आप सो रहे हैं. अचानक नींद में ही तेज रोशनी से आंखें धुंधली हो जाती हैं. उसमें से कोई आकृति निकल कर आपसे बातें कर रही हैं. या अपनी ओर खींच रही है. जिंदगी के सारे अच्छे-बुरे पल सेकेंड्स में दिखने लगते हैं. और फिर... आप होश में आ जाते हैं. घबराएं हुए और यह सोचते हुए कि क्या हुआ मेरे साथ. इसी को लोग नीयर डेथ एक्सपीरिएंस (Near Death Experience) कहते हैं. यानी मौत को छू कर वापस आ जाना. यही बात किक मूवी में नवाज ने अपने डायलॉग में भी कही है.
वैज्ञानिक तौर पर इस कॉन्सेप्ट को बहुत अच्छे से परिभाषित नहीं किया गया है. किसी न्यूरोसाइंटिस्ट या क्रिटिकल केयर फिजिशियन से पूछो कि नीयर डेथ एक्सपीरिएंस क्या होता है (What is near death experience?). या इसका मतलब क्या होता है, तो शायद ही वो आपको कुछ सही-सही बता सकें. इसे लेकर वो एक ही बात कहेंगे कि इस मामले में और ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. (फोटोः गेटी)
अब विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक स्टडी की जिसके बाद ये सहमति बनी कि जो लोग मौत को छू कर वापस आते हैं, यानी नीयर डेथ एक्सपीरिएंस का सामना करते हैं, वो सच में वैसा करते हैं. यह किसी तरह का वहम या मतिभ्रम या हैल्युसिनेशन नहीं है. इसे लेकर स्टडी रिपोर्ट एनल्स ऑफ द न्यूयॉर्क एकेडमी ऑफ साइंसेस (Annals of the New York Academy of Sciences) जर्नल में प्रकाशित हुई है. (फोटोः डेविड कासोलाटो/पिक्सेल)
पहली बार इस स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत के अनुभव के संभावित मैकेनिज्म, नैतिक बाध्यताओं, जांच के तरीकों, मुद्दों और विवादों पर ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है. लेकिन एक बात तो सच है कि 21वीं सदी में मौत सैकड़ों साल पहले होने वाली मौत जैसी तो नहीं हैं. उसमें अंतर है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में फ्यूचर ऑफ ह्यूमेनिटी इंस्टीट्यूट के रिसर्च फेलो एंडर्स सैंडबर्ग कहते हैं कि किसी का अमर होना या बचे रहना या तकनीक पर निर्भर करेगा. (फोटोः मासा रेमर्स/पिक्सेल)
एंडर्स कहते हैं कि बहुत समय तक यह माना जाता रहा है कि सांस न लेना, नब्ज का न होना मौत की निशानी है. वह भी तब तक जब तक रुकी हुई सांस लाने की तकनीक विकसित नहीं कर ली गई. कई बार अटकी हुई सांस वालों और थमी हुई नब्ज वाले भी वापस जी उठते हैं. खासतौर से पानी में डूबने वाले लोग. वो काफी ज्यादा हाइपोथर्मिया यानी ऑक्सीजन की कमी से संघर्ष करते हैं. नब्ज कम हो जाती है या खत्म. लेकिन सीने पर दबाव और मुंह से सांस देने के तरीकों से लोग वापस सांस लेने लगते हैं. नब्ज चलने लगती है. (फोटोः हाल गेटवुड/अन्स्प्लैश)
एंडर्स कहते हैं कि अब तो दिल के रुकने को भी पूरी तरह से मृत की श्रेणी में नहीं रखते. क्योंकि दिल भी ट्रांसप्लांट हो जाता है. दिल ट्रांसप्लांट करने वाला सर्जन यह नहीं मानता कि दिल रुक गया है. अगर आप उसकी टेबल पर बतौर मरीज पड़े हैं. आधुनिक मेडिसिन और चिकित्सा प्रणालियों ने मौत की परिभाषा को बदल दिया है. अब हम सिर्फ यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि सबसे बड़े सच के पीछे का सच क्या है. वह कितना सही है. क्या इसका अनुभव एक बार ही होता है या कई बार होता है. (फोटोः गेटी)
“Near-Death Experiences” Are Not Hallucinations, Says First-Ever Study Of Its Kindhttps://t.co/7kED0Recz0 pic.twitter.com/WSKtjNFUVy
— IFLScience (@IFLScience) April 8, 2022
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के क्रिटिकल केयर एंड रीससिटेशन रिसर्च के डायरेक्टर और इस स्टडी के प्रमुख शोधकर्ता सैम पार्निया ने एक बयान देकर कहा कि कार्डिएक अरेस्ट (Cardiac Arrest) हार्ट अटैक नहीं है. यह सिर्फ यह बताता है कि इंसान की मौत किस बीमारी से हुई है. लेकिन कार्डियोपल्मोनरी रीससिटेशन (CPR) ने हमें बताया है कि मौत कोई पूर्ण स्थिति नहीं है. यह एक प्रक्रिया है जो पलटी जा सकती है. वह भी इसके शुरु होने के बाद. (फोटोः पिक्साबे)
कई अन्य रिसर्चर भी यह दावा करते हैं कि शारीरिक या संज्ञानात्मक स्तर पर भी किसी ने मौत के आखिरी बिंदु की तरफ इशारा नहीं किया है. न ही किसी वैज्ञानिक रिसर्च ने मौत को छूकर आने को लेकर यानी नीयर डेथ एक्सपीरिएंस को न कोई प्रूव कर पाया है न ही मना कर पाया है. लेकिन नीयर डेथ एक्सपीरिएंस को रिकॉर्ड किया गया है. ऑडियो फॉर्मेट में, वीडियो फॉर्मेट में, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फॉर्मेट में. हर बार कुछ न कुछ शानदार रिकॉर्ड हुआ है. (फोटोः पिक्साबे)
नीयर डेथ एक्सपीरिएंस में सबसे पहले जो अनुभूति होती है, वो है आप अपने शरीर से अलग हो चुके हैं. आपकी संज्ञानात्मक और पहचानने की क्षमता बढ़ चुकी होती है. इसके बाद आती है किसी भी स्थान की यात्रा करना वो भी किसी न किसी ढंग के काम के लिए ताकि किसी का फायदा हो सके. फिर आती है वो स्थिति जिसमें आपको लगता है कि आप घर में हैं. इससे बेहतर कोई स्थान नहीं है. इसके ठीक बाद आप असली दुनिया में लौट आते हैं. (फोटोः कॉटनब्रो/पिक्सेल)
ये सुनने में किसी साइकोलॉजिकल बेवकूफी भरी कहानी जैसी लगती है, लेकिन नीयर डेथ एक्सीपिरिएंस मतिभ्रम, वहम, माया या नशे की स्थिति जैसी एकदम नहीं है. न ही यह किसी ड्रग्स के नशे से मिलने वाले प्रभावों की तरह है. यह एक लंबे समय तक रहने वाला साइकोलॉजिकल ट्रांसफॉर्मेशन है. सैम पर्निया कहते हैं कि अगर कोई कुछ मिनटों के लिए मरता है, या उसका दिल रुक जाता है या सांसे चलनी बंद हो जाती है. तो वो मर नहीं जाता. वह वापस जीवित हो सकता है. लेकिन उस स्थिति से जीवित होने के बीच ही वह नीयर डेथ एक्सपीरिएंस कर लेता है. (फोटोः पिक्साबे)