भारत दक्षिण-पूर्व में स्थित हिंद महासागर और उसके बगल स्थित दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर का तापमान दुनिया के बाकी समुद्रों की तुलना में तीन गुना ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. इसकी वजह से भारत के दक्षिण-पूर्वी तटीय इलाके, दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों जलमग्न होने का खतरा मंडरा रहा है. यह चेतावनी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization - WMO) ने दी है. (फोटोः गेटी)
WMO ने कहा कि दक्षिण-पश्चिम प्रशांत (South-West Pacific), दक्षिण-पूर्व हिंद महासागर और ऑस्ट्रेलिया के निचले इलाके के सागरों की सतह का तापमान में ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है. समुद्री हीटवेव की वजह से कोरल रीफ को नुकसान हो रहा है. समुद्री इकोसिस्टम खराब हो रहा है. दक्षिण-पूर्व एशिया (South-East Asia) और प्रशांत महासागर में स्थित स्माल आइलैंड डेवलपिंग स्टेट्स की जमीन पर आए दिन बाढ़, तूफान की वजह से नुकसान होता है. मौतें होती हैं. विस्थापन होता है. इसके अलावा गर्म तापमान की वजह से ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लग जाती है. आशंका है कि अगले पांच साल में हिमालय (Himalaya) और एंडीज (Andes) में मौजूद ग्लेशियर पिघल जाएंगे. (फोटोः गेटी)
WMO द्वारा जारी 'द स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन द साउथ-वेस्ट पैसिपिक 2020' में साफ तौर पर इस इलाके में आने वाली आपदाएं, बढ़ते तापमान, समुद्री जलस्तर के बढ़ने, समुद्री गर्मी और अम्लीयता का खाका खींचा गया है. साथ ही ये भी बताया गया है कि इसकी वजह से ब्रुनेई, दारुसलाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पैसिफिक आइलैंड्स में क्या खतरा है. किस तरह के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान होगा. इसमें भारत का नाम नहीं होने से ये मत सोचिए कि भारत के तटीय इलाकों में असर नहीं होगा. जरूर होगा...क्योंकि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर किसी भी तरह का पर्यावरणीय असर होने पर सीधा प्रभाव भारत पर पड़ता है. (फोटोः कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस)
इस रिपोर्ट के मुताबिक यह चेतावनी दी गई है कि धरती और समुद्र का औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से पहले इन देशों को सख्त कदम उठाने होंगे. WMO के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालस ने कहा कि इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के दक्षिण-पूर्व हिंद महासागर, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश और ऑस्ट्रेलिया के आसपास का इलाका समुद्री मौसम के अधीन है. अगर समुद्री सर्कुलेशन, तापमान, अम्लयीता, ऑक्सीजन के स्तर और समुद्री जलस्तर में अंतर आता है, तो उसका भयानक नुकसान इन समुद्री इलाकों के देशों को होगा. जैसे- मछली पालन, एक्वाकल्चर और पर्यटन. समुद्र के गर्म होने की वजह से आने वाले चक्रवातों से तटीय इलाकों में भी भारी नुकसान होता है. (फोटोः गेटी)
प्रो. पेटेरी तालस ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने दक्षिण-पूर्व एशिया और ओशिएनिया इलाकों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बाधित किया है. अलग-अलग डेटा के अनुसार दक्षिण-पश्चिम प्रशांत साल 2020 में दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल था. साल 2020 के दूसरे हिस्से में सर्द ला नीना की वजह से साल 2021 में तापमान में भारी विभिन्नता आएगी. धरती के जलवायु प्रणाली में समुद्री सतह का तापमान भारी योगदान करता है. अल नीनो/ला नीना और इंसानी गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन से दक्षिण-पश्चिम प्रशांत के मौसम में काफी ज्यादा बदलाव आया है. साल 1982 से 2020 तक तासमान सागर और तीमोर सागर का तापमान वैश्विक औसत से तीन गुना ज्यादा रहा है. (फोटोः गेटी)
WMO State of Climate in South-West #Pacific 2020:
— World Meteorological Organization (@WMO) November 11, 2021
Sea-level rise is higher than global average.
⬆️ vulnerability to tropical cyclones and coastal flooding.
