ने चेरापूंजी और न ही मॉसिनराम. उत्तराखंड का ऋषिकेश अगस्त महीने में ज्यादातर दिन भारत का सबसे ज्यादा बारिश वाला इलाका बना रहा है. देश का सबसे गीला कस्बा भी. 1 अगस्त से 25 अगस्त के बीच ऋषिकेश में कुल 1901 मिलिमीटर बारिश हुई है.
यह खुलासा किया है उत्तर कोरिया के जेजू नेशनल यूनिवर्सिटी में मौजूद टाइफून रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक विनीत कुमार सिंह ने. जलवायु के लिए रिपोर्ट प्रकाशित करने वाली साइट डाउन टू अर्थ ने इसके हवाले से लिखा है कि इसी दौरान चेरापूंजी और मॉसिनराम भी सबसे ज्यादा गीले इलाके रहे.
चेरापूंजी में 1876.3 मिलिमीटर बारिश हुई, जबकि मॉसिनराम में 1464 मिलिमीटर बारिश हुई. पिछले तीन ददिन में चेरापूंजी में 332 मिलिमीटर बारिश हुई, जिसकी वजह से वह फिर से सबसे ज्यादा बारिश वाला इलाका बन गया. लेकिन अगस्त महीने में ज्यादातर दिन ऋषिकेश ही सबसे ज्यादा बारिश वाला इलाका बना हुआ था.
अगस्त महीना ऋषिकेश के लिए आफत से भरा रहा. गंगा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं. लोगों का जीना दुश्वार हो गया था. 9 अगस्त को दीवार गिरने की वजह से एक की मौत हो गई थी. सिर्फ ऋषिकेश में ही आसमानी आफत नहीं आई हैं. मॉनसून का बुरा असर पूरे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी देखने को मिला है.
इन दोनों राज्यों में भयानक बारिश हुई है. वजह थी मॉनसूनी लो-प्रेशर एरिया और पश्चिमी विक्षोभ का मिलना. अगस्त महीने में मॉनसूनी बारिश एक ब्रेक लेती है. लो प्रेशर एरिया की तरफ ज्यादा बारिश होने की संभावना रहती है. ज्यादातर बारिश देश के उत्तरी इलाकों, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में होती है.
इस ब्रेक फेज में बारिश हिमालय के फुटहिल्स की तरफ होती है. वह भी भयानक रूप में. कई बार तो बादलों के फटने की घटनाएं भी होती हैं. जबकि पूरे देश में इतनी बारिश नहीं होती. मॉनसून का ब्रेक फेज 7 से 18 अगस्त तक था. इसके बाद उसने 24 अगस्त के बाद फिर ब्रेक लिया है.
आमतौर पर अगस्त पूरे देश के लिए सूखा महीना रहता है. क्योंकि मॉनसून ब्रेक लेता है. लेकिन इस बार ऐसा कम हुआ. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कई बार फ्लैश फ्लड यानी अचानक बाढ़ आई. और भूस्खलन हुए. जिसकी वजह से कई लोगों की जान चली गई हजारों करोड़ों का नुकसान हो गया.
1 से 27 अप्रैल के बीच हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और भूस्खलन की वजह से 192 लोगों की मौत हुई थी. जबकि उत्तराखंड में 81 लोग मारे गए थे. इस तरह के मौसमी बदलाव की वजह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग माना जा रहा है. लेकिन पहाड़ों पर लोग ऐसे ही मौसम में छुट्टियां मनाने जाते हैं. या फिर धार्मिक यात्राओं पर.
इससे पहले भी जोशीमठ की दरारों की घटना सबको याद है. केदारनाथ जैसा हादसा और नदियों का बहाव फिर से देखने को मिला. लेकिन इसके बावजूद पहाड़ों पर बेतरतीब खनन और निर्माणकार्य चल रहा है.