भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) दुनिया में सबसे सस्ते रॉकेट लॉन्च करने के लिए जानी जाती है. अगले साल के अंत तक देश की पहली निजी स्पेस कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) अपना पहला रॉकेट विक्रम-1 (Vikram-1) लॉन्च करेगी. यानी साल 2022 के अंत तक. इसके बाद साल 2023 के मध्य तक विक्रम-2 रॉकेट लॉन्च किया जाएगा. हाल ही में कंपनी ने पहली बार थ्रीडी प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया था. वह भी लिक्विड नेचुरल गैस (LNG) के उपयोग से. यानी इनके रॉकेट लॉन्च से सामान्य रॉकेट लॉन्च की तुलना में पर्यावरण को कम नुकसान होगा. साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा. (फोटोः Skyroot Aerospace)
हैदराबाद स्थित स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) के सह-संस्थापक-सीओओ नागा भरत डाका और सीईओ-सह-संस्थापक पवन कुमार चांदना (फोटो में बाएं से दाएं) ने बताया कि हमारी तैयारी काफी तेजी से चल रही है. हम कई टेस्ट कर चुके हैं, जो सफल रहे हैं. हमारा लक्ष्य है कि हम विक्रम-1 (Vikram-1) के लॉन्च के जरिए छोटे सैटेलाइट्स लॉन्च करने वाले अंतरिक्ष उद्योग में अपनी पहचान बनाए. आत्मनिर्भर भारत बनाने में मदद करें. इस काम में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) हमारी पूरी मदद कर रहा है. रॉकेट की असेंबलिंग, सॉफ्टवेयर की जांच-पड़ताल, पेलोड्स की सही जांच और लॉन्च करने की सुविधा इसरो दे रहा है. (फोटोः Skyroot Aerospace)
aajtak.in से खास बातचीत में पवन और भरत ने बताया कि छोटे सैटेलाइट्स लॉन्च करने के लिए काफी बड़ा बाजार है. हम इसके जरिए काफी ज्यादा लॉन्च कर सकते हैं. हाल ही में हुए थ्रीडी प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग विक्रम-1 (Vikram-1) रॉकेट में नहीं होगा. लेकिन उसके बाद के विक्रम-2 और विक्रम-3 रॉकेट में किया जाएगा. विक्रम-1 के लॉन्च से छह महीने पहले हमारी सारी डील्स फाइनल हो जाएंगी. थ्रीडी क्रायोजेनिक इंजन आम क्रायोजेनिक इंजन की तुलना में ज्यादा भरोसेमंद है. साथ ही यह 30 से 40 फीसदी सस्ता भी है. (फोटोः Skyroot Aerospace)
स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) तीन तरह के रॉकेट बना रही है- विक्रम-1, 2 और 3. विक्रम-1 रॉकेट 225 किलोग्राम वजन के पेलोड को 500 किलोमीटर ऊंचाई वाले SSPO या 315 किलोग्राम वजन के पेलोड को 500 किलोमीटर की लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित करेगा. यह रॉकेट 24 घंटे में ही बनकर तैयार हो जाएगा और लॉन्च भी किया जा सकेगा. विक्रम-2 रॉकेट 410 किलोग्राम वजन के पेलोड को 500 किलोमीटर के SSPO और 520 किलोग्राम के पेलोड को 500 किलोमीटर के लोअर अर्थ ऑर्बिट में स्थापित करेगा. इसके ऊपरी हिस्से में क्रायोजेनिक इंजन लगेगा. विक्रम-3 रॉकेट 580 किलोग्राम वजन के पेलोड को 500 किलोमीटर के SSPO और 730 किलोग्राम के पेलोड को 500 किलोमीटर के लोअर अर्थ ऑर्बिट में स्थापित करेगा. इन दोनों ही रॉकेटों को 72 घंटे में बनाकर लॉन्च किया जा सकेगा. (फोटोः Skyroot Aerospace)
