वायरस का नाम सुनते ही दुनिया डर जाती है. क्योंकि कोरोनावायरस से लाखों लोगों की मौत हुई है. करोड़ों बीमार हुए. लेकिन अब वैज्ञानिक ऐसे वायरसों की खोज में लगे हैं, जो दृष्टिहीनता का इलाज करेंगे. हैरान करने वाली इस खोज के पीछे यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता लगे हुए हैं. इन शोधकर्ताओं ने कुछ बेहतरीन वायरस वेक्टर खोज निकाले हैं, जो जीन थैरेपी के जरिए रेटिना संबंधी दिक्कतों को दूर कर सकते हैं. रेटिना की ताकत और सटीकता बढ़ा सकते हैं. (फोटोः गेटी)
इन वायरसों के बारे में हाल ही में जर्नल eLife में एक स्टडी प्रकाशित हुई है. जिसमें जेनेटिक दृष्टिहीनता संबंधी बीमारियों को दूर करने के लिए वायरसों की मदद से जीन थैरेपी ईजाद की जा सकती है. शोधकर्ताओं का दावा है कि इस तरीके से किस इंसान को किस तरह के जीन थैरेपी की जरूरत है, उसका पता चल जाएगा. साथ ही रेटिना या उसके किसी हिस्से में आई दिक्कत को सटीकता के साथ ठीक किया जा सकेगा. (फोटोः गेटी)
यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन में ऑप्थैल्मोलॉजी के असिसटेंट प्रोफेसर और इस स्टडी के प्रमुख शोधकर्ता ली बिर्न ने कहा कि दृष्टिहीनता की वजह से जीवन की गुणवत्ता पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है. यह हजारों सालों से लोगों को डरा रहा है. यह कैंसर और अल्जाइमर जैसी ही दिक्कत है. लेकिन अब दृष्टि वापस लाने की तकनीक ने काफी ज्यादा उन्नति कर ली है. कई मरीजों को इन नई तकनीकों से फायदा भी हुआ है. (फोटोः गेटी)
ली बिर्न ने बताया कि वायरसों के जरिए जीन थैरेपी की तकनीक दृष्टिहीनता के इलाज की सबसे नई विधा हो सकती है. हम इसके जरिए कई थैरेपीज को फिर से आधुनिक बना सकते हैं. उन्हें और बेहतर और क्षमतावान बना सकते हैं. जेनेटिक तौर पर दृष्टिहीनता संबंधी दिक्कतें दुर्लभ होती हैं, क्योंकि ये पूरी दुनिया में 3000 लोगों में से किसी एक को होती हैं. इसमें जीन्स के टूटने पर रेटिना पूरी या आंशिक तौर पर खत्म होने लगती है या फिर रेटिन होते हुए भी वो पूरी तरह से देख नहीं पाते. पूर्ण या आंशिक दृष्टिहीन हो जाते हैं. (फोटोः ली बिर्न)
यूरोप और अमेरिका में कई स्थानों पर नई जीन थैरेपी की प्रक्रिया चल रही है. कुछ तो क्लीनिकल ट्रायल वाली स्थिति में हैं. जल्द ही इनके परिणाम बताएंगे कि लोग दृष्टिहीनता से कैसे निजात पाते हैं. अगर इन थैरेपीज से इलाज नहीं हो पाता या कुछ कमी रह जाती है, तब वायरस वेक्टर का उपयोग किया जाएगा. यानी थैरेपी करने वाले जेनेटिक कोड के साथ इनएक्टीवेटेड वायरस को आंख की उस कोशिका में डाला जाएगा, जहां पर इलाज की सख्त जरूरत है. (फोटोः ली बिर्न)
रेटिना में करीब 10 करोड़ कोशिकाएं होती हैं. जो अलग-अलग लेयर में सजाई गई होती हैं. अब दिक्कत ये है कि थैरेपी करने वाले जेनेटिक कोड के साथ इनएक्टीवेटेड वायरस वेक्टर को आंख की उस कोशिका में डालना जहां पर इलाज होना है, ये बेहद जटिल कार्य होगा. इस समस्या को सुलझाने के लिए ली बिर्न और उनकी टीम ने एक कंप्यूटर प्लेटफॉर्म बनाया. जिसका नाम उन्होंने scAAVengr रखा है. यह बहुत तेजी से आंख की हर एक कोशिका और उसके RNA की सिक्वेंसिंग कर लेता है, साथ ही यह भी बता देता है कि इलाज की जरूरत कितनी और कहां है. (फोटोः गेटी)
scAAVengr दर्जनों तरीके बताता है जिनसे इलाज आसान हो जाए. जैसे- एडिनो एसोसिएटेड वायरस वेक्टर या AAV रेटिन में किस जीन थैरेपी के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी होगा. यह रेटिन के किस हिस्से में काम करेगा. जबकि, AAV की गणना करने का पारंपरिक तरीके बेहद धीमा है. इसमें कई साल लगते हैं. अब तक कई जानवरों पर इसका परीक्षण किया गया लेकिन पारंपरिक तरीके से सटीक परिणाम सामने नहीं आया. (फोटोः गेटी)
वहीं, scAAVengr एक बार रेटिना के सिंगल सेल RNA की सिक्वेंसिंग करता है, जो यह बताता है कि वायरस वेक्टर के जरिए पहुंचाया गया कार्गो सही जगह पर पहुंच गया है. इस प्रक्रिया में कुछ महीने लगते हैं, जबकि पारंपरिक प्रक्रिया में सालों लग जाते थे. यह प्लेटफॉर्म सिर्फ रेटिना के इलाज के लिए नहीं है, बल्कि आंखों की अन्य कोशिकाओं से संबंध बीमारियों के लिए भी थैरेपी बताने के लिए हैं. इसके अलावा यह दिमाग, लिवर और दिल के इलाज में भी काम आ सकता है. (फोटोः गेटी)
ली बिर्न ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि scAAVengr प्लेटफॉर्म की मदद से थैरेपी करने वाले जेनेटिक कोड को लेकर वायरस वेक्टर आंख में सही जगह पहुंचकर सटीक इलाज करेगा. ताकि लोगों को दृष्टिहीनता से निजात मिल सके. इससे सिर्फ दृष्टि ही वापस नहीं आएगी, बल्कि इसका उपयोग अन्य इलाज में किया जा सकेगा. जैसे- जीन एडिटिंग और ऑप्टोजेनेटिक्स. इससे भविष्य में यह भी पता कर सकेंगे कि शरीर के किस इलाके में किस तरह की जीन थैरेपी की जरूरत है. (फोटोः गेटी)