक कंप्यूटर कर रहा था. ये दोनों काम 4 किलोमीटर की ऊंचाई पर शुरु हो गए थे. (फोटोः NASA)