पवन कुमार चांदना ने बताया कि हाल ही में हमारा फ्रांस की निजी स्पेस एजेंसी के साथ एमओयू हुआ है. वो हमारे रॉकेट के जरिए सैटेलाइट्स छोड़ना चाहते हैं. पूर्व इसरो वैज्ञानिक पवन कहते हैं कि जब साल 2018 में इसरो छोड़ा था, तब ये नहीं सोचा था कि हमें इतनी जल्दी इतना अच्छा रेसपॉन्स मिलेगा. शुरुआत थोड़ी कठिन रही, लेकिन हमने जब अपने स्टार्टअप का प्रपोजल जब बड़ी कंपनियों और वैज्ञानिकों के सामने रखा तो वो तैयार हो गए. हमें कंपनी की शुरुआत करने के लिए साल 2018 में 10 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी. जो कि इस साल बढ़कर 82 करोड़ हो चुकी है. इस कंपनी में सबसे बड़ा शेयर ग्रीनको ग्रुप (Green Co Group) का है. (फोटोः Skyroot Aerospace)
पवन ने बताया कि जब हमने कंपनी की शुरुआत की थी तब हमने इसरो के कई पूर्व वैज्ञानिकों से मदद और गाइडेंस मांगी. वो तुरंत तैयार हो गए. रॉकेट बनाने के लिए सिर्फ एक और निजी कंपनी भारत में मौजूद है. थ्रीडी क्रायोजेनिक इंजन (3D Printed Cryogenic Engine) को अपने विक्रम रॉकेट में लगाकर सैटेलाइट लॉन्च करेंगे तो पूरी उम्मीद है कि हम दुनिया की सभी स्पेस एजेंसियों से 32 से 40 फीसदी सस्ती लॉन्च कर पाएंगे. इसकी एक वजह ईंधन में बदलाव भी है. हम आम ईंधन के बजाय LNG यानी लिक्विड नेचुरल गैस और लिक्विड ऑक्सीजन (LoX) की मदद से रॉकेट को लॉन्च करेंगे. जो किफायती भी होगा और प्रदूषण मुक्त भी. (फोटोः Skyroot Aerospace)
पहले थ्रीडी प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन (First 3D Printed Cryogenic Engine) को भारत के प्रसिद्ध रॉकेट साइंटिस्ट डॉ. सतीश धवन के नाम पर धवन-1 (Dhawan-1) दिया गया है. जबकि, विक्रम रॉकेट का नाम डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. इस रॉकेट और इंजन को बनाने के पीछे मकसद है कि छोटे सैटेलाइट्स के उद्योग को बढ़ावा देना. स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) की साइट पर लिखा है कि वो इन रॉकेटों के जरिए भारत को दुनिया का सबसे चहेता स्पेस लॉन्च प्लेटफॉर्म दिलाना चाहते हैं. ये लॉन्च किफायती, भरोसेमंद और सटीक होंगे. (फोटोः Skyroot Aerospace)
स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) को देश की पहली निजी रॉकेट बनाने वाली स्टार्टअप है. इसमें 100 रॉकेट इंजीनियर्स काम कर रहे हैं. इनमें से कई तो पूर्व इसरो साइंटिस्ट रह चुके हैं. कंपनी के साइंटिस्ट भारतीय अंतरिक्ष उद्योग में पहली बार निजी लॉन्च व्हीकल्स यानी रॉकेट बनाने का प्रयास कर रहे हैं. पवन कहते हैं कि पहले रॉकेट का काम सिर्फ देश की स्पेस एजेंसी करती थी, लेकिन अब हम इसका निर्माण करेंगे. निजी कंपनियों के आने से इसरो की महत्ता कम नहीं होगी, बल्कि बढ़ेगी. इन तीनों रॉकेटों को सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद हमारी योजना है एलन मस्क की तरह दोबारा उपयोग में होने वाले रॉकेटों का निर्माण. इसके बाद हम ह्यूमन फ्लाइट की तैयारी भी करेंगे. (फोटोः Skyroot Aerospace)