सिक्किम में आए फ्लैश फ्लड (Flash Flood) की वजह से अब तक 18 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है. 100 से ज्यादा लोग लापता है. इंसानों का इस बाढ़ में कहां ही पता चलेगा, जब बाढ़ की लहर तीन-चार मजिंले ऊंची इमारत को भी बहा ले गई. कई इमारतों की दूसरी मंजिल तक कीचड़ जमा है. जो अब जमकर बर्फ बनता जा रहा है. (फोटोः पीटीआई)
बादल फटने की वजह से चुंगथांग में मौजूद साउथ ल्होनक लेक का लेवल बढ़ा. दबाव की वजह से झील की दीवार टूट गई. इतना पानी और कीचड़ बहकर नीचे आया कि कई शहर तबाह हो गए. चुंगथांग डैम टूटा... इसके बाद तो रास्ते में जो भी आया सब खत्म. लापता. तीस्ता बेसिन के कई गांव और कस्बे गायब हो गए हैं. (फोटोः पीटीआई)
तीस्ता बेसिन में दिक्चू, सिंग्तम और रांग्पो डूबे हुए हैं. सिक्किम के अलग-अलग हिस्सों में 3000 पर्यटक फंसे हुए हैं. अब तक करीब 166 लोगों को रेस्क्यू किया गया है. जिसमें कुछ सेना के जवान भी हैं. चुंगथांग में मौजूद तीस्ता स्टेज 3 डैम की सुरंगों में अब भी 12-14 मजदूर फंसे हुए हैं. इस फोटो में दिख रहा है कि कैसे कीचड़ में सेना की गाड़ियां फंस गई थीं. (फोटोः एपी)
बाढ़ की वजह से जिन लोगों के घर खत्म हो गए हैं. या कीचड़ में दब गए हैं. उनके लिए 25 रिलीफ कैंप्स बनाए गए हैं. सेना की त्रिशक्ति कॉर्प्स के जवान लोगों को दवाएं और रसद और गर्म कपड़े पहुंचा रहे हैं. क्योंकि चुंगथांग, लाचुंग और लाचेन में सैकड़ों पर्यटक और स्थानीय लोग फंसे हुए हैं. सेना के जवान ही सैटेलाइट फोन से बात कर पा रहे हैं. (फोटोः एपी)
बिजली सप्लाई खत्म है. टेलिफोन लाइन टूट चुकी हैं. कनेक्टिविटी नहीं है. पूर्वी सैन्य कमांड के ब्रह्मास्त्र कॉर्प्स के जवानों ने अब तक 250 लोगों को रेस्क्यू किया है. उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया है. उन्हें खाना-पानी, दवाएं और बिस्तर मुहैया करवाया गया है. सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके हैं चुंगथांग, मंगन, दिक्चू, बारडांग, रांग्पो और सिंग्तम. (फोटोः एपी)
लोगों को बचाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि वहां पर लगातार कीचड़ गिरने की आशंका बनी हैं. मडस्लाइड हो रहा है. सड़के बची नहीं हैं. संचार प्रणाली ठप पड़ी है. करीब 22 हजार लोग अब भी इस आपदा से प्रभावित हैं. भारतीय सेना और एनडीआरफ के जवान लोगों को बचाने में लगे हुए हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
सिक्किम में करीब 700-800 ड्राइवर्स फंसे हुए हैं. इसके अलावा 3150 लोग जो बाइक से वहां घूमने गए थे, वो भी फंसे हुए हैं. सेना और वायुसेना के हेलिकॉप्टरों से इन लोगों को निकालने का प्रयास किया जा रहा है. अब तक 2011 लोगों को बचाया जा चुका है. सिंग्तम कस्बे में पानी और बिजली की सप्लाई की व्यवस्था कर दी गई है. (फोटोः एएफपी)
इस बाढ़ की वजह से सिंग्तम, मंगन, नामची और गैंगटोक में 277 मकान लापता हो गए हैं. सिक्किम सरकार ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया है. ये नंबर हैं- 03592-202892, 03592-202892, 03592-202892. भारतीय सेना ने भी अपनी तरह से दो नंबर जारी किए हैं. ये हैं- 8750887741 और 8756991895. (फोटोः पीटीआई)
