इस सदी की सबसे भयावह महामारी से बचने के लिए दवा कंपनियों ने सरकारी तंत्र की मदद से लोगों तक वैक्सीन पहुंचाई. लेकिन क्या ये वैक्सीन दुनिया भर की आबादी के लिए पर्याप्त है? क्या गरीब देशों को या आर्थिक रूप से पिछड़े देशों को वैक्सीन मिल पाएगी. या फिर सारा स्टॉक अमीर देशों के कब्जे में होगा. होगा नहीं...है, इस वक्त वैक्सीन का बड़ा हिस्सा अमीर देशों के कब्जे में है. (फोटो:गेटी)
पूरी दुनिया की आबादी की तुलना में अब तक सिर्फ 0.3 फीसदी लोगों को ही वैक्सीन मिल पाई है. ये इतनी आबादी है जो कई गरीब देशों की आबादी के बराबर है. दुनिया 29 गरीब देशों की पूरी आबादी करीब 9 फीसदी है. वैक्सीन निर्माता कंपनियों का कहना है कि वो अपनी अधिकतम क्षमता में काम कर रही है, लेकिन वैक्सीन की कमी पूरी नहीं हो पा रही है. (फोटो:गेटी)
ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एनालिसिस के मुताबिक हर महीने मॉडर्ना, फाइजर और J&J मिलकर 40 करोड़ से 50 करोड़ वैक्सीन डोज का उत्पादन कर रही हैं. ये दुनिया के कई देशों में सप्लाई भी कर रहे हैं. लेकिन वैक्सीन की कमी हो रही है. पूरी दुनिया की 70 फीसदी आबादी का टीकाकरण करने के लिए 1100 करोड़ डोज चाहिए. (फोटो:गेटी)
ड्यूक यूनिवर्सिटी की मानें तो दवा कंपनियां लगातार प्रयास कर रही हैं लेकिन वो अपनी क्षमता से ज्यादा वैक्सीन का उत्पादन नहीं कर सकते. वैश्विक स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन की गणना काफी कठिन है. लेकिन दुनियाभर में हर महीने 170 करोड़ डोज तैयार हो रहे हैं. क्योंकि दुनियाभर में वैक्सीन से संबंधित कच्चा माल और जरूरी यंत्रों की सप्लाई भी कम है. (फोटो:गेटी)
ड्यूक यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स की मानें तो अगर कोई खतरनाक नया वैरिएंट तेजी से उभरा तो लोगों को बूस्टर शॉट्स की जरूरत पड़ेगी. साथ ही नई वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी जो इन वैरिएंट्स से संघर्ष कर सके. ऐसी स्थिति में वैक्सीन की मांग बढ़ेगी. ऐसे में हर देश पहले अपने लोगों के लिए वैक्सीन की सप्लाई लॉक करके रखनी होगी. ताकि उनके लोगों को दिक्कत न हो. (फोटो:गेटी)
ऐसे में उन देशों पर बीमारी का भार बढ़ेगा जो दूसरे सक्षम और वैक्सीन उत्पादन करने वाले देशों से टीके की मांग करते हैं. तो उनकी भी दिक्कतें बढ़ जाएंगी. आखिरकार इससे बचने का क्या तरीका है? इसके लिए जरूरी है कि सामूहिक प्रयासों की सराहना करना. उन्हों प्रोत्साहित करना. किसी तरह की विभाजनकारी नीतियां लागू न हो. चाहे वह परोक्ष हो या अपरोक्ष. (फोटो:गेटी)
There isn't enough Covid vaccine for the whole world, and poor countries are getting little of it. How do we solve this immense problem? https://t.co/vhemjfiuaw
— New York Times World (@nytimesworld) May 16, 2021
कुछ हेल्थ एक्सपर्ट मानते हैं कि वैक्सीन की कमी को पूरा करने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि दवा कंपनियों को अपनी दवा का सीक्रेट दुनिया की अन्य दवा कंपनियों से शेयर करना चाहिए. इससे फॉर्मूला पूरी दुनिया में बंट जाएंगे. कई अन्य बड़ी दवा कंपनियां छोटी कंपनियों के साथ मिलकर वैक्सीन का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. इसमें दवा कंपनियों को प्रतियोगिता छोड़कर पार्टनरशिप पर काम करना होगा. साथ ही वैक्सीन की कीमत भी आसानी से तय हो सकेगी. क्योंकि छोटी दवा कंपनियां देश के हिसाब से काम करेंगी. (फोटो:गेटी)
दुनिया भर के नेताओं और राष्ट्राध्यक्षों को वैक्सीन की कमी पूरी करने के लिए इस फॉर्मूले को लागू कराना चाहिए. दवा कंपनियों से उन्हें कहना चाहिए कि आप अपनी वैक्सीन का फॉर्मूला अन्य कंपनियों के साथ शेयर करें ताकि वैक्सीन की उत्पादन को बढ़ाया जा सके. इसके लिए दुनियाभर में कई डील्स होंगे. छोटी कंपनियों को भी फायदा होगा. इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा. साथ ही गरीब और पिछड़े देशों को मदद मिलेगी. वो अपने देश की दवा कंपनी से ही वैक्सीन का उत्पादन करा सकेंगे. (फोटो:गेटी)
हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये सलाह दो प्राथमिक आधारों पर निर्भर करती है. पहला कि किसी भी दवा कंपनी को अपनी वैक्सीन का पेटेंट कराने की जरुरत नहीं पड़ेगी. इससे किसी खास वैक्सीन पर से निर्भरता कम होगी. दूसरा दवा कंपनियां आपस में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेंगी तो इससे अन्य दवा कंपनियों को भी सीखने और वैक्सीन उत्पादन का मौका मिलेगा. (फोटो:गेटी)
द वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) ही एक ऐसा स्थान है जहां पर अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों पर डील हो सकती है. यहां से बड़ी कंपनियां विभिन्न छोटी कंपनियों के साथ डील कर सकती है. WTO के सामने डील करने से दवा कंपनियों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी रहेगा. साथ ही टारगेट जल्दी पूरा करने का मौका भी मिलेगा. (फोटो:गेटी)
यह एक अच्छा तरीका है लेकिन यूरोपियन यूनियन ने ऐसी सलाह मानने से मना कर दिया है. उसने कहा कि दवा कंपनियां अगर स्वेच्छा से किसी छोटी दवा कंपनियों के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करती हैं तो ये उनकी मर्जी है. हम किसी दवा कंपनी को दबाव में नहीं रख सकते. जबकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि बौद्धिक संपदा की नीतियां इस सलाह से प्रभावित होंगी. (फोटो:गेटी)
स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट गैलेन की ट्रेड एंड इकोनॉमिक डेवलपमेंट एक्सपर्ट सिमोन जे. एवनेट ने कहा कि हमें जरूरत है वैक्सीन के उत्पादन और डिलीवरी सिस्टम को और तेज व मजबूत करने की. हमें उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ाना होगा. लोगों की मदद नहीं हो पाएगी अगर इसी तरह से लोग दवा कंपनियों को डराते रहेंगे. इससे बेहतर है उन्हें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय समझौते करने के लिए प्रोत्साहित करें. (फोटो:गेटी)
कोविड 19 प्रिवेंशन नेटवर्क के सीनियर साइंटिफिक लायसन डॉ. क्रिस बीरेर ने कहा कि दुनिया इस समय गरीब देशों को भीख मांगने के लिए नहीं छोड़ सकती. या फिर उन्हें वैक्सीन के छोटी सी मात्रा के लिए दान का इंतजार न करना पड़े. क्रिस ने कहा कि दान लेने और देने की परंपरा बेहद गलत है. इस बीच, WTO लगातार यह प्रयास कर रही है कि दुनिया भर की दवा कंपनियों और राष्ट्राध्यक्षों के बीच बात और समझौते किया जा सकें. ऐसा माना जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में ये हो सकता है. (फोटो:गेटी)
वहीं, यूरोपियन्स इस बात को लेकर परेशान हैं कि पेटेंट को लेकर अगर नियमों में खुलापन लाया गया तो वैक्सीन निर्माताओं को नुकसान होगा. क्योंकि किसी भी वैक्सीन का बनाने का तरीका बेहद जटिल होता है. उसकी तकनीक को ट्रांसफर करने पर रिसर्चर्स और दवा कंपनियों को नुकसान होगा. WTO के महानिदेशक एनगोजी ओकोन्जो इवीआला ने कहा कि अगर आप वैक्सीन निर्माण करने जाते हैं तो उसी समय आपको कई काम एकसाथ करने होते हैं. लेकिन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं होगी तो महामारी को रोकना मुश्किल है. (फोटो:गेटी)
भारत ने इस साल छह करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज निर्यात किया है. जिनमें दान की गई वैक्सीन भी शामिल हैं. लेकिन एक महीने पहले उसने वैक्सीन को बाहर भेजना बंद कर दिया. चूंकि अब भारत की हालत कोरोना महामारी की वजह से खस्ताहाल है, इसलिए भारत ने दुनिया के बाकी देशों को वैक्सीन भेजना बंद कर दिया है. क्योंकि लोगों ने केंद्र सरकार को इस बात के लिए कोसना शुरू कर दिया था कि देश में कोरोना वैक्सीन मिल नहीं रही है. सरकार बाहर भेज रही है. (फोटो:गेटी)