Impacts will continue to increase and pose an existential threat to some low-lying Pacific Islands.https://t.co/yeXyun0c5s pic.twitter.com/Qxog6rKW8f
इंसानी गतिविधियों से पैदा होने वाली गर्मी का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र सोख लेते हैं. साल 1993 से अब तक समुद्री गर्मी में दोगुने का इजाफा हुआ है. इस सदी के अंत तक समुद्री गर्मी और बढ़ेगी. दक्षिण-पश्चिम प्रशांत इलाके में समुद्री गर्मी दुनिया के औसत तापमान से तीन गुना ज्यादा बढ़ा है. फरवरी 2020 में ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ में भयानक हीटवेव आया था. इस इलाके में समुद्री सतह का तापमान 1961-1990 की औसत गर्मी से 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. यानी 1961 से लेकर पिछले साल तक फरवरी का महीना सबसे ज्यादा गर्म था. ज्यादा गर्मी की वजह से कोरल रीफ की हालत खराब हो गई. काफी मात्रा में ब्लीचिंग होते देखा गया. पिछले पांच साल में यह तीसरा सबसे बड़ा ब्लीचिंग इवेंट था. (फोटोः गेटी)
यह रिपोर्ट बताती है कि अगर अगले कुछ दशकों में औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस का इजाफा होता है तो कोरल ट्राएंगल में मौजूद कोरल रीफ और ग्रेट बैरियर रीफ का 90 फीसदी हिस्सा बर्बाद हो जाएगा. समुद्री गर्मी का बढ़ना, ऑक्सीजन की कमी, अम्लीयता, समुद्रों का बदलता सर्कुलेशन पैटर्न और रसायन लगातार बदल रहा है. मछलियां और जूप्लैंक्टॉन्स समुद्र के अंदर ही ऊंचाई वाले स्थानों की ओर विस्थापित हो रहे हैं. उनका व्यवहार भी बदल रहा है. इसकी वजह से मछली पालन पर भयावह असर पड़ रहा है. इससे प्रशांत महासागर के द्वीपों पर होने वाले तटीय मछली पालन पर असर पड़ेगा. इससे पोषक तत्वों में कमी, कल्याण, संस्कृति और रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ेगा. (फोटोः गेटी)
1990 से 2018 तक वानुआतु में मछली पालन 75 फीसदी, टोंगा में 23 फीसदी और न्यू कैलिडोनिया में 15 फीसदी गिरावट आई है. 1990 से अब तक हर साल समुद्री जलस्तर में 3.3 मिलिमीटर की बढ़ोतरी हो रही है. उत्तरी हिंद महासागर और उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर का पश्चिमी हिस्से का जलस्तर लगातार तेजी से बढ़ रहा है. यह ग्लोबल मीन से कई गुना ज्यादा है. इसकी वजह से भौगोलिक विभिन्नता और गर्मी का विभाजन है. इंडोनेशिया के पापुआ में स्थित 4884 मीटर ऊंचा पुनकैक जाया (Puncak Jaya) ग्लेशियर पिछले 5 हजार सालों से है. लेकिन वर्तमान गर्मी की दर को देखते हैं तो यह अगले पांच साल में खत्म हो जाएगा. इसके साथ ही हिमालय और एंडीज के कई ग्लेशियर भी पिघल जाएंगे. (फोटोः गेटी)
साउथ-ईस्ट एशिया और साउथ-वेस्ट पैसिफिक इलाके में तूफान और चक्रवात आना आम बात है. लेकिन अब इनकी तीव्रता और भयावहता बढ़ रही है. अप्रैल 2020 में पांचवीं श्रेणी का ट्रॉपिकल साइक्लोन हैरोल्ड ने सोलोमन आइलैंड, वानुआतू, फिजी और टोंगा में आया. काफी तबाही मचाई. अक्टूबर और नवंबर में फिलिपींस में तूफान गोनी ने काफी ज्यादा बारिश की, जिससे बाढ़ की स्थिति बन गई. साल 2019-20 में पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में लगी जंगली आग ने भयानक स्तर का प्रदूषण किया. 1 करोड़ हेक्टेयर जमीन जल गई. 33 लोगों की मौत हुई. 3000 से ज्यादा घर जल गए. करोड़ों जीव मारे गए. कई जीवों की तो प्रजातियां ही खत्म हो गईं. (फोटोः गेटी)
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी सिडनी इलाके में तापमान 48.9 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. कैनबरा में 44 डिग्री सेल्सियस था. यह साल 2019 की तुलना में एक डिग्री ज्यादा था. साल 1910 के तुलना में 1.4 डिग्री सेल्सियस अधिक था. दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण-पश्चिम प्रशांत इलाके में साल 2000 से 2019 तक क्लाइमेट चेंज की वजह से आने वाली मुसीबतों की वजह से 1500 लोगों की मौत हुई है. करीब 80 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. सिर्फ पिछले साल यानी 2020 में इसी इलाके में 500 लोगों की मौत हुई थी. जबकि, 1.10 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. इनमें सबसे ज्यादा नुकसान चक्रवाती तूफानों की वजह से हुआ था. (फोटोः गेटी)
जलवायु संबंधित समस्याओं से निपटने के लिए हमें सबसे ज्यादा अर्ली वॉर्निंग सिस्टम्स की जरूरत है. दक्षिण-पश्चिम प्रशांत के तीन-चौथाई देशों के पास मल्टी-हजार्ड अर्ली वॉर्निंग सिस्टम हैं. ये सिस्टम हर एक लाख लोगों में से 73 हजार लोगों की जान बचाने के लिए मदद करते हैं. इनकी पूर्व सूचना के बावजूद हजारों लोग हर साल मारे जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि इस इलाके के सारे देश क्लाइमेट कंट्रोल पर काम करें. (फोटोः गेटी)