वैज्ञानिकों का कहना ये है कि नेपाल के भूकंप और सिक्किम के GLOF यानी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड को जोड़ा नहीं जा सकता. लेकिन हम इसके संबंधों की जांच कर रहे हैं. क्योंकि सिर्फ बादल फटने से इतनी बड़ी घटना नहीं हो सकती. अगर आप ISRO द्वारा जारी तस्वीरों को देखिए तो आपको पता चलेगा. (फोटोः एपी)
इसरो ने तीन सैटेलाइट फोटो का कॉम्बो जारी किया है. अगर आप तस्वीर को बाईं तरफ से देखेंगे तो उसमें साफ दिखा रहा है अंतर. पहले हिस्से में दिख रहा है कि 17 सितंबर 2023 को झील करीब 162.7 हेक्टेयर क्षेत्रफल की थी. 28 सितंबर 2023 को बढ़कर 167.4 हेक्टेयर इलाके में फैल गई. 04 अक्टूबर को इसका क्षेत्रफल सिर्फ 60.3% ही बचा. (फोटोः ISRO)
झील का बहुत बड़ा हिस्सा टूटकर खत्म हो चुका है. यह तस्वीरें इसरो के RISAT-1A और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के सेंटीनल-1ए सैटेलाइट से ली गई हैं. साउथ ल्होनक ग्लेशियल लेक उत्तरी सिक्किम के मंगन जिले के चुंगथांग के ऊपर 17,100 फीट की ऊंचाई पर है. इस झील की गहराई करीब 260 फीट है. यह 1.98 KM लंबी और आधा किलोमीटर चौड़ी है. (फोटोः एफी)
3-4 अक्टूबर के बीच की रात झील की दीवारें टूटीं. ऊपर जमा पानी तेजी से नीचे बहती तीस्ता नदी में आया. इसकी वजह से मंगल, गैंगटोक, पाकयोंग और नामची जिलों में भयानक तबाही हुई. चुंगथांग एनएचपीसी डैम और ब्रिज बह गए. मिन्शीथांग में दो ब्रिज, जेमा में एक और रिचू में एक ब्रिज बह गया. पानी का बहाव 15 मीटर प्रति सेकेंड था. यानी 54 किलोमीटर प्रति सेकेंड. (फोटोः एपी)
अगर 17 हजार फीट की ऊंचाई से पानी इस गति में नीचे आता है तो ये भयानक तबाही के लिए पर्याप्त है. इस फ्लैश फ्लड ने कई जगहों सड़कों को खत्म कर दिया. क्लाइमेट चेंज के एक्सपर्ट अरुण बी श्रेष्ठ ने कहा कि तीस्ता नदी में आई फ्लैश फ्लड भयानक थी. बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर एरिया बना है. इसलिए ज्यादा बारिश हुई. (फोटोः रॉयटर्स)
यह झील चुंगथांग के ऊपर 17,100 फीट की ऊंचाई पर है. यह झील ल्होनक ग्लेशियर के पिघलने की वजह से बनी थी. झील का आकार लगातार बढ़ता जा रहा था. इसमें नॉर्थ ल्होनक ग्लेशियर और मुख्य ल्होनक ग्लेशियर पिघलने से पानी आ रहा था. 2021 में साइंस डायरेक्ट में एक स्टडी छपी थी. जिसमें कहा गया था कि अगर GLOF होता है तो ये झील भारी तबाही मचा सकती है. इसकी वजह से जानमाल और पर्यावरण को नुकसान होता है. (फोटोः एएफपी)
साल 2013 में उत्तराखंड का चोराबारी ग्लेशियल लेक भी इसी तरह टूटा था. उसके ऊपर भी बादल फटा था. जिसकी वजह से केदारनाथ आपदा आई थी. दस साल बाद फिर वैसी ही घटना हिमालय में देखने को मिली है. इसके अलावा 2014 में झेलम नदी में फ्लैश फ्लड आने की वजह से कश्मीर के कई इलाकों में बाढ़ आ गई थी. 2005 में हिमाचल प्रदेश परेचू नदी में फ्लैश फ्लड से तबाही मची थी. (फोटोः रॉयटर